प्रिय प्रधानमंत्री जी, जब चिताएं दिन रात जल रही हैं, जैसे भारत की उम्मीदें जल रही हों और लोग अस्पताल के गलियारों में सांसों के लिए तड़पते हुए मर रहे हों, तब समय है कि हम नेपोलियन बोनापार्ट के शब्द याद करें, ‘एक नेता उम्मीद का सौदागर होता है.’ जब भारत ने आपको दोबारा चुना, 130 करोड़ देशवासियों को यकीन था कि आप नए भारत की सर्वश्रेष्ठ उम्मीद हैं. आपने अर्थव्यवस्था खोलने, ब्यूरोक्रेसी पर लगाम कसने, अल्पसंख्यक तुष्टीकरण न्यूनतम करने और समान कर व्यवस्था सुनिश्चित करने की शपथ ली थी. आपका सिद्धांत था, ‘काम को बोलने दो, नेता को नहीं’. (मोदी)

सात साल बाद ब्रांड मोदी ऑक्सीजन पर है. महामारी संभालने की सरकार की क्षमता पर उठ रहे सवाल पर आपकी खामोशी से आपके प्रशंसक निराश हैं. गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के कुछ महीनों बाद ही आपके नए और व्यावहारिक तरीकों ने भयानक भूकंप के बाद राज्य को जल्द पटरी पर वापस ला दिया था.

कोविड-19 की पहली लहर के बाद दूसरे देशों की तुलना में वायरस को तेजी से रोकने पर आपकी सराहना हुई थी. स्वदेशी निर्माताओं को वैक्सीन खोजने और उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने पर आपको सराहा गया था. फिर आपने हाल ही में कहा, ‘हमारे सामने अदृश्य दुश्मन है. पिछले कुछ समय में देशवासियों ने जिस दर्द को झेला है, मैं भी वही दर्द महसूस कर रहा हूं.’

आपकी टीम की यह दु:ख भरी भावनाएं पहली क्यों नहीं जागीं? नदियों में तैरती लाशें, अस्पताल के बाहर मरते भारतीय, ऑक्सीजन की भीख मांगते मरीज और जीवनरक्षक दवाओं की कमी के दृश्यों ने आत्माओं को झकझोर दिया है. दु:खद है कि अब चाटुकारों द्वारा गाए जा रहे सकारात्मकता के कर्कश राग की जगह नकारात्मकता की आवाजें सुकुन दे रही हैं. नेता की सफलता उसकी टीम के सदस्यों पर निर्भर होती है.

जनता को लगता है कि आपकी पूरी टीम का उद्देश्य सिर्फ चाटुकारिता है, जिसमें मंत्री, मुख्यमंत्री, सिविल सर्वेंट और स्वघोषित इन्फ्लूएंसर शामिल हैं. जो आपका समर्थक होने का दावा करते हैं, वे सरकार पर हमला करने वालों के खिलाफ गालीगलौज से भरी तीखी निंदा में लिप्त रहते हैं. वे बचकानी और भद्दी वेबसाइट तथा सोशल मीडिया हैंडल बनाकर आपका और आपके प्रदर्शन का बचाव करते हैं. इस समय हमें आपके प्रदर्शन और खोए हुए प्रभाव की जरूरत है, प्रचार की नहीं.

केंद्र ने व्यर्थ वैक्सीन मैत्री क्यों अपनाई जबकि नागरिकों के लिए पर्याप्त वैक्सीन नहीं थीं? आखिर क्यों आपके खुशामद करने वाले सलाहकारों ने पर्याप्त ऑर्डर नहीं दिए?

भारतीयों के लिए सबसे ज्यादा डरावना है खुद को बचाने के लिए दूसरों पर निर्भरता. आपने हमें गौरवान्वित आत्मनिर्भर भारत बनने को कहा. लेकिन विदेशों से छोटी-मोटी मेडिकल सहायता लेने से हमारा गर्व मिट्‌टी में मिल गया. भारतीय अब संकोचित महसूस करते हैं, जब वे खबरों में पाकिस्तान द्वारा मदद की पेशकश देखते हैं.

उधर मंत्रालय और आधिकारिक विभाग ऑक्सीजन एक्सप्रेस चलाने और आयात के ऑर्डर देने के प्रचार अभियान में लगे हैं. अगर वे नुकसान होने पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं, तो पहले क्यों नहीं दी? क्योंकि वे चापलूसी में व्यस्त थे. राष्ट्रीय परिदृश्य में आपके आने के बाद भारतीयों को गर्व की भावना मिली थी. लेकिन त्रासदी एसिड की तरह होती है, जिसमें सब कुछ घुल जाता है. ऐसे ही वक्त में नेतृत्व के साहस की परीक्षा होती है. भारत को चिंता और समाधान की जरूरत है, मुकाबले की नहीं.

आपकी मंशा हमेशा अच्छी रही है. लेकिन लगता है कि चापलूसों, अविश्वसनीय जनसेवकों, मौकापरस्तों और अर्ध-शिक्षित वैज्ञानिकों ने व्यवस्था को पस्त कर दिया है. वे खुद ही विध्वंसक हैं. वे ब्रांड मोदी को नष्ट करना चाहते हैं. वे शोर मचाकर अपनी अयोग्यता छिपाना चाहते हैं, जबकि वास्तविक पेशेवरों को आप तक सच के साथ पहुंचने ही नहीं दिया जाता.

बेशक, एक दुर्जेय दल आपके खिलाफ काम कर रहा है, लेकिन जो अभी भी आप में उम्मीद देखते हैं, वे वास्तविक आत्मनिरीक्षण की अपेक्षा करते हैं. आपने उन्हें मौका दिया, जिन्होंने आपको निराश किया. अब समय है कि उन्हें सिस्टम से निकाला जाए. बीमार भारत अब भी मोदी की ओर उम्मीद से देख रहा है. दु:ख की खामोशी अब स्वर्णिम नहीं रही. इससे ज्वालामुखी फट सकता है.

(द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से साभार)

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