अमित शर्मा, श्योपुर। आज से कई साल पहले गांवों में पंचों का कानून चलता था, जब भी कहीं पंचायत बैठती थी तो पंचों को परमेश्वर का दर्जा देकर उनके फैसले को माना जाता था, लेकिन आज के इस दौर में पंचायतों के फैसलों और पंचों को कोई भी परमेश्वर नहीं मानता। चुनाव जीतकर पंचायतों के पंच बनने वाले जनप्रतिनिधियों को भी पंचायत में कोई खास तवज्जो नहीं दी जाती। अब इसका असर पंचायत चुनाव में भी देखने को मिल रहा है।
दरअसल, एक तरफ पंचायत चुनाव को लेकर गहमागहमी का माहौल है। वहीं मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले की 236 ग्राम पंचायतों के 1300 वार्डों में इस बार किसी ने पंच पद के लिए नामांकन नहीं भरा है। मतलब जिले की 236 ग्राम पंचायतों के 1300 वार्ड में पंच पद के चुनाव नहीं होंगे। लोग का कहना है कि पंच परमेश्वर नहीं रहे तो पंचायतों में पंच बन कर भी क्या करेंगे।
बता दें कि, पंचायत चुनावों में पंचों का निर्वाचन जरूर होता है, लेकिन उनके पास कोई अधिकार नहीं होता है। पंचायतों के सरपंच-सचिव तक उनकी बात नहीं सुनते हैं। इससे वह अपने ही वार्ड का कोई विकास कार्य नहीं करवा पाते हैं। पंचों को मानदेय भी न के बराबर मिलता है। ऐसी परिस्थितियों में पंचों का चुनाव लड़ने में दिलचस्पी रखने वाले लोग भी इस चुनाव से पीछे हटने लगे हैं।
समाजसेवी और राजनीतिक जानकारों का कहना है कि, पंचों को कोई भी अधिकार नहीं है और उनकी सुनवाई नहीं होती। इस वजह से इस तरह के हालात निर्मित हुए हैं। उन्होंने सरकार से मांग की है कि पंचों को भी कुछ अधिकार दिए जाए और इस तरह का कोई प्रावधान किया जाए कि वह अपने वार्ड का विकास ठीक तरह से करवा सके।
वहीं इस बारे में जिले के कलेक्टर शिवम वर्मा से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी उन्हें पत्रकारों से बात करने का समय देना उचित नहीं समझा।
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