जैन धर्म में रोहिणी व्रत का विशेष महत्व है। सावन महीने में 14 जुलाई को रोहिणी व्रत है। इस दिन जैन धर्म के अनुयायी विधि विधान से भगवान वासुपूज्य स्वामी की पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही उनके निमित्त व्रत उपवास रखते हैं। धार्मिक मान्यता है कि रोहिणी व्रत करने से विवाहित महिलाओं को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही पति की आयु लंबी होती है।
नवविवाहित महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए रोहिणी व्रत करती हैं। स्त्री और पुरुष दोनों रोहिणी व्रत कर सकते हैं। इस व्रत के पुण्य प्रताप से व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। आइए, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व जानते हैं-
रोहिणी व्रत महत्व
जैन धर्म शास्त्रों के अनुसार, प्रत्येक महीने के 27 वें दिन रोहिणी नक्षत्र पड़ता है। इस दिन जैन धर्म के अनुयायी रोहिणी व्रत मनाते हैं। रोहिणी व्रत पर परमपूज्य भगवान वासु स्वामी की पूजा-उपासना की जाती है। अतः साधक श्रद्धा भाव से परमपूज्य भगवान वासु स्वामी की भक्ति करते हैं। इस दिन जैन मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।
शुभ मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार, 14 जुलाई को रोहिणी व्रत देर तक 10 बजकर 27 मिनट तक है। अतः साधक अपनी सुविधा अनुसार परमपूज्य भगवान वासु स्वामी की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
पूजा विधि
रोहिणी व्रत यानी 14 जुलाई के दिन ब्रह्म बेला में उठकर घर की साफ-सफाई करें। अब नित्य कर्मों से निवृत होकर स्नान-ध्यान करें। अगर सुविधा है, तो गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें और नवीन वस्त्र धारण करें। अब आचमन कर व्रत संकल्प लें। तदोउपरांत, सूर्यदेव को जल दें। अब भगवान वासुपूज्य स्वामी की पूजा फल, फूल, दूर्वा आदि से करें। अंत में आरती-अर्चना कर सुख और समृद्धि की कामना करें।