पटना। बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक आते ही राजनीति का पारा चढ़ गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बदला हुआ चेहरा इस बार चर्चा में है। बीस साल तक “रेवड़ी राजनीति” से दूरी बनाने वाले नीतीश अब लगातार लोकलुभावन घोषणाओं की झड़ी लगा रहे हैं। मुफ्त बिजली, महिलाओं को नकद सहायता, पेंशन और मानदेय में बढ़ोतरी जैसी घोषणाओं ने सियासी हलचल बढ़ा दी है। सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार की यह रणनीति चुनावी मजबूरी है या फिर विपक्ष के दबाव का नतीजा?

राजनीतिक विश्लेषक निशाना साध रहे

नीतीश कुमार के बदलते तेवर पर विपक्ष और राजनीतिक विश्लेषक निशाना साध रहे हैं। उनका कहना है कि कामकाज और सुशासन की राजनीति करने वाले नीतीश अब सीधे सरकारी खजाने का पिटारा खोलकर वोटरों को साधने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं जेडीयू नेताओं का तर्क है कि महिलाओं और वंचित तबकों को लाभ पहुंचाने पर सरकार का हमेशा से फोकस रहा है और यह योजनाएँ उसी कड़ी का हिस्सा हैं।

एनडीए को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया

उधर, महागठबंधन और प्रशांत किशोर की चुनौती ने भी एनडीए को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया है। राजद, कांग्रेस, वाम दल, वीआईपी और रालोजपा जैसे दलों का गठबंधन एक बड़ा सामाजिक समीकरण बना चुका है और तेजस्वी यादव को सत्ता का प्रमुख दावेदार माना जा रहा है। दूसरी ओर, प्रशांत किशोर अपनी “जन सुराज यात्रा” से युवाओं और पढ़े-लिखे तबके को जोड़ रहे हैं। उनका एजेंडा रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और पलायन जैसे मुद्दों पर केंद्रित है, जो युवाओं में खासा असर डाल रहा है।

योजनाओं का पिटारा खोल दिया

राजनीतिक माहौल में यह भी कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने 2018 के मध्यप्रदेश से सबक लिया है, जब शिवराज सिंह चौहान सरकार देर से “लाड़ली बहना योजना” लेकर आई और सत्ता गंवा दी। शायद इसी वजह से नीतीश सरकार ने पहले ही योजनाओं का पिटारा खोल दिया है, ताकि जनता की नाराज़गी आक्रोश में न बदले। कुल मिलाकर, नीतीश कुमार का यह बदला हुआ चेहरा चुनावी रणनीति का हिस्सा है। लोकलुभावन घोषणाएँ चुनाव में एनडीए की ढाल बनेंगी या विपक्ष की चुनौती भारी पड़ेगी—यह चुनावी नतीजे ही तय करेंगे।

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