सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांगजनों के लिए आरक्षण के कार्यान्वयन पर चिंता व्यक्त की है। दरअसल, जो दिव्यांगजन सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के समान प्रदर्शन करते हैं और मेरिट सूची में स्थान बना लेते हैं, उन्हें अनारक्षित नहीं माना जाता। ऐसा ही अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आरक्षण के मामले में किया जाता है। अब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से इसमें सुधार करने के लिए कहा है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि आरक्षण में ऊपर की ओर बढ़ोतरी का पालन किया जाए। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए यही अनुमत है। इसका अर्थ है कि जब आरक्षित श्रेणी के छात्र मेरिट सूची में आते हैं तो उन्हें अनारक्षित माना जाएगा। इसका पालन दिव्यांग कोटे वाले लोगों के लिए भी किया जाना चाहिए।
आरक्षण का मूल उद्देश्य हो रहा विफल
दिव्यांगजन श्रेणी के अंतर्गत आवेदन करने वाले मेधावी अभ्यर्थियों को ऊपर की ओर बढ़ने का अवसर न देने का सीधा परिणाम यह होगा कि यदि दिव्यांग अभ्यर्थी अनारक्षित श्रेणी के कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त करता है, तब भी वह अभ्यर्थी अनिवार्य रूप से आरक्षित सीट पर ही कब्जा कर लेगा, जिससे कम अंक प्राप्त करने वाले दिव्यांग अभ्यर्थी को उस सीट/पद पर दावा करने का अवसर नहीं मिलेगा। पीठ के लिए फैसला लिखने वाले जस्टिस मेहता ने कहा कि हमारे विचार से, यह आरक्षण के मूल उद्देश्य को ही विफल करता है।
संवैधानिक वादे के केंद्र में रखा जाए-SC
अदालत ने कहा कि विकलांग व्यक्तियों का एक बड़ा वर्ग ऐतिहासिक और संरचनात्मक रूप से अवसरों से वंचित रहा है, सामाजिक, आर्थिक और संस्थागत बाधाओं की परतों में फंसा हुआ है और उन्हें ही संवैधानिक वादे के केंद्र में रखा जाना चाहिए। राज्यके कल्याणकारी उपायों का उद्देश्य केवल औपचारिक समानता सुनिश्चित करना नहीं है, बल्कि उन बाधाओं को दूर करना है ताकि सबसे कमजोर और वास्तव में वंचित लोग अपने लिए निर्धारित सहायता तक पूरी तरह पहुंच सकें।
Follow the LALLURAM.COM MP channel on WhatsApp
https://whatsapp.com/channel/0029Va6fzuULSmbeNxuA9j0m
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक