बुखारेस्ट। यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण हजारों बच्चे बेघर हुये हैं, उन्हीं में से एक है-नौ माह का डैनियल सिंह, जिसे अपनी मां और भारतीय पिता के साथ कीव का घर छोड़ना पड़ा और अब वह मासूम भी भारत जाने का इंतजार कर रहा है।

डैनियल के पिता 29 वर्षीय पंकज सिंह और 26 वर्षीय मां क्रिस्टिना बड़े आराम से अपने मासूम बच्चे के साथ जिंदगी बिता रहे थे लेकिन इस भीषण युद्ध की विभीषका ने उन्हें बेघर कर दिया। वे अपने बच्चे के साथ पांच दिन तक लगातार सफर करते हुये यूक्रेन से भागकर रोमानिया पहुंचे हैं। रोमानिया में वे भारत के विशेष विमान का इंतजार कर रहे हैं, जिससे वे भारत लौट सकें। डैनियल अब तक भारत नहीं आया है।

डैनियल के पिता पंकज सिंह यूक्रेन की एक आईटी कंपनी में काम करते हैं। वह पिछले तीन साल के यूक्रेन में रह रहे थे। पंकज सिंह ने आईएएनएस को बताया कि किस तरह उनके परिवार को बेघर होने के बाद भावनात्मक और शारीरिक दुश्वारियां का सामना करना पड़ा।

उन्होंने कहा, हम अपनी बिल्डिंग के पार्किंग  के नीचे बने बम शेल्टर में ठहरे हुये थे। अत्यधिक ठंड और सुरक्षा की चिंता के कारण हमें कीव में अपना घर छोड़ना पड़ा। हमें अपने बच्चे डैनियल की भी चिंता थी और हम उसके भविष्य को लेकर परेशान थे।

पंकज सिंह के मुताबिक यूक्रेन और वहां के लोगों को यह अंदाज ही नहीं था कि उन पर रूस इतना बड़ा हमला कर देगा। उन्होंने कहा कि सब कुछ सामान्य था। किसी को ख्याल नहीं था कि हमला भी हो सकता है। अब लोगों को भुगतना पड़ रहा है लेकिन वे करारा जवाब भी दे रहे हैं।

कीव की मौजूदा स्थिति के बारे में उन्होंने कहा कि पूरे शहर में आवश्यक सामान की किल्लत है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को वहां तत्काल मदद पहुंचानी चाहिये। भले ही यूक्रेन के किसी हिस्से के लोगों तक युद्ध नहीं पहुंचा हो, लेकिन आवश्यक सामग्रियों की कमी और बिजली की किल्लत का प्रभाव उन पर जरूर पड़ेगा।

पंकज सिंह ने कहा कि जो लोग यूक्रेन से भागकर पड़ोसी देशों में चले गये, उन्हें युद्ध की विभीषका झेलनी नहीं पड़ी। उन्होंने मारिउपोल शहर की भयावह स्थिति के बारे में बताया। पंकज सिंह का एक घर मारियूपोल में भी है और उनकी पत्नी का भी एक परिजन उसी शहर में रहते हैं।

पंकज सिंह ने कहा कि मारियूपोल की स्थिति बहुत ही गंभीर है। लोगों को वहां कई दिनों से खाना नहीं मिला है और बिजली भी वहां नहीं है। उन्होंने बताया कि यूक्रेन में बहुत अधिक ठंड रहती है इसी कारण बिजली का वहां होना जरूरी है। बिजली से ही घर को गर्म किया जाता है।

उन्होंने बताया कि एक मार्च को उनका परिवार रोमानिया पहुंचा है। उन्होंने कहा, हमने पांच दिन सड़क पर सफर करते हुये बिताये हैं। हम लगातार ड्राइव कर रहे थे। कीव से बुखारेस्ट पहुंचने के रास्ते में सभी लोगों ने बहुत अच्छा बर्ताव किया। उन्होंने हमें खाना दिया और आश्रय दिया।

उन्होंने कहा, भारत की सरकार ने बुखारेस्ट में अपने नागरिकों के लिये समुचित व्यवस्था की है। हमारे दूतावास के कर्मचारी बहुत ही सहयोग कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां से भारतीय नागरिकों को स्वदेश भेजने की कार्रवाई पर निगरानी बनाये हुये हैं।