केरल. अगर आप इन गर्मियों में केरल घूमने जाने का प्लान बना रहे हों, तो हो जाइए सावधान. दरअसल केरल के कोझीकोड में खतरनाक वायरस फैल रहा है, जिसका नाम निपाह है. इस वायरस की वजह से अब तक 9 लोगों की मौत हो चुकी है. वायरस के फैलने वाली बीमारी अलग-अलग समय पर दुनिया में तबाही मचा चुकी है. अब ‘निपाह वायरस एन्सेफलाइटिस’ का कहर यहां लोगों पर टूट रहा है. 25 लोगों के खून में निपाह वायरस होने की पुष्टि हुई है. इन सभी को निगरानी में रखा गया है.नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे ने तीन नमूनों में निपाह वायरस की मौजूदगी पाई है. ये वायरस संक्रामक तौर पर महामारी का रूप ले सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक निपाह वायरस (NiV) एक नई उभरती हुई बीमारी है, जो जानवरों और मनुष्यों दोनों में गंभीर बीमारी की वजह बनता है.क्या होती है ये बीमारी और कैसे पैदा हुई
यह निपाह नाम का वायरस संक्रामक बीमारी के द्वारा फैलता है. ये 1998 में मलेशिया और 1999 में सिंगापुर में फैल चुका है. ये पहले पालतू सुअरों के जरिए फैला. फिर कई पालतू जानवरों मसलन कुत्तों, बिल्लियों, बकरी, घोड़े और भेड़ में दिखने लगा. ये मनुष्यों पर तेजी से असर डालता है. निपाह वायरस को ये नाम सबसे पहले मलेशिया के एक गांव में फैलने के बाद दिया गया. इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी सूची में शामिल किया हुआ है. जिसे स्वास्थ्य संगठन ने अपने रिपोर्ट में कहा है कि निपाह वायरस टेरोपस जीनस नाम के एक खास नस्ल से फैलता है.चमगादड़ से फैलती है ये बीमारी
यह एक ऐसी बीमारी है, जो चमगादड़ों से फैलता है. यह वायरस चमगादड़ों के मूत्र में मौजूद रहता हैं. इसी तरह उसकी लार और शरीर से निकलने वाले द्रव में भी यह पाया गया है. पहले ये माना गया कि ये सुअरों से जरिए फैलता है, लेकिन बाद में पता चला है कि ये वो सुअर थे, जो चमगादड़ों से संपर्क में आए. ये वो चमगादड़ थे जो वनों के कटने और अन्य वजहों से अपने रहने की जगह से उजड़ गए थे. बाद में जब ये बीमारी वर्ष 2004 में बांग्लादेश में फैली, तो पता लगा कि ये बीमारियां उन लोगों में आई, जिन्होंने वो कच्चा ताड़ का रस पिया, जहां चमगादड़ों का डेरा था.सांस लेने में हो सकती है दिक्कत
बताया जा रहा है कि भारत और बांग्लादेश जैसे देशों में ये बीमारी चमगादड़ों के जरिए सीधे मनुष्य में ट्रांसमिट होती है. इसलिए जिन लोगों को ये बीमारी होती है, उनसे संपर्क में आने के लिए जरूरी सावधानियां बरतनी चाहिए. कुछ केस में रोगी को सांस संबंधित समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है.
ये है लक्षण, जा सकते हैं कोमा में
इस निपाह वायरस की जिसे पकड़ता है, उसे बुखार के साथ सिर दर्द, थकान, भटकाव, मेंटल कंफ्यूजन जैसी स्थितियां बनती हैं. निपाह वायरस के रोगी 24-48 घंटों के भीतर कोमा में जा सकते हैं. फिर मौत भी हो सकती है. इससे ब्रेन में सूजन आ जाती है. मलेशिया में जब ये बीमारी फैली, तो इसका इलाज करने वाले 50 फीसदी लोग मौत के शिकार बन गए.
वायरस का कोई नहीं इलाज
इस वायरस का कोई पुख्ता इलाज नहीं है. अभी तक इसकी कोई वैक्सीन भी नहीं बनी है.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक मौत के आकड़े
साल/महीना | स्थान | केस | मौतें | मौत की दर |
जनवरी-फरवरी
2001 |
सिलीगुड़ी (भारत) | 66 | 45 | 68% |
अप्रैल-मई
2001 |
महरपुर (बांग्लादेश) | 13 | 9 | 69% |
जनवरी-2003 | नौगांव (बांग्लादेश) | 12 | 8 | 67% |
जनवरी-2004 | राजबारी (बांग्लादेश) | 31 | 23 | 74% |
अप्रैल-2004 | तंगगेल (बांग्लादेश) | 12 | 11 | 92% |
जनवरी-फरवरी
2007 |
ठाकुरगांव (बांग्लादेश) | 7 | 3 | 43% |
मार्च-2007 | कुश्तिआ, पबना, नटोर (बांग्लादेश) | 8 | 5 | 63% |
अप्रैल-2007 | नौगांव (बांग्लादेश) | 3 | 1 | 33% |
अप्रैल-2007 | नादिया (भारत) | 5 | 5 | 100% |
फरवरी-2008 | माणिकगंज (बांग्लादेश) | 4 | 4 | 100% |
अप्रैल-2008 | राजबारी और फरीदपुर (बांग्लादेश) | 7 | 5 | 71% |
जनवरी-2009 | गई बांधा, रंगपुर और नीलफमारी (बांग्लादेश) | 3 | 0 | 0% |
राजबारी (बांग्लादेश | 1 | 1 | 100% | |
फरवरी-मार्च
2010 |
फरीदपुर, राजबारी, गोपालगंज, मदारीपुर (बांग्लादेश) | 16 | 14 | 87.50% |
जनवरी-फरवरी 2011 | लालमोहिरहाट,दिनाजपुर,कोमिल्ला,नीलफमारी और रंगपुर (बांग्लादेश) | 44 | 40 | 91% |
फरवरी 2012 | जोयपुरहाट, राजशाही, माटोर, राजबारी और गोपालगंज (बांग्लादेश) | 12 | 10 | 83% |
कुल | 280 | 211 | 75% |