जगदलपुर। एनएमडीसी नगरनार ने लिंगभेद के कारण 71 लड़कियों को नौकरी से वंचित कर दिया है. इस पर आज महिला आयोग ने सुनवाई किया. महिला आयोग की अध्यक्ष किरणमयी नायक ने महिला उत्पीड़न से संबंधित प्रकरणों में प्रशासन को संवेदनशीलता के साथ त्वरित कार्रवाई के निर्देश दिए है. एनएमडीसी के नगरनार संयंत्र में भू-विस्थापित महिलाओं को नौकरी दिए जाने के मामले में अगली सुनवाई 18 जनवरी को होगी.

सोमवार को जगदलपुर जिला कार्यालय के प्रेरणा कक्ष में छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग के समक्ष महिला उत्पीड़न और महिलाओं के साथ भेदभाव संबंधी 88 प्रकरण सामने आए. सुनवाई के दौरान महिला उत्पीड़न से संबंधित शिकायतों में संवेदनशीलता के साथ त्वरित कार्यवाही के निर्देश दिए गए. बडांजी थाना में बैंक प्रबंधक के विरुद्ध की गई शिकायत और करपावंड में महिला उत्पीड़न से संबंधित शिकायतों पर मामला दर्ज नहीं किए जाने पर उन्होंने नाराजगी जाहिर की.

सुनवाई के दौरान आवेदक महिलाओं ने बताया कि इस्पात संयंत्र की स्थापना के लिए 2001 में और 2010 में बड़ी मात्रा में भू-अर्जन किया गया था. 2001 में किए गए भू-अर्जन के बाद जहां सभी खातेदारों के परिवार के एक-एक सदस्य को नौकरी और मुआवजा दिया गया. वहीं 2010 में किए गए भू-अर्जन के बाद छत्तीसगढ़ शासन के भू-अर्जन नीति 2007 का हवाला देकर मात्र परिवार के पुरुष सदस्यों को ही नौकरी दी गई. जबकि बेटियों को नौकरी नहीं दी गई. जिसके खिलाफ 71 बेटियों ने महिला आयोग में आवेदन प्रस्तुत किया. आवेदकों ने इसे संविधान द्वारा दिए गए समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया. वहीं सुनवाई के दौेरान इस्पात संयंत्र प्रबंधन द्वारा पुनर्वास नीति में उल्लेखित नियम के अनुसार ही पात्र भू-विस्थापितों को नौकरी देने की बात कहते हुए बेटियों को नौकरी दिए जाने के लिए उच्चाधिकारियों से मार्गदर्शन प्राप्त करने की बात कही गई.

इस मामले की सुनवाई करते हुए आयोग की अध्यक्ष किरणमयी नायक ने कहा कि छत्तीसगढ़ शासन की पुनर्वास नीति संविधान द्वारा दिए गए समानता के अधिकार के ऊपर नहीं हो सकती. उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान लिंगभेद की अनुमति प्रदान नहीं करता है और किसी भी कानून में लिंगभेद को न तो मान्यता दी गई है, न ही बेटे या बेटी में फर्क किया गया है. उन्होंने एनएमडीसी के अधिकारियों से कहा कि वे लिंगभेद का समर्थन करने वाले किसी निर्णय से परिचित हों तो वे आगामी सुनवाई को प्रस्तुत करते हुए बेटियों को नौकरी नहीं देने के लिए छत्तीसगढ़ शासन के पुनर्वास नीति में उल्लेखित बिंदुओं को सामने रखें कि इस नीति में कहाँ लिखा है कि बेटियों को नौकरी नहीं दी जा सकती.

एक लाख रुपए प्रतिमाह का भरण पोषण हुआ निर्धारित

वहीं एक मामले में महिला आयोग ने अलग-अलग रह रहे डाॅक्टर दंपत्ति से संबंधित मामलों की सुनवाई के दौरान एक लाख रुपए प्रतिमाह के भरण पोषण की राशि पर पति-पत्नी आपसी राजीनामा से तलाक लेने के लिए सहमत हुए. दंतेवाड़ा में पदस्थ एक चिकित्सक और उनकी पत्नी अलग-अलग रह रहे हैं और उनके दो बच्चे भी हैं. आवेदिका महिला द्वारा बताया गया कि पिछले दो साल से उनके पति ने जीवन निर्वाह के लिए कोई आर्थिक राशि नहीं दी है. इससे बच्चों के पालन-पोषण में भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है और वह कर्ज लेकर अपना जीवन निर्वाह कर रही है. नायक ने चिकित्सक पति को अपने बच्चों के प्रति संवेदनशील होने की समझाईश देते हुए एक लाख रुपए प्रतिमाह के भरण पोषण की राशि पर पति-पत्नी आपसी राजीनामा से तलाक लेने के लिए सहमत किया गया.