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लेखक -वैभव बेमेतरिहा


छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खुफिया तंत्र के आगे सरकार का खुफिया तंत्र पूरी तरह फेल है इसमें कोई दो राय नहीं। खास तौर पर सीआरपीएफ को मिलने वाले इनपुट्स को लेकर। यही वजह है कि नक्सल हमले में सबसे ज्यादा सीआरपीएफ के जावन ही शहीद हो रहे हैं। वैसे कमजोरी सिर्फ खुफिया तंत्र की है या फिर सरकार की सियासी रणनीति की भी ? या जिला पुलिस के साथ सीआरपीएफ की तालमेल में कोई कमी है ?  या कुछ हद तक सीआरपीएफ की अपनी मनमानी भी है ? ये सारे सवाल इसलिए भी क्योंकि देश की सबसे मजबूत सुरक्षा बल सीआरपीएफ ही नक्सलियों के सबसे ज्यादा निशाने पर है। आखिर क्यो हो रहा है ऐसा पढ़िए इस रिपोर्ट में-

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद से निपटने के लिए केन्द्र ने कई सुरक्षा बलों के बटालियनों की तैनाती की है। राज्य बनने के 17 साल बाद प्रदेश के भीतर सुरक्षा बलों की लगातार तैनाती होती गई। नक्सल मोर्चों पर जवानों की संख्या बढ़ती गई। लेकिन नक्सलवाद खत्म नहीं हुआ। नक्सली और ज्यादा आक्रमक और हिंसक होते चले गए। देश के खतरनाक मिजो और नागा बटालिनय को भी तैनात किया गया था,  लेकिन कुछ साल बाद उन्हें नक्सल मोर्चे से हटा लिया गया। वर्तमान में छत्तीसगढ़ के भीतर नक्सलियों से सीधी लड़ाई छत्तीसगढ़ पुलिस के साथ सीआरपीएफ, बीएसएफ और आईटीबीपी के जवान लड़ रहे हैं। हालांकि सीआरपीएफ जवानों  के बटालियन प्रदेश के भीतर में सर्वाधिक है। यही वहज है कि नक्सल हमलों में सबसे अधिक जवान सीआरपीएफ के ही शहीद हो रहे हैं। बीते 17 सालों में नक्सलियों ने सीआरपीएफ जवानों को सर्वाधिक नुकसान पहुँचाया है। आइए आपको ग्राफिक्स के जरिए बताते हैं कि प्रदेश में सीआरपीएफ किस तरह से नक्सल मोर्चे पर तैनात है और लड़ाई लड़ रही है।


छत्तीसगढ़ का सबसे नक्सल प्रभावित क्षेत्र
बस्तर- कुल आबादी 14 लाख(2011 गणना के अनुसार)
बस्तर में तैनात जवान-  करीब 75 हजार
बस्तर में तैनात सुरक्षा बल-  छग पुलिस, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, बीएसएफ
सीआरपीएफ बटालियनों की संख्या- 38 बटालियन तैनात
बस्तर में हजारों में की संख्या में तैनात सीआरपीएफ के जवान
छत्तीसगढ़ में अब तक नक्सली हमले में 918 जवान शहीद हुए हैं
छत्तीसगढ़ में अब तक सर्वाधिक सीआरपीएफ के 390 जवान शहीद हो चुके हैं


वर्षवार सीआरपीएफ के शहीद जवानों की सूची(पीएचक्यू के मुताबिक)

2003 में 7 जवान शहीद
2004 में 1 जवान शहीद
2005 में 33 जवान शहीद
2006 में 7 जवान शहीद
2007 में 27 जवान शहीद
2008 में 38 जवान शहीद
2009 में 41 जवान शहीद
2010 में सर्वाधिक 112 जवान शहीद
2011 में 11 जवान शहीद
2012 में 7 जवान शहीद
2013 में 8 जवान शहीद
2014 में 40 जवान शहीद
2015 में 3 जवान शहीद
2016 में 18 जवान शहीद
2017 के शुरुआती 4 महीने में ही 38 जवान शहीद

सीआरपीएफ जवानों की शहादत के आंकड़े बताते हैं कि देश को किस तरह से क्षति हुई है। साथ यह भी सवाल उठाते हैं कि आखिर इतना नुकसान सीआरपीएफ के जवानों को ही क्यो ?  इन सवालों के जवाब को ढूंढने  सेजो कारण पता चलते हैं उसमें जिला पुलिस और सीआरपीएफ जवानों के बीच तालमेल की कमी दिखती है। 24 अप्रेल को सुकमा नक्सली हमले में घायल एक सीआरपीएफ जवान ने भी यह कहा कि उन्हें स्थानीय पुलिस से मदद नहीं मिलती। वैसे यह भी खबर आते रहती है कि सीरआपीएफ के जवान अपनी मनमानी करते हुए कभी स्थानीय इनपुट्स को दरकिनार सर्चिंग के लिए अंदर घने जंगलों में चले जाते हैं। वहीं आदिवासियों पर अत्याचार और शोषण करने के सर्वाधिक आरोप भी सीआरपीएफ जवानों पर लगते हैं। जाहिर है इन तमाम पहलुओं पर गहराई से विश्लेषण करना होगा। जिससे ये समझ सके आखिर बीस्तर के बीहण में हमारा तंत्र हार क्यों रहा और आतंक बार-बार जीत क्यों रहा है ?