नई दिल्ली। प्रसिद्ध पुस्तक कश्मीरी पंडित के बाद सुप्रसिद्ध लेखक अशोक कुमार पांडेय की अगली पुस्तक ‘उसने गांधी को क्यों मारा’ का आज गांधी जयंती के अवसर पर विमोचन किया जा रहा है. अशोक कुमार पांडेय की पुस्तक कश्मीरी पंडित को लोगों ने बहुत पंसद किया था. अब उनकी अगली पुस्तक ‘उसने गांधी को क्यों मारा’ का विमोचन हो रहा है.

हम आपसे पुस्तक के कुछ अंश साझा कर रहे हैं, जो इस प्रकार है-

दक्षिण अफ्रीका में गांधी पर एक हमले की कहानी

दिल्ली में महात्मा गांधी पर 20 जनवरी, 1948 को बम से हमले और फिर 31 जनवरी को हत्या के बारे में तो सब जानते हैं, लेकिन कम लोगों को पता है दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए भी गांधी पर तीन हमले हुए थे. उन्हीं में से एक की कहानी सुना रहे हैं लेखक अशोक कुमार पाण्डेय, जिनकी किताब ‘उसने गांधी को क्यों मारा’ आज ही विमोचित होनी है.

इस हमले की कहानी गांधी की मित्र मिली पोलक ने सुनाई है जो अफ़्रीका में उनके निकटतम सहयोगी हेनरी पोलक की पत्नी थीं। गांधी से दस साल छोटा यहूदी हेनरी 1903 में ब्रिटेन से अफ़्रीका आया था। मिली ईसाई थीं और महिला मताधिकार की समर्थक एक नारीवादी समाज सुधारक। अपने चाचा के कारोबार में नौकरी के बाद वह जोहांसबर्ग के एक स्थानीय साप्ताहिक ट्रांसवाल वीकली में काम करने लगा और यहीं 1904 में एक शाकाहारी रेस्तरां में उसकी गांधी से मुलाक़ात हुई। इस मुलाक़ात को याद करते हुए उसने लिखा है – ‘उस मशहूर भारतीय नेता में ऐसा कुछ नहीं था जिसे ख़ास कहा जा सके। मैं निराश हुआ।’ लेकिन उसके बाद दोनों के बीच एक ऐसी दोस्ती विकसित हुई जो व्यक्तिगत से आगे गई और पोलक ने अफ़्रीका में गांधी के सत्याग्रह में कंधे से कंधा मिलाकर साथ ही नहीं दिया बल्कि गांधी के भारत आ जाने के बाद भी वहाँ उनका काम जारी रखा। गांधी ने बाद में पोलक के बारे में लिखा – उनमें ऐसी किसी भी चीज़ को वास्तविकता मे उतार देने की अद्भुत क्षमता है जो उनके मस्तिष्क को अपील कर जाए।हेनरी ने गांधी की मृत्यु के साल भर बाद उन पर एक महत्त्वपूर्ण किताब महात्मा गांधी लिखी तो मिली ने 1931 में उन पर अपने संस्मरणों की किताब लिखी थी

 मिस्टर गांधी : द मैन

इसी किताब में वह 1908 की एक घटना का जिक्र करती हैं –
जोहान्सबर्ग में मेसोनिक हॉल में एक खचाखच भरी सभा में भाषण देने के बाद जब गांधी उनके साथ लौट रहे थे तो बाहरी दरवाज़े के साए में एक आदमी दिखा। गांधी ने उसे देखा और उसके पास गए और उसके हाथों में हाथ डालकर धीमी आवाज़ में थोड़ी देर तक बात करते रहे। वह आदमी थोड़ी देर के लिए झिझका और फिर गांधी के साथ चलने लगा। मैं भी साथ में चलने लगी। वे लोग इतनी धीमी आवाज़ में बात कर रहे थे कि मैं कुछ न सुन सकी। गली के आख़िरी छोर पर पहुँचकर उस आदमी ने गांधी को कोई चीज़ सौंपी और फिर चला गया।
उसके जाने के बाद मैंने गांधी से पूछा – वह कुछ ख़ास चाहता था?
गांधी ने कहा – हाँ, वह मुझे मारना चाहता था।
आपको मारना चाहता था! मैंने दुहराया। आपको मारना चाहता था! कितनी भयानक बात है! पागल था वह?
नहीं, गांधी ने कहा, उसे लगता था कि मैं लोगों से गद्दारी कर रहा हूँ ; सरकार से उनके ख़िलाफ़ समझौते कर रहा हूँ और उनका हितू बनने का नाटक कर रहा हूँ।

जब मिली ने गांधी से यह कहने की कोशिश की कि वह व्यक्ति ख़तरनाक हो सकता है और पुलिस में ख़बर करनी चाहिए तो गांधी का जवाब सत्याग्रह और अहिंसा की उनकी प्रविधि का बयान है और यह भी बताता है कि यह उनके लिए एक मज़बूत विपक्ष के समक्ष महज़ रणनीति नहीं बल्कि तौर ए ज़िन्दगी थी। वह कहते हैं –

ख़ुद को इसे लेकर इतना परेशान न करो। उसे लगता था कि वह मुझे मारना चाहता था; लेकिन वास्तव में उसमें इतना साहस नहीं था। अगर मैं वाकई इतना बुरा होता जितना वह सोचता था तो मुझे मर जाना चाहिए था। अब हम इसके बारे में नहीं सोचेंगे। मुझे नहीं लगता कि वह आदमी मुझ पर दुबारा हमला करेगा। अगर मैने उसे गिरफ़्तार करा दिया होता तो मैंने उसे अपना दुश्मन बना लिया होता। जो हुआ है उसके बाद वह मेरा मित्र बन जाएगा।

गांधी सही थे। शायद लोगों को पहचानने का यह हुनर उन्होंने अपने लम्बे संघर्षों में सीख लिया था। वह तब भी सही थे जब 20 जनवरी, 1948 को मदनलाल पाहवा द्वारा बम फेंके जाने के बाद लोगों के यह कहने पर कि यह किसी शरणार्थी की अपना आक्रोश जताने की कोशिश हो सकती है, उन्होंने हँसते हुए कहा था – तुम्हें दिख नहीं रहा यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा है।