खुशबू ठाकरे, रायपुर. एक ऐसा देश जहां मासिक धर्म यानी अंग्रेजी में पीरियड्स के दौरान घर में रहने नहीं दिया जाता है. उन्हें घर के बाहर बनी एक गंदी सी झोपड़ी में रहने के लिए छोड़ दिया जाता है. उन्हें मजबूर होकर मासिक धर्म के समय इन झोपड़ियों में रहना पड़ता है. इस देश के सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रथा पर कई सालों से प्रतिबंध लगा रखा है, पर फिर भी लोग इस प्रथा का पालन कर रहें है. यह प्रथा इस देश में सालों से चली आ रही है. यह प्रथा और कही नहीं भारत देश का पड़ोसी देश नेपाल है. यहां यह माना जाता है कि मासिक धर्म या पीरियड्स के समय लड़कियां और महिलाएं गंदी होती हैं. इसलिए उन्हें घर से बाहर निकाल दिया जाता है. जब पीरियड्स खत्म हो जाते हैं तब उन्हें वापस घर में बुलाया जाता है. इस प्रथा को ‘छौपदी’ कहते हैं.

‘छौपदी’ प्रथा के दौरान नियम

‘छौपदी’ प्रथा के दौरान लड़कियां और महिलाओं को पीरियड्स के दौरान घर के कामकाज करने पर भी पाबंदी होती है. यहां तक पूजा-पाठ, मंदिर आने जाने से लेकर कई अन्य कामों पर भी पाबंदी लगा दी जाती है. इसके अलावा पीरियड्स के समय किसी से भी बात, और ना ही किसी को छूने की इजाजत होती है. इसके अलावा उन्हें घर के बाहर गंदी सी झोपड़ी में रहने के लिए झोड़ दिया जाता है.

नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ही ‘छौपदी’ प्रथा को आपराधिक मानते हुए इस पर प्रतिबंध लगाया था लेकिन इसके बाद भी नेपाल में इस प्रथा को अब भी माना जा रहा है. इस प्रथा की वजह से कई लड़कियों की विभिन्न कारणों से मौत भी हो चुकी है. अब इस पर नेपाल में कई एनजीओ महिलाओं को इसके प्रति जागरुक करने का काम कर रही हैं. नेपाल के सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनवायरनमेंट हेल्थ एंड पॉपुलेशन एक्टीविटीज (CREHPA) ने पश्चिमी नेपाल में 400 किशोर लड़कियों पर सर्वे किया, जिसमें से 77 % लड़कियों को इस ‘छौपदी’ प्रथा से गुजरना होता है.

भारत में भी ऐसी प्रथा आज भी निभाई जा रही है. पीरियड्स व मासिक धर्म के समय महिलाओं को अस्वच्छ व अछूत समझा जाता है. लड़कियों और महिलाओं के साथ आज भी इस तरह की घटनाएं हो रही है. ऐसी प्रथा आधुनिक समाज के लिए एक तमाचा है.