पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के कई जिले आज भी लाल आंतक का दंश झेल रहे हैं. इन सबके बीच गरियाबंद जिले से एक बड़ी खबर सामने आई है. जिन अतिक्रमणकारियों को भगाने में प्रशासन के पसीने छूट गए, उन्हें नक्सलियों ने एक फरमान से गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया. उदंती अभ्यारण्य के बफर जोन में बसे 69 अतिक्रमणकारियों को बस्ती छोड़कर भागना पड़ा है. अभ्यारण्य के उपनिदेशक ने कहा कि ये हमारी हार, लेकिन वन सुरक्षित होंगे, इसलिए संतुष्ट हैं.

दरअसल, उदंती सीतानदी अभ्यारण्य के बफर जोन में स्थित इंदागांव रेंज के कक्ष क्रमांक 1216,1218, व 1222 में 2008 से सैकड़ों पेड़ काट कर कोयबा के अलावा बाहर से आए ग्रामीणों ने सोरनामाल नाम की बस्ती बसा लिया. यहां 69 परिवार के लगभग 150 लोग कच्ची झोपड़ी बना कर रह रहे थे, जिसे शनिवार की शाम से ग्रामीण खाली करना शुरू कर दिए. शाम 5 बजे तक ग्रामीण गांव छोड़ चुके थे.

lalluram.com की टीम ग्राउंड जीरो पर पहुंची. कुछ घरों के आगे निर्माण सामग्री एकत्र थे, तो ज्यादातर घरों के आगे सुखाए गए वनोपज को समेटते लोग नजर आए. कोयबा से लेकर शोरनामाल तक 4 किमी की दूरी में 13 से ज्यादा माल वाहक वाहन नजर आए, जो घरेलू सामान लादकर निकल रहे थे. लोगों के चेहरे पर मायूसी थी, खामोशी से लोग अपना काम कर रहे थे.

‘अंदरवालों’ ने खाली करने कहा है- ग्रामीण

पूरी बस्ती में हमने लोगों से बात की, जिसमें से कुछ ने सवाल अनसुना कर दिया. वहीं एक ने कहा कि जान तो रहे हो वन विभाग का दबाव है. वहीं डरे हुए अधेड़ ने बड़ी मुस्किल से बताया कि अंदर वालों ने कहा है कि गांव खाली करने. इससे ज्यादा अब कुछ मत पूछिए. 3 बजे तक शाम ढलने से पहले हर हाल में गांव छोड़ना है. शनिवार शाम से सामान ढुलाई शुरू हो गया है. इशारा जंगलों में मौजूद नक्सलियों की ओर था, लेकिन कोई भी खुलकर यह बताने को तैयार नहीं हुआ.

सूत्रों की माने तो इंदागांव से शोभा तक सुनील नाम का कमांडर अपने 4 से 5 साथियों के साथ सक्रिय है. बताया जा रहा है की शनिवार दोपहर को इनकी तूकड़ी ने बाहर से आकर जंगल काट कर बसे लोगों को जंगल छोड़ने का फरमान जारी किया था. इस घटना के बाद पुलिस विभाग भी सक्रिय हो गई है. हालांकि इस मामले पुलिस का कोई अधिकृत बयान सामने नहीं आया है.

उपनिदेशक ने कहा ये हमारी हार, रेंजर भी घटना से हैरान थे. मामले को लेकर हमने इंदागाव रेंजर चंद्रबली ध्रुव से बात किया. उन्होंने कहा की बेदखली की कार्रवाई करने 2020 से प्रयास जारी है. 29 मार्च को भी बेदखली के लिए जाने वाले थे. ग्रामीणों के भारी विरोध के चलते नहीं जा सके. आगामी 6 अप्रैल को दल बल के साथ जाने की योजना थी. आज अचानक गांव खाली हो गया. इसकी वजह पता नहीं है.

उपनिदेशक वरुण जैन ने कहा कि हमे पर्याप्त बल नहीं मिल रहे थे. अन्य कई कारणों से बेदखली की कार्रवाई लगातार प्रभावित हुई. मैं क्या बताऊं ग्रामीण बता चुके होंगे, वे किसके डर से खाली कर रहे होंगे. हालांकि ये हमारी हार है, लेकिन हमारा लक्ष्य जंगल बचाना है. अतिक्रमणकारियों के हटने से जंगल सुरक्षित होगा, इसलिए संतुष्ट हैं.

बेदखली के खिलाफ था सर्व आदिवासी समाज

सर्व आदिवासी समाज बेदखली के खिलाफ था. 29 मार्च को वन राजस्व और पुलिस प्रशासन शोरणामाल में बेदखली की कार्रवाई करने कोयबा में एकत्र हो रही थी. उससे पहले ही इसे रोकने सर्व आदिवासी समाज ने समाज के प्रमुख लोकेश्वरी नेताम के नेतृत्व में गांव पहुंच कार्रवाई के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. इतना ही नहीं शोरनामाल के चौराहे पर बाबा भीम राव अंबेडकर की मूर्ति स्थापना भी कर दिया.

वन विभाग की साजिश का हिस्सा- लोकेश्वरी नेताम

गांव खाली करने के फरमान से अंजान सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष लोकेश्वरी नेताम ने कहा कि वन विभाग के साथ समझौता हुआ था. पौधरोपण के लिए हम पर्याप्त जमीन छोड़ने के लिए तयार थे. नेताम ने कहा कि यह दबाव पूर्ण बेदखली वन विभाग की साजिश का हिस्सा है. जल्द इसका पता लगाकर उचित कदम उठाएंगे.

नक्सली फरमान की दो बड़ी वजह

वजह 1. सिमटते वन.अभ्यारण्य का यह इलाका नक्सली कारीडोर के रूप में कभी इस्तेमाल हुआ करता था. कब्जा वाले इलाके से धमतरी के अलावा ओडिशा के नवरंगपुर व नुआपड़ा जिले की ओर नक्सली आसानी से आवाजाही कर लेते थे. पिछले 3 साल से इस सवेदनशील इलाके में अतिक्रमणकारियों की संख्या में इजाफा हुआ. वन क्षेत्र लगातार सिमट रहे थे, जो नक्सलियों के लिए बाधक बन रही थी.

वजह 2. मैनपुर डिवीजन में पुलिस लगातार कैंप खोल रही है. दो माह पहले ही छिंदौला व ओढ़ में दो नए कैंप खोलकर नक्सलियों पर नकेल कसने में सफलता मिली. अब तक 9 कैंप मैनपुर डिवीजन में खोले जा चुके हैं. जहां पर्याप्त संख्या में केंद्रीय बल की तैनाती है. 10कैंप की तयारी पुलिस कर रही है. ऐसे में पांव पसारने की जगह भी सीमित हो रही है.

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