पुरूषोत्तम पात्र, गरियबंद। किडनी की बीमारी से जिस सूपेबेडा में 74 लोगों की मौत हुई, वहां किसी को भी कोरोना के लक्षण नहीं दिखे. बीमारी से आहत ग्रामीणों की बदली हुई जीवन शैली व सावधानियों के चलते कोरना के मामले में सुखद परिणाम आया. किडनी बीमारी से लगातार मौत के बाद सुर्खियों में आये सुपेबेड़ा में एक भी कोरोना के मरीज नहीं निकले, न ही किसी को इसका कोई लक्षण है. विगत 6 अक्टूबर से किये गए ग्राम सर्वे की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है.

जनपद पंचायत देवभोग में पंचायत सचिव देवीलाल सोनवानी द्वारा सौपे गए रिपोर्ट के मुताबिक, ग्राम स्तर पर गठित 16 स्थानीय कर्मियों की टीम ने 5 दिनों में 424 घरों तक पहुंच निवासरत सभी 1704 लोगों की जानकारी एकत्र किया है. किसी में भी सर्दी खांसी या कोरोना के कोई लक्षण नहीं मिले, न ही सर्वे के पहले कोई पॉजेटिव पाए गए थे. जनपद पंचायत सीईओ एम एल मंडावी ने बताया कि गांव को संवेदनशील मानकर उसकी सतत मॉनिटरिंग किया गया. पंचायत के माध्यम से गांव को लगातार सेनेटाइज किया गया. स्थानीय कर्मियों के माध्यम से लगातार जागरूता अभियान चलाया गया.

पंचायत के साथ युवाओं ने निभाई अहम भूमिका

सरपंच चन्द्रकला व सचिव देवीलाल के अलावा ग्राम के युवा त्रिलोचन सोनवानी की टीम ने कोरोना के खिलाफ जंग में अहम भूमिका निभाई. स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव की ओर से नियुक्त स्वास्थ्य कर्मी त्रिलोचन ने बताया कि लॉकडाउन के दरम्यान गांव के सभी रास्ते बंद कर अनावश्यक आवाजाही को रोका गया. युवकों की ये भी जवाबदारी थी कि कोई घर में बासी भोजन न करें, नीबू के साथ गर्म पानी का सेवन हर घर में किया गया.

वर्तमान में किडनी रोग से 6 लोग पीड़ित है, उनके घरों में व आसपास मोहल्ला में सफाई व संक्रमण न फैले इसका बराबर ध्यान युवा रख रहे थे. हर व्यक्ति को मास्क लगाना अनिवार्य कर दिया गया. कोई जरूरी सामग्री गाव से बाहर जाकर लाना है उसके लिए युवा निर्धारित थे. जो बाहर से सामग्री लाकर सावधानी पूर्वक जरुरत मन्दों के घर तक पहुंचा कर खुद को सेनेटाइज या गर्म पानी से नहा कर सुरक्षित कर लेते थे.

74 मौत के बाद बदली तस्वीर

कांग्रेस सत्ता में आते ही सुपेबेड़ा में किडनी बीमारी समूल नष्ट करने का बीड़ा उठाया था.16 माह के भीतर तीन बार स्वास्थ्य मंत्री ने दौरा किया. सुविधा का जायजा लेने राज्यपाल तक पहुंची. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी नजर में रखे हुए थे. कोरोना संक्रमण के फैलने से पहले अप्रैल माह तक ग्रामीणों की जीवन शैली में बदलाव आ गया था. पानी उबाल कर पीना, गर्म भोजन करना, हर घर के दिनचर्या में शामिल हुआ था. किडनी की बीमारी झेल रहे ग्रामीणों ने कोरोना से जंग करने शुरू से ही ठान लिया था, परिणाम सुखद रहा.