पंकज सिंह भदौरिया. दन्तेवाड़ा. विधानसभा चुनाव को शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराने के लिए प्रशासन ने अपनी पूरी ताकत दक्षिण बस्तर में झोंक दी है. दन्तेवाड़ा विधानसभा के संवेदनशील इलाको में फोर्स की तैनाती भी जबदस्त तरीके से की गई है, फिर भी माओवादियों के गढ़ी इलाकों में चुनाव बहिष्कार की बातें पोस्टर, लाल बैनर और इलाकों में होने वाली जनप्रतिनिधि और फोर्स पर हमले की वारदात से सामने निकलकर आ रही है.
मनाया जा रहा है पुंडम त्योहार
चुनाव लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है, जिसे सरकार शत-प्रतिशत मतदान करवाने के लिए जगह-जगह वोट पंडुम (पंडुम-त्योहार) के रूप में मनाकर जगह-जगह जागरूकता अभियान चला रही है, लेकिन जंगलों में इसी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आज भी विरोधाभास बना हुआ है. जहां नक्सलियों के नाट्यदल रूपांतरित नाटकों के माध्यम से छग सरकार और केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध कर आदिवासी ग्रामीणों को भय दिखाकर मतदान नहीं करने की अपील कर रहे हैं, वहीं जगह-जगह पेड़ों में पोस्टर लगाकर और भवनों में लिखकर चुनाव से दूर करने की बात कह रहे हैं.
नहीं बदली पांच सालों में स्थिति
अपने-अपने तर्कों की लड़ाई से माओवाद और सरकार के बीच संघर्षरत इलाके की ग्रामीण जनता बीच मझधार में खड़ी दिखाई देती है. अंदुरुनी इलाकों में दबाव वाले क्षेत्रों में बगावत की हवा फ़र्राटे से बह रही है. दन्तेवाड़ा जिले के अरनपुर इलाके के आसपास गांव रेवाली, जबेली, बुरगुम, पोटाली, नीलावाया में पिछले चुनाव में भी वोट प्रतिशत न के बराबर रहा है. मगर 05 सालो में स्थिति आज भी जस की तस नजर आ रही है.
अब ग्रामीणों पर टिकी निगाहें
अंदरुनी इलाको से लगातार खबर निकलकर आ रही है कि इन इलाकों में मलंगीर दलम ने जमकर हल्ला बोल मचा रखा है, और उनका एक बड़ा लड़ाकू दस्ता भी जंगलों में छावनी बनाए बैठा है, जो जनप्रतिनिधियों को इलाके में मतदान प्रचार-प्रसार करते देखने पर भगाने की बात कर रहा है. फिर भी जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने हर उस इलाके में मतदान करवाने की कमर कस ली है, जहाँ से विरोध उठ रहा है. अब देखना ये है कि क्या लोकतंत्र के हिस्सेदारी में ग्रामीण कितनी भागेदारी निभाते है, या पिछले चुनाव की तरह इस चुनाव में भी मतदान केंद्रों में वोटिंग के दिन सन्नाटा पसरा रहेगा.