Nepotism In Jharkhand Election: देश की राजनीति में परिवारवाद या कहें ‘नेपोटिज्म’ शुरू से हावी है। केंद्र की राजनीति से लेकर राज्य की राजनीति में परिवारवाद अपना दंभ भरते हर चुनाव में दिखता है। देश के उत्तर से दक्षिण की राजनीति हो या पूर्व से लेकर पश्चिम की राजनीति में ‘नेपोटिज्म’ का असर न दिखे ऐसा नहीं हो सकता। नेता एक उम्र होने के बाद अपनी राजनीति विरासत बेटे या बेटी को सौंप देते हैं। हालांकि इस बार झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Elections) में परिवारवाद या कहें ‘नेपोटिज्म’ का एक अलग रूप देखने को मिल रहा है। यहां अब बेटा-बेटी नहीं, बहुएं परिवार की ‘सियासी विरासत’ संभाल रहीं हैं। विधानसभा चुनाव में करीब आधा दर्जन सीटों पर नेताओं ने अपने बहुओं को टिकट दिलवाया है। इनमें शिबू सोरेन की बहू सीता और कल्पना, रघुबर दास की बहू पूर्णिमा का नाम प्रमुख है। आइए अपने परिवार की सियासत संभाल रहीं बहुओं पर एक नजर डालते हैंः-
सियासी मैदान में शिबू सोरेन की दो बहुएंः-
कल्पना मुर्मू सोरेन
इस बार झारखंड विस चुनाव में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की 2 बहुएं सियासी मैदान में हैं। गिरिडिह की गांडेय सीट से सीएम हेमेंत सोरेन अपनी धर्मपत्नी कल्पना मुर्मू सोरेन को चुनाव लड़ा रहे हैं। एमबीए तक की पढ़ाई करने वाली कल्पना की शादी 7 फरवरी 2006 को हेमंत सोरेन से हुई थी। दोनों के दो बच्चे हैं। कल्पना सोरेन राजनीति में आने से पहले एजुकेशन के क्षेत्र में काम कर रही थीं। कल्पना 2024 में इस सीट से उपचुनाव जीत चुकी हैं। हेमंत के जेल जाने के बाद कल्पना ने राजनीति में एंट्री ली थी।
सीता सोरेन
शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता भी राजनीति में हैं। सीता अपने पति दुर्गा सोरेन के निधन के बाद राजनीति में आईं हैं। वे जामा सीट से विधायक भी रह चुकी हैं। हालांकि, 2024 में परिवार में वरियता नहीं मिलने के बाद लोकसभा से पहले उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया था। बीजेपी ने इस बार सीता सोरेन को जामताड़ा से टिकट दिया है।
राज्यपाल रघुबर दास ने बहू पूर्णिमा को मैदान में उतारा
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास ने जमशेदपूर पूर्वी सीट से अपनी बहू पूर्णिमा दास को मैदान में उतारा है। 2019 में रघुबर दास इस सीट से चुनाव हार गए थे। छत्तीसगढ़ की मूल निवासी पूर्णिमा ने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की है। पूर्णिमा पर जमशेदपुर में रघुबर दास की सियासी विरासत को लौटाने की जिम्मेदारी है। पूर्णिमा की शादी 2019 में रघुबर के बेटे ललित दास से हुई है। ललित हाल ही में तब सुर्खियों में आए थे, जब ओडिशा राजभवन के एक कर्मचारी ने उन पर मारपीट का आरोप लगाया था। यह मामला विधानसभा में भी उछला था।
निर्मल महतो की बहू भी आजमा रहीं किस्मत
झारखंड आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले शहीद निर्मल महतो की बहू सविता महतो भी सियासी मैदान में हैं। सविता झारखंड मुक्ति मोर्चा के सिंबल पर सरायकेला की इचागढ़ सीट से लड़ रही हैं। 2019 में सविता इस सीट से जीत भी चुकी हैं। 2014 में पति सुधीर महतो के निधन के बाद सविता राजनीति में आईं थी। . इचागढ़ सीट पर सविता का मुकाबला आजसू उम्मीदवार से है।
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अवध बिहारी की बहू दीपिका पांडे फिर मैदान में
संयुक्त बिहार-झारखंड के कद्दावर नेता रहे अवध बिहारी सिंह की बहू दीपिका पांडे फिर से मैदान में हैं। दीपिका महगामा सीट से 2019 में जीती थीं। इसके बाद उन्हें हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री बनाया था। दीपिका राजनीति में आने से पहले पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय थीं।वर्तमान में दीपिका के पति प्रोफेशनल सेक्टर में काम करते हैं। यूथ कांग्रेस के जरिए राजनीति में आने वाली दीपिका को 2014 में गोड्डा का जिलाध्यक्ष बनाया था।
मंत्री भोगता ने बहू रश्मि प्रकाश को मैदान में उतारा
हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री सत्यानंद भोगता ने भी अपनी बहू रश्मि प्रकाश को चतरा सीट से चुनावी मैदान में उतारा है। रश्मि दलित जाति से आती हैं। रश्मि के पति मोहित स्थानीय कोर्ट में चपरासी के पद पर कार्यरत हैं। रश्मि का मुकाबला चतरा सीट पर चिराग पासवान के उम्मीदवार जनार्दन पासवान से है।
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