पुरुषोत्तम पात्र,गरियाबंद। 80 साल पुराना कमार जनजातियों का गांव आज भी वैसा है जैसे पहले था. गांव में न तो सड़क है और न ही कोई स्कूल और स्वास्थ्य सुविधा. गांव में आज तक विकास के नाम पर कोई काम नहीं हुए हैं, इसलिए ग्रामीण विधायक-सांसद और न ही किसी नेता को नहीं जानते. फिर भी विकास की आस में हर बार मतदान करते हैं. Read More – CG Election 2023: पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने भूपेश सरकार की गिनाई उपलब्धियां, कहा- ‘5 साल में 40 लाख लोग गरीबी रेखा से आए बाहर, देश में बेरोजगारी दूर नहीं कर पाई मोदी सरकार’
ये गांव है गरियाबंद ब्लॉक के बारुका पंचायत का गाहंदर गांव, जहां कमार जनजाति के लोग पिछले 80 साल से बसे हुए हैं. यहां वर्तमान में 52 लोग रहते हैं. इस बार गांव के 22 लोग मतदान करेंगे. यह सुन के चौंकिएगा नहीं कि इन्हें अपने जन प्रतिनिधि का नाम पता नहीं होता, ये तो मुख्यमंत्री का भी नाम नहीं जानते. वजह पूछने पर इसका भी वाजिब जवाब ग्रामीणों के पास था.
ग्रामीण तीजू राम ने बताया कि उनका गांव 80 साल से भी ज्यादा पुराना है. वनोपज संग्रहण और बांस बर्तन बना के अजीविका चलाते हैं. यहां के बच्चों के लिए न तो स्कूल है, न आंगनबाड़ी भवन. बच्चे खुद से अपना जतन करना सीख जाने पर उन्हें नजदीकी छात्रावास भेज कर पढ़ाई करवाते हैं.
पंचायत मुख्यालय 8 किमी दूर है. यहां तक आने जाने अब भी कच्चा रास्ता है. बीच में नाले और पथरीला पठार भी पड़ता है. वहीं प्रसव पीड़ा हुई तो प्रसूता को भगवान भरोसे छोड़ प्रसव कराते हैं. प्रसव के दौरान ऊंच नीच के कारण पहले चार माताओं की मौत भी हो चुकी है. बीमार लोगों को कांवर के सहारे पंचायत तक ले जाना पड़ता है. मतदान को लेकर ग्रामीणों ने बताया कि वो हर साल मतदान इसी आस में करते हैं ताकि उनकी गांव की तस्वीर बदल जाए.
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