विश्वभर में नया साल मनाने का तरीका भी अलग-अलग है. सभी धर्मों में नया साल एक उत्सव की तरह अलग-अलग अंदाज में अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाता है. दुनिया में सबसे अधिक देशों में ईसाई नव वर्ष मनाए जाने की परंपरा है. ईसाई वर्ष 1 जनवरी से शुरू होकर 31 दिसंबर तक 12 महीनों में बंटा हुआ है. खास बात यह है कि भले ही दुनिया के सभी धर्मों के रीति-रिवाज अलग-अलग हों लेकिन 1 जनवरी को सभी देशों में नए साल की धूम रहती है. विश्व में वर्ष के अंतिम कुछ क्षणों में आतिशबाज़ी करते हुए पुराने साल को विदा और नव वर्ष का स्वागत किया जाता है.

क्या है न्यू ईयर की कहानी?

हजारों साल पहले प्राचीन बेबीलोन में न्यू ईयर की शुरुआत हुई थी. परंतु उस समय नव वर्ष का यह उत्सव 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि थी. जो हिन्दुओं का नववर्ष है. ग्यारह दिनों तक चलने वाले पर्व के रूप में यह वसंत ऋतु के पहले दिन से शुरू होता था. इसीलिए सितंबर सातवां, अक्टूबर आठवां, नवंबर नौवां और दिसंबर दसवां महीना माना जाता था. जैसा कि इनके नामों से स्पष्ट होता है.

यह गणना रोमन कैलेंडर के अनुसार किया जाता था जो सातवीं शताब्दी BC से शुरू हुआ और यह चन्द्रमा के चक्र के मुताबिक था. रोमन कैलेंडर अटकलबाजी के बलबूते बनाया गया था. जो 1 मार्च से शुरू होता था. तब एक साल में 304 दिन और कुल 10 महीने हुआ करते थे. मार्च से लेकर दिसम्बर तक, इन महीनों के नाम इस तरह थे मर्सिअस, एप्रिलिस, मैयास, जूनियस, क़ुइन्तिलिस, सेक्सटिलिस, सेप्टेम्बर, ओक्टोबर, नोवेम्बर, और डिसेम्बर.

लेकिन सन 1570 के आसपास पोप ग्रेगरी XIII ने क्रिस्टोफर क्लेवियस को एक नया कैलेंडर बनाने का जिम्मा सौंपा. इस तरह सन 1582 में ग्रेगोरियन कैलेंडर अस्तित्व में आया. तब से पूरी दुनिया में नए साल का उत्सव बदस्तूर 1 जनवरी को मनाया जाता है.

चूँकि पूरे विश्व में मान्य इस नववर्ष को हमारे देश में भी धूमधाम से मनाया जाता है अतः हिंदूनर्व के अलावा एक जनवरी वैश्विक नववर्ष को मनाया जा रहा है. अतः इस नववर्ष में विश्व, देश एवं राज्य की स्थिति के अलावा ग्रहो का वर्ष में परिवर्तन और प्रभाव के साथ लाभ हानि के साथ सावधानी एवं राशि अनुसार प्रभाव एवं उपाय पर चर्चा करेंगे.