रायपुर- छत्तीसगढ़ बीजेपी में बड़ा बदलाव हो सकता है. केंद्रीय संगठन से छनकर आ रही खबरों को सच माना जाए, तो राज्य का नेतृत्व किसे दिया जाएगा, इस पर निर्णय ले लिया गया है. बीजेपी के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के हवाले से आ रही सूचना कहती है कि राज्य की कमान आदिवासी नेतृत्व को सौंपा जाएगा. सूत्र दावा करते हैं कि राज्यसभा सांसद रामविचार नेताम का नाम सबसे ऊपर रखा गया है.
संगठन के भरोसेमंद सूत्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर आला नेताओं के बीच गंभीर मंत्रणा हुई है. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व और राज्य संगठन के आला नेताओं के बीच कई दौर की रायशुमारी की जा चुकी है. राज्य के मौजूदा हालातों को देखते हुए तय हुआ है कि संगठन की कमान आदिवासी चेहरे को ही सौंपी जाए. इसके लिए रामविचार नेताम सबसे उपयुक्त चेहरा माने जा रहे हैं. हालांकि आदिवासी वर्ग से मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी और पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय का नाम भी चर्चाओं में शामिल रहा है. बताते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह का खेमा उसेंडी या साय को राज्य संगठन की कमान देने का समर्थन कर रहा है. संगठन के आला नेता कहते हैं कि संगठन पर अपना नियंत्रण प्रभावी बनाए रखने के इरादे से रमन सिंह खेमा अपने करीबी नेताओं का नाम आगे बढ़ा रहा है. जबकि अन्य खेमे से इसका तीखा विरोध किया गया है.
एक प्रबल चर्चा इस बात की भी हो रही है कि रामविचार नेताम की प्रदेश अध्यक्ष पद पर ताजपोशी किए जाने को लेकर राष्ट्रीय महामंत्री सरोज पांडेय ने भी अपनी सहमति दी है. साथ ही राष्ट्रीय संगठन प्रभारी ने भी लगभग-लगभग नेताम के नाम पर अपना समर्थन दिया है. दिल्ली संगठन से जुड़े एक प्रभावशाली नेता ने लल्लूराम डाट काम से बातचीत में कहा है कि नेताम के नाम पर सहमति बना दी गई थी, लेकिन राज्य में उनके विरोधी खेमे की ओर से जोरदार विरोध दर्ज किया गया. सूत्र बताते हैं कि दिल्ली में कई केंद्रीय मंत्रियों से भी नेताम को प्रदेश अध्यक्ष बनने से रोकने के लिए लाॅबिंग की गई है.
आदिवासी नेतृत्व के लिए नेताम ही क्यूं?
एक बड़ा सवाल यह उठता है कि राज्य संगठन की कमान यदि किसी आदिवासी नेतृत्व को सौंपा जाना है, तो इसके लिए रामविचार नेताम के नाम पर ही सहमति बनाने की कवायद क्यूं की जा रही है? दिल्ली केंद्रीय संगठन से जुड़े नेता ने लल्लूराम डाट काम से कहा कि राज्य में मौजूदा सियासी हालात में पार्टी को एक आक्रामक,अनुभवी, संगठनात्मक कौशल से लैस लीडर की जरूरत है. नेताम बीजेपी सरकार में लंबे समय तक मंत्री के रूप में काम कर चुके हैं. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष रहे हैं. झारखंड में संगठन के प्रभारी के रूप में काम करने का अनुभव भी उनके हिस्से हैं. राज्य की 29 आदिवासी सीटों में इस वक्त बीजेपी के पास केवल 2 सीटें है. ऐसे में आदिवासियों के बीच संगठन का भरोसा जगाने के लिए नेताम के अनुभवों का लाभ पार्टी ले सकती है. इधर पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह के करीबी और भरोसेमंद चेहरे विष्णुदेव साय भी एक प्रभावी चेहरे हो सकते हैं, लेकिन अलग-अलग वक्त में दो बार प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनके कार्य अनुभव को केंद्रीय संगठन ने देखा है. हालांकि तब सत्ता में बीजेपी काबिज थी. साय विनम्र स्वभाव के नेता है, फिलहाल आलाकमान आक्रामक चेहरे की खोज में है, जिसमें वह फिट बैठते नजर नहीं आते. संगठन यह आक्रामकता रामविचार नेताम के भीतर देख रहा है.
