ये कहानी है साल 1962 की, दिन था 17 नवंबर. इंडो-चाइना वॉर में इसी दिन मजह 21 साल का जवान जसंवत सिंह ने अकेले ही 300 से ज़्यादा चीनी सैनिकों को मार गिराया था. और खुद वीरगति को प्राप्त हो गए थे.

जब चीनी सेना ने चौथी बार अरुणाचल प्रदेश पर हमला किया था. तब उसका मकसत सिर्फ अरुणाचल प्रदेश पर पूरी तरह से कब्ज़ा करना था. ये तब की बात है जब इंडो-चाइना वॉर छिड़ा हुआ था. लेकिन तब चीन के लक्ष्य के बीच दीवार बनकर खड़े हो गए गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के 21 वर्षीय राइफलमैन जसवंत सिंह रावत.

आज ही के दिन 300 Chinese Soldier को मार गिराने वाले सेना के Hero की कहानी

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Posted by Lalluram on Saturday, November 16, 2019

इंडो-चाइना वॉर 20 अक्टूबर, 1962 से 21 नवंबर, 1962 तक चला. लेकिन 17 नवंबर से 72 घंटों तक जसंवत सिंह जिस बहादुरी के साथ चीनी सेना का सामना करते रहे, वो उनके अदम्य वीरता और शौर्य की कहानी है. उनकी बहादुरी के लिए मरने के बाद महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था. भारतीय सेना के वो अकेले सैनिक हैं जिन्हें मौत के बाद प्रमोशन मिलना शुरू हुआ. पहले नायक फिर कैप्टन और अब वह मेजर जनरल है. उनके नाम के आगे स्वर्गीय नहीं लगाया जाता है.

गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के सभी जवान युद्ध में मारे जा चुके थे. जसवंत सिंह अकेले ही 10 हज़ार फीट ऊंची अपनी पोस्ट पर डटे हुए थे. ऐसे में उनकी मदद दो स्थानीय लड़कियों सेला और नूरा ने की. सेला के साथ जसवंत की प्यार की कहानी भी बताई जाती है. 72 घंटे तक वो चीनी सेना की एक पूरी टुकड़ी से अकेले लड़ रहे थे. इस लड़ाई में जसवंत सिंह ने अकेले ही 300 से ज़्यादा चीनी सैनिकों को मार गिराया था.

नूरारंग की इस युद्ध को तीन जवानों ने उस वक्त पूरी तरह से बदलकर रख दिया. जब लड़ाई में चीनी सेना मीडियम मशीन गन यानी (MMG) से ज़ोरदार फायरिंग कर रही थी. तभी राइफलमैन जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोक सिंह और गोपाल सिंह ने भारी गोलीबारी से बचते हुए चीनी सेना के बंकर के करीब जाकर कई चीनी सैनिकों को मारते हुए उनसे उनकी MMG छीन ली थी. और फिर उन पर ही गोलियों बरसानी शुरु कर दी. जिसकी वजह से चीनी सेना का अरुणाचल प्रदेश को जीतने का ख़्वाब महज़ ख़्वाब ही रह गया.

अंतिम दौरा में चीनी सैनिकों को मारते-मारते जसवंत खुद भी बुरी तरह से घायल हो चुके थे. लेकिन उनको राशन पहुँचाने वाले एक व्यक्ति ने चीनियों से मुख़बरी कर दी कि चौकी पर वह अकेले भारतीय सैनिक बचे हैं. यह सुनते ही चीनियों ने वहाँ हमला बोल दिया और जसवंत को बंदी बनाकर मार डाला. चीनी कमांडर इतना नाराज़ था कि उसने जसवंत सिंह का सिर धड़ से अलग कर दिया और उनके सिर को चीन ले गया. लेकिन तब तक भारतीय सेना की और टुकड़ियां युद्धस्थल पर पहुंच गईं और चीनी सेना को रोक लिया. इस कहानी को लेकर 72 होर्स नाम से एक मूवी भी बनाई गई है. जिसमें वीरता और शौर्य को दर्शाया गया है.