रायपुर- दंतेवाड़ा विधायक रहे भीमा मंडावी समेत चार जवानों की हत्या की जांच कर रही एनआईए को सफलता मिली है. घटना में शामिल दो आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है. हमले में शामिल 27 वर्षीय भीमा ताती और 36 वर्षीय मडका राम ताती को गिरफ्तार किया गया है. एनआईए ने आरोपियों को स्पेशल कोर्ट में पेश करते हुए पूछताछ के लिए रिमांड मांगा था, जिस पर कोर्ट ने मुहर लगा दी है. कोर्ट ने छह दिनों की कस्टडी एनआईए को सौंपी है.

बता दें कि लोकसभा चुनाव के पहले चरण का प्रचार खत्म होने के बाद दंतेवाड़ा लौट रहे तत्कालीन विधायक भीमा मंडावी के काफिले पर नक्सल अटैक हो गया था. यह अटैक उस वक्त हुआ था जब उनका काफिला श्यामगिरी गांव के करीब से गुजरा. घात लगाए बैठे नक्सलियों ने भीमा मंडावी की गाड़ी को आईईडी ब्लास्ट कर उड़ा दिया था. इस हमले में मंडावी समेत चार जवानों की हत्या हो गई थी. कुआकोंडा पुलिस थाना ने इस मामले में 10 अप्रैल 2019 को भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 148, 149, 302, 396, 307 और 120 (बी) तथा भारतीय सशस्त्र अधिनियम की धारा 25 और 27, एवं विस्फोटक उप अधिनियम की धारा 3 और 5 व धारा 13 (1) के तहत मामला दर्ज किया गया.
 
बीजेपी ने इस मामले को राजनीतिक साजिश का हिस्सा बताते हुए केंद्र सरकार से स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने जाने की मांग की थी. केंद्र सरकार ने इस मामले की जांच का जिम्मा एनआईए को सौंपा था. एनआईए ने इस पर 17 मई 2019 को केस दर्ज कर जांच का जिम्मा अपने हाथ लिया. जबकि छत्तीसगढ़ पुलिस भी इस हत्या की जांच कर रही थी. राज्य सरकार ने इस मामले में न्यायिक जांच भी आदेशित किया था. एनआईए ने राज्य पुलिस से विवेचना से जुड़े दस्तावेज मांगे थे, लेकिन राज्य पुलिस की ओर से यह नहीं दिए गए, जिसके बाद एनआईए ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी. मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस प्रशांत मिश्रा की एकल पीठ ने राज्य पुलिस की जांच पर रोक लगाते हुए विवेचना से जुड़े दस्तावेज एनआईए को सौंपे जाने का आदेश दिया था. 17 मार्च 2020 को राज्य पुलिस ने एनआईए को तमाम दस्तावेज सौंपे थे. 

हाल ही में राज्य शासन ने न्यायिक जांच आयोग का कार्यकाल छह महीने बढ़ाया

भूपेश सरकार ने भीमा मंडावी समेत चार जवानों की मौत मामले में गठित न्यायिक जांच आयोग का कार्यकाल हाल ही में छह महीने के लिए बढ़ाया है. अब आयोग को जांच के लिए 9 अगस्त 2020 तक का समय दिया गया है. गठन के समय आयोग को जांच के लिए तीन महीने का वक्त दिया गया था. लेकिन तीन महीने की अवधि बीतने के पहले ही कार्यकाल बढ़ा दिया गया था. गठन के बाद से अब तक आयोग का कार्यकाल दो बार बढ़ाया गया है. राज्य शासन ने जस्टिस सतीश के अग्निहोत्री की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था. आयोग ने अपनी प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में भीमा मंडावी की मौत की साजिश की बात से इंकार किया था. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ये घटना ना तो किसी साजिश का हिस्सा थी और ना ही विधायक की सुरक्षा में कोई लापरवाही की गई थी. इसके साथ ही रिपोर्ट में आधा दर्जन बातों को उल्लेख था जो कि पुलिस को क्लीन चिट दे रही थीं. हालांकि आयोग की प्रारंभिक रिपोर्ट में सामने आए तथ्यों पर बीजेपी ने कड़ा विरोध दर्ज कराया था. बीजेपी ने अपने आरोप में कहा था कि चुनावी फायदा लेने के लिए रिपोर्ट सार्वजनिक किया जाना इत्तेफाक नहीं है. बीजेपी ने न्यायिक जांच आयोग भंग करने और कार्रवाई करने की मांग करते हुए भारत निर्वाचन आयोग और राष्ट्रपति से शिकायत भी की थी.