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रायपुर। इस भागती दौड़ती जिंदगी में बगैर गाड़ी के आप कोई कल्पना नहीं कर सकते. उसमें भी अगर आप कहीं जा रहे हों और आप की गाड़ी पंक्चर हो जाए, कई-कई किलोमीटर कोई भी मैकेनिक न मिले तब… यह सोचने से भी दिल सिहर उठता है. आप भी यही सोचते होंगे की काश कोई ऐसी तकनीक आ जाए कि गाड़ी का टायर कभी पंक्चर न हो. लेकिन विश्वभर में इससे पहले ऐसी कोई तकनीक नहीं थी जो कि कील गड़ने के बाद भी टायर से हवा न निकले.
लेकिन भिलाई के एक गरीब मैकेनिक ने एक ऐसी तकनीक का ईजाद किया है जिससे गाड़ी के टायर में 1-2 नहीं दर्जनों कील भी गड़ जाए तब भी आपकी गाड़ी पंक्चर नहीं होगी और आप अपनी मंजिल तक बगैर किसी तकलीफ के पहुंच जाएंगे.
कोहका हाउसिंहबोर्ड में पेड़ के नीचे दुकान लगाकर जैसे-तैसे अपना और परिवार की जिंदगी बसर करने वाले तुकाराम वर्मा उर्फ बादल ने एक ऐसे जेल का आविष्कार किया है जिसका लेप टायर के अंदर लगाने के बाद कई दर्जन खीले टायर में चुभने के बाद भी आपको रुकने पर मजबूर नहीं कर पाएंगे.
पत्राचार से की पढ़ाई
तुकाराम जब 13-14 साल का था तब उसके पिता का देहांत हो गया. परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने की वजह से वह नियमित पढ़ाई बीच में छोड़कर ही घर के पास ही साइकिल पंचर की दुकान लगाने लगा. इसके साथ ही उसने पत्राचार से अपनी पढ़ाई जारी रखी और 12 वीं पास करके फिर हमेशा के लिए पढ़ाई-लिखाई को अलविदा कह दिया. साइकिल की दुकान से ज्यादा आमदनी नहीं होने की वजह से उसने गाड़ी रिपेयरिंग का काम सीखा और एक दुकान में काम करने लगा जहां उसे 1 हजार रुपए महीना की तनख्वाह मिलती थी. लेकिन उसने यह काम भी छोड़ दिया.
घर-घर पंचर बनाने का काम करने लगा
उसके बाद तुकाराम दुर्ग रेलवे स्टेशन में सफाई ठेका श्रमिक के तौर पर काम करने लगा लेकिन ठेका कंपनी बदलने की वजह से श्रमिकों को समय पर वेतन नहीं दिया जा रहा था. उसने वह नौकरी भी छोड़ दी और वापस गाड़ी का पंक्चर बनाने का काम करने लगा और लोगों को घर पहुंच सेवा देने लगा.
ऐसे किया इजाद
इसी दौरान एक दिन वह अपनी बाईक में अपनी पत्नी के साथ कहीं जा रहा था उसी दौरान उसकी गाड़ी पंक्चर हो गई. लेकिन कई-कई किलोमीटर तक जब उसे पंक्चर की दुकान नहीं मिली तो उसने उसी दिन ऐसा कुछ करने को सोचा जिससे गाड़ी का टायर कभी पंक्चर न हो. तुकाराम अपने काम और परिवार को समय देने के अलावा अपने आविष्कार के लिए प्रतिदिन कुछ समय देने लगा. इस दौरान तकरीबन 3 साल तक उसने हजारों बार अपनी खुद की गाड़ी को पंक्चर किया और असफल हुआ. कहते हैं हिम्मत न हारने वालों की ही जीत होती है उसी तरह आखिरकार उसे भी अपनी मंजिल मिल गई और उसने एक जेल तैयार किया. जिसका उसने अपनी गाड़ी पर लगातार 3-4 महीने तक जिसका प्रयोग किया. इस दौरान उसने 1-2 नहीं बल्कि 30 से ज्यादा कीलें अपनी गाड़ी के टायर में ठोंके और उसकी गाड़ी की हवा भी नहीं निकली.
पेटेंट के बाद आएगा मार्केट में
तुकाराम ने अपने ईजाद किए हुए जेल का पेटेंट कराने जा रहा है जिसके बाद वह “एंटी पंक्चर जेल” का उत्पादन शुरु कर देगा. तुकाराम के साथ उसके इस कार्य में उसके दोस्त उसके सहयोगी बने जिनकी बदौलत उसने यह आविष्कार किया.
देखिए वीडियो
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