सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दान लेने वाले राजनीतिक दलों और दान देने वाले कॉरपोरेट घरानों के बीच सांठगांठ के कथित आरोपों की विशेष जांच दल (SIT) से जांच कराने की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है.

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने आज इस मामले की सुनवाई की. दो गैर सरकारी संगठनों, कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की याचिका में चुनावी बॉन्ड योजना के तहत कथित चंदा लो और धंधा दो की व्यवस्था की न्यायिक निगरानी में जांच के लिए एक विशेष जांच दल गठित करने की मांग की गई थी.

CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने क्या कहा?

चीफ जस्टिस ने कहा कि हमसे कंपनियों और राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ जांच के लिए SIT बनाने, गलत तरीके से लिए पैसों को जब्त करने, कंपनियों पर जुर्माना लगाने, कोर्ट की निगरानी में जांच और इनकम टैक्स विभाग को 2018 के बाद से राजनीतिक पार्टियों के दोबारा असेसमेंट की भी मांग की गई.

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सीजेआई ने कहा कि वकीलों ने बताया कि हमारे पिछले आदेश के बाद सार्वजनिक हुए इलेक्टोरल बांड के आंकड़ों में राजनीतिक पार्टियों की सरकार से फायदा लेने के लिए कंपनियों की तरफ से चंदा देने की बात सामने आई है. उनका कहना है कि SIT बनानी जरूरी है क्योंकि सरकारी एजेंसियां कुछ नहीं करेंगी. उनके मुताबिक कई मामलों में एजेंसियों के कुछ अधिकारी खुद भी चंदे का दबाव बनाने में शामिल हैं.

सीधे जांच शुरू नहीं करा सकता कोर्ट- CJI

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इलेक्टोरल बांड की खरीद संसद के बनाए कानून के तहत हुई. उसी कानून के आधार पर राजनीतिक दलों को चंदा मिला. यह कानून अब रद्द किया जा चुका है. अब हमें तय करना है कि क्या इसके तहत दिए गए चंदे की जांच की ज़रूरत है. यह याचिकाएं यह मानते हुए दाखिल की गई हैं कि राजनीतिक दलों को चंदा फायदा कमाने के लिए दिया गया ताकि उन्हें सरकारी कॉन्ट्रैक्ट मिले या उनके हिसाब से सरकार की नीति बदले. याचिकाकर्ता यह भी मानते हैं कि सरकारी एजेंसियां जांच नहीं कर पाएंगी.

उन्होंने आगे कहा कि हमने याचिकाकर्ता से यह कहा कि यह सब आपकी धारणा है. अभी ऐसा नहीं लगता कि कोर्ट सीधे जांच करवाना शुरू कर दे. जिन मामलों में किसी को आशंका है, उनमें वह कानून का रास्ता ले सकता है. समाधान न होने पर वह कोर्ट जा सकता है. जांच को लेकर कानून में कई रास्ते हैं. मौजूदा स्थिति में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जांच करवाना जल्दबाजी होगी. याचिकाकर्ता दूसरे कानूनी विकल्प देखें.

CJI ने कहा कि कानूनी विकल्पों के उपलब्ध रहते सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करना सही नहीं है. राजनीतिक पार्टियों से चंदे की राशि ज़ब्त करने या इनकम टैक्स को दोबारा असेसमेंट के लिए कहना हमें ज़रूरी नहीं लगता. सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की निगरानी में SIT गठन की अभी कोई जरूरत नहीं है. जिन मामलों में एजेंसी जांच नहीं करती या जांच बंद कर देती है, उसके खिलाफ शिकायतकर्ता हाई कोर्ट जा सकता है.

बता दें कि इसी साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को गुमनाम फंडिंग की अनुमति देने वाली चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था और भारतीय स्टेट बैंक को चुनावी बॉन्ड जारी करना तुरंत बंद करने का आदेश दिया था. इसके साथ ही अदालत ने SBI को सभी दानदाताओं के विवरण सार्वजनिक करने का भी आदेश दिया था.

याचिकाओं में दावा किया गया था कि SBI द्वारा जारी किए गए चुनावी बॉन्ड के आंकड़ों से पता चला है कि इनमें से अधिकांश को कॉरपोरेट घरानों द्वारा राजनीतिक दलों को चंदा लो और धंधा लो की व्यवस्था के रूप में दान दिया गया था. याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि ये समझौते केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) या आयकर विभाग सहित केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई से बचने के लिए या फिर आर्थिक लाभ के लिए किए गए हो सकते हैं. इसलिए इनकी न्यायिक निगरानी में SIT से जांच कराई जाए.