बस्तर जाए तो जरा संभल कर जाए! राजनीतिक दल से हैं तो और भी जरूरी है। और खासकर विपक्ष से जुड़े कोई नेता हो तो और भी। ये ना समझिएगा कि डरा रहे हैं, हम तो बस जो हुआ है या जो हो रहा है वही बता रहे हैं। वैसे सतर्कता और सजगता सत्ता के धुरी और खुफिया तंत्र को भी बरतनी चाहिए । वजह साफ और सबकों याद है। अगर नहीं तो एक घटना जो सालों पहले हुई थी जरा ध्यान सबसे पहले उस ओर दिला दूँ।
पूरी कहानी नहीं कहूँगा बस एक शब्द लिखूँगा घटना से से जुड़ी सारी चीजे आपके सामने होगी। शब्द झीरम है। …इस शब्द को यहीं छोड़ते चलिए आगे बढ़ते हैं।
जिक्र अब उस वाकये की जो बीते दिनों एक पदयात्रा के दौरान हुई थी। लेकिन उसकी चर्चा अंदरूनी तौर पर अब हो रही है। केशकाल के ऊपर एक ‘गाँव’ है। उस ‘गाँव’ के आगे एक सांप के नाम के बाद का शब्द जुड़ता है। वह इलाका घोर नक्सल प्रभावित है। वह इलाका नेताओं के लिए कितना असुरक्षित है, वह कुछ साल पहले पूर्व मंत्री के घर हुए हमले से समझा जा सकता है। अब जरा सोचिए कि उसी इलाके में विपक्ष के दो नेता बिना सुरक्षा अगर पूरी रात बिताएं तो ? रात भी सरकारी रेस्ट हॉउस में जो जंगल के बीच है। खबर ये है कि दोनों नेताओं की सुरक्षा हटा ली गई थी। वैसे सवाल यहां यह भी है कि सुरक्षा हटा ली गई थी या हटा दी गई थी ?
अगर विपक्ष के दोनों नेताओं की सुरक्षा में इस तरह की असुरक्षा हुई तो ऐसा क्यों हुआ ? वह भी ऐसे मौजूदा वक्त में जहां विपक्ष पर खतरा बीतें कुछ सालों में ज्यादा मंडराते रहा है। खास तौर पर परिवर्तन यात्रा के दौरान हुई एक बड़े नक्सली हमले के बाद। लेकिन जिन विपक्ष की दो नेताओं की सुरक्षा नक्सल प्रभावित इलाके में, रेस्ट हॉउस में एक बड़े रिस्क के साथ प्रभावित हुई वह कैसे ओर क्यों हुई ? आखिर ये प्रभाव किसका था ? आखिर उस रात क्या हुआ था ? कुछ तो है ?