नई दिल्ली। आजादी के 75 साल बाद अब जाकर भारत को नया संसद भवन मिला है. दशकों की योजना और सालों की मेहनत के बाद तैयार हुआ यह नया भवन ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का प्रतीक है, जिसमें देश के हर कोने से बेहतरीन चीजों को यथोचित स्थान दिया गया है. नए संसद भवन में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर की कालीन, राजस्थान के पत्थर, त्रिपुरा के बांस से बनी सामग्री के अलावा अन्य प्रदेशों की भी सामग्रियों का भवन की सुंदरता और उपयोगिता के लिए इस्तेमाल किया गया है.

राजस्थान का पत्थर

नए भवन में इस्तेमाल की किए गए लाल और सफेद बलुआ पत्थर राजस्थान के सरमथुरा से लाया गया था. केसरिया हरा पत्थर उदयपुर से, अजमेर के पास लाखा से लाल ग्रेनाइट और अंबाजी से सफेद संगमरमर मंगवाया गया है. बताया जाता है कि लाल किले और हुमायूं के मकबरे के लिए बलुआ पत्थर भी सरमथुरा से ही लाया गया था.

दमन और दीव के फॉल्स सीलिंग

लोकसभा और राज्यसभा कक्षों में ‘फॉल्स सीलिंग’ के लिए स्टील की संरचना केंद्र शासित प्रदेश दमन और दीव से मंगाई गई है, जबकि फर्नीचर मुंबई में तैयार किया गया था. इमारत पर लगे पत्थर की ‘जाली’ राजस्थान के राजनगर और उत्तर प्रदेश के नोएडा से मंगवाई गई थी.

हरियाणा की रेत का इस्तेमाल

नए संसद भवन में निर्माण गतिविधियों के लिए ठोस मिश्रण बनाने के लिए हरियाणा में चरखी दादरी से निर्मित रेत या ‘एम-रेत’ का इस्तेमाल किया गया था. वहीं सागौन की लकड़ी महाराष्ट्र के नागपुर से लाई गई थी.

अशोक चिह्न की सामग्री महाराष्ट्र से

संसद में लगे अशोक चिह्न के लिए सामग्री महाराष्ट्र के औरंगाबाद और राजस्थान के जयपुर से लाई गई थी, जबकि इसके बाहरी हिस्सों में लगी सामग्री को मध्य प्रदेश के इंदौर से खरीदा गया था. पत्थर की नक्काशी का काम आबू रोड और उदयपुर के मूर्तिकारों ने किया है. पत्थरों को कोटपुतली, राजस्थान से लाया गया था.