हिंदी की एक लोकप्रिय कहावत है ‘खटिया खड़ी करना’ जिसका अर्थ है जो आराम से जी रहा है उसकी नींद हराम कर देना. कुछ इसी तरह के डर के कारण बेंगलुरु के पास एक गांव, जिसकी आबादी करीब 3000 है, वहां धार्मिक परंपरा के अनुसार सदियों से कुछ परंपराओं का निर्वहन किया जा रहा है. ग्रामीण परंपराएं और मान्यताएं पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा रहे हैं. इसलिए इस गांव में कोई मुर्गी नहीं पालता है. ये गांव एक और खासियत के लिए भी मशहूर है, जिससे बहुत से लोग अनजान होंगे.
चारपाई या खाट में नहीं सोता कोई
बेंगलुरु से करीब 520 किमी और यादगीर जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर स्थित मैलारिलिंगय्या मल्लय्या का पवित्र धाम गांव की आबादी करीब 3000 है. इस गांव में मुख्य रूप से कपास, अरहर, मिर्च और गन्ने की खेती होती है. शुष्क भूमि वाले इस गांव की एक और ऐसी खासियत है, जिसके बारे में जानकर आप दंग रह जाएंगे. क्योंकि इस गांव में जिस तरह एक भी मुर्गी या मुर्गा नहीं है यानी कोई भी मुर्गी पालन व्यवसाय से नहीं जुड़ा है. उसी तरह यहां रहने वाला कोई भी शख्स चारपाई या खाट में नहीं सोता है.
खाट पर नहीं सोने की वजह
मैलारिलिंगय्या मल्लय्या यहां के आराध्य हैं, जिन्हें भगवान शिव का अवतार कहा जाता है. इनके बारे में कहा जाता है कि ये ऐसे देवता हैं, जिन्हें विशेष रूप से नींद के दौरान किसी तरह का व्यवधान बर्दाश्त नहीं हैं. खासकर मुर्गे की छोटी-छोटी आवाजों की वजह से जागने पर उन्हें परहेज है. ऐसे में यहां दूर-दूर तक मान्यता है कि अगर भगवान की नींद में खलल पड़ा तो गांव के लोगों को भगवान के कोपभाजन यानी उनके श्राप/ शाप का सामना करना पड़ेगा. खाट पर प्रतिबंध इसलिए है क्योंकि यहां पर ये भी मान्यता है कि मल्लय्या और उनकी पत्नी, देवी तुरंगा देवी, खाट पर विराजते हैं. वो भक्तों पर आशीर्वाद बरसाते हैं. इसलिए उनका सम्मान करने के लिए, सभी लोग यहां तक कि विकलांग और नवजात शिशुओं वाली माताएं भी देवी के गुस्से से बचने के लिए फर्श पर सोना पसंद करते हैं.
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