एक वरिष्ठ नेता ने यह भी कहा कि रामविचार नेताम मौजूदा दौर में उपयुक्त चेहरा जरूर हो सकते हैं, लेकिन सत्ता से बीजेपी के हटने के बाद संगठन के भीतर गुटों को मिल रही हवा उन तक पहुंच सकती है. संगठन को मजबूत करने के लिए मौजूदा दौर में जिस समन्वय की जरूरत है, वह बनाने में नेताम कामयाब होंगे या नहीं? ये चर्चा का विषय जरूर है. नेताम के साथ दूसरा निगेटिव मार्क ये जुड़ा है कि उन्हें रमन सिंह विरोधी गुट का नेता माना जाता है. रमन का दिल्ली में बड़ा प्रभाव है, ऐसे में कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर वह अपने करीबी को दिलाने में एड़ी चोटी लगा सकते हैं.
फिर ओबीसी लीडरशिप की थ्योरी का क्या होगा?
बीजेपी में जब प्रदेश अध्यक्ष को लेकर कश्मकश का दौर पूरे उफान पर था, तब एक दिलचस्प नाम उभरकर सामने आय़ा था. यह नाम था दुर्ग सांसद विजय बघेल का. दरअसल इसके पीछे एक बड़ी वजह यह थी कि वह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के रिश्तेदार हैं, लेकिन सियासी मैदान में एक-दूसरे के कट्टर विरोधी. साल 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी से कुर्मी वोट के खिसकने की वजह से यह चर्चा तेज हुई थी कि विजय बघेल को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर इस वर्ग को साध लिया जाए, लेकिन दुर्ग में संगठन के भीतर उपजे मतभेद के बाद बघेल के नाम पर चर्चा टाल दी गई. तब कहा गया कि दुर्ग में सरोज पांडेय और प्रेमप्रकाश पांडेय खेमे ने इसका पुरजोर विरोध किया था. संगठन के भीतर एक चर्चा यह भी है कि ओबीसी वर्ग से ही धरमलाल कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा चुका है. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी उन्हें दी गई है. ऐसे में आदिवासी चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपकर एक संतुलन बनाया जाएगा. दलील ये भी है कि सत्ता की बागडोर भूपेश बघेल के हाथों है, वह कुर्मी समाज से हैं, लेकिन संतुलन बनाने के लिए कांग्रेस संगठन ने आदिवासी चेहरे मोहन मरकाम को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. इसी फार्मूले के साथ बीजेपी भी ऐसा संतुलन बनाना चाहती है.
आदिवासी-ओबीसी नहीं तो फिर…..
हालांकि इस बात की संभावना बेहद कम ही है कि राज्य संगठन की कमान आदिवासी-ओबीसी वर्ग के अलावा सामान्य वर्ग को दिया जाए, लेकिन फिर भी अटकलें कहती है कि यदि हालात बदले और किसी दूसरे चेहरे पर विचार करने की नौबत आई, तो पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह एक बड़े चेहरे होंगे, जिन्हें बागडोर सौंपने की संभावना बन सकती है. हालांकि रमन अक्सर अपने बयानों में यह कहते आए हैं कि जिस पद पर साल 2003 में काम कर चुके हैं, अब उस पर वापस लौटना संभव नहीं है, लेकिन देश के अन्य राज्यों में राजनीतिक दलों के बीच ऐसे कई उदाहरण है कि उच्च पदों पर काम करने के बावजूद उपयोगिता समझ नेतृत्व ने राज्य की कमान नेताओं को सौंपी है, लेकिन यहां भी सवाल यही खड़ा होता है कि सत्ता से हटने के बाद क्या रमन संगठन के सर्वमान्य नेता होंगे? अनुशासित पार्टी कहे जाने वाली बीजेपी के भीतर भी यह चर्चा आम है कि सत्ता से बाहर जाने के बाद रमन विरोधी गुट मजबूत हुआ है. इस गुट ने केंद्रीय संगठन से जुड़े नेताओं के बीच भी अपनी पैठ को मजबूत करने की दिशा में काम किया है. ऐसे में इस गुट के विरोध के बीच कमान हासिल करना रमन सिंह के सामने चुनौती हो सकती है.