सत्यपाल सिंह राजपूत, रायपुर। प्रदेश के दूरदराज के जिलों को छोड़िए राजधानी रायपुर में मानसिक रोगियों की देखभाल के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. कहने को रायपुर में जिला अस्पताल में पांच बिस्तरों का अस्पताल है, लेकिन यहां भी न तो कोई नर्सिंग स्टाफ है, न ही कोई वार्ड ब्वाय. वहीं राजधानी के जिम्मेदार अधिकारी जिम्मेदारी के नाम पर एक-दूसरे पर जवाबदेही थोप रहे हैं.
मानसिक रोगियों के लिए सरकारी व्यवस्था की पोल ठीक मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय के सामने एक मानसिक रोगी महिला खोल रही थी, जो सड़क के बीचों-बीच डिवाइडर में बैठकर हंगामा करती रही. कभी किसी पर पत्थर फेकती, तो कभी मुंह में पानी भरकर गुजरते लोगों पर पिचकारी मार रही थी. कई लोगों के लिए महिला की हरकत एक तमाशा थी, तो कई लोगों उस पर ध्यान दिए बगैर आगे बढ़ते जा रहे थे. अधिकारियों की लाचारी का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि जिला चिकित्सा अधिकारी डॉ. मीरा बघेल स्वयं मानती हैं कि मानसिक रोगियों की भर्ती के लिए उनके पास कोई व्यवस्था नहीं है, केवल ओपीडी में देख लेते हैं.
डॉ. बघेल ने लल्लूराम डॉट कॉम से चर्चा में कहा कि रायपुर में मानसिक रोगियों के लिए उचित व्यवस्था नहीं है. ओपीडी में मानसिक रोगियों को देख रहे हैं. उन्होंने लाचारी जताते हुए कहा कि अगर हम मानसिक रोगियों को रेस्क्यू करके लाएंगे भी तो रखंने कहां. पंडरी जिला अस्पताल में पांच बेड तैयार है, लेकिन वहां अभी स्टाफ नहीं है. मानसिक रोगियों के लिए प्रशिक्षित नर्स नर्सिंग स्टाफ, वार्ड ब्वाय, और रेस्क्यू टीम की भर्ती करने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि निम्हांस से एएमयू हुआ है, वहां से 19 लोगों को प्रशिक्षण दिया गया है, जो मानसिक रोगियों को देखते हैं.
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इस मामले पर रायपुर कलेक्टर भारतीदासन ने कहा कि यह काम समाज कल्याण विभाग का है, आगे क्या हो सकता है, व्यवस्था करते हैं. वहीं समाज कल्याण विभाग के संचालक पी दयानंद कहते हैं कि हमारे यहां मेंटल पेशेंट के लिए कोई भी हॉस्पिटल संचालित नहीं है, बल्कि हमारे यहां जो मानसिक रोगी ठीक होकर हॉस्पिटल से निकलते हैं, जिनका कोई नहीं होता, उनको सहारा दिया जाता है. इन ज़िम्मेदार अधिकारियों के बयान से समझा जा सकता है कि अभी तक ये तय नहीं है कि कौन सा विभाग क्या काम करेगा, किसकी क्या जिम्मेदारी है. अपने आपको बचाने के लिए एक-दूसरे पर जिम्मेदारी मढ़ रहे हैं.
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