दिल्ली. जंग में हथियार के तौर इस्तेमाल किये जाने वाले यौन हिंसा के खिलाफ संघर्षरत कार्यकर्ता नादिया मुराद और डॉ डेनिस मुकवेगे को वर्ष 2018 के नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा की गयी है. नोबेल कमेटी की अध्यक्ष बेरिट रेइस-एंडर्सन ने शुक्रवार को यह घोषणा की. उन्होंने कहा, इन दोनों ने अपराधों से लडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
नोबेल कमेटी ने कहा कि दोनों को इसलिए पुरस्कार दिये जायेंगे क्योंकि उन्होंने यौन हिंसा को युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में हथियार के रूप में इस्तेमाल को खत्म करने के प्रयास किये.
कुछ साल पहले हत्या के प्रयास के बावजूद 63 वर्षीय स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. डेनिस मुकवेगे ने कांगोली महिलाओं की दुर्दशा को उजागर करने के लिए निरंतर अभियान चलाया. डॉ. मुकवेगे ने दुनिया के सबसे अधिक कठिन परिस्थितियों वाले स्थानों में से एक कांगो के बुकावु के ऊपर पहाड़ियों में एक खुले अस्पताल में काम किया. जहां वर्षों से कम बिजली या पर्याप्त एनेस्थेटिक नहीं थे. फिर भी उन्होंने अनगिनत महिलाओं की शल्य चिकित्सा की जो उनके अस्पताल में इलाज के लिए गईं थीं. वह कांगोली लोगों के एक चैंपियन और लिंग समानता के लिए वैश्विक वकील और युद्ध में बलात्कार को खत्म करने वाले कार्यकर्ता बनकर उभरे. साथ ही, उन्होंने दुनिया के अन्य युद्ध-प्रभावित हिस्सों की यात्रा के दौरान बचे हुए लोगों की मदद के लिए कार्यक्रम भी बनाये.
नादिया मुराद (25) इस्लामिक स्टेट समूह द्वारा यौन गुलामी के विरूद्ध महिलाओं की आवाज बनकर उभरीं. आईएसआईएस ने उत्तरी इराक में स्थित उनकी मातृभूमि पर कब्जा कर लिया था और वर्ष 2014 में याजीदी अल्पसंख्यकों के साथ अन्य महिलाओं और लड़कियों के साथ उनका भी अपहरण कर लिया गया था. आईएसआईएस समूह द्वारा बलात्कार के बाद बचने वाली अधिकांश महिलाओं ने जब अपना नाम देने तक से इनकार कर दिया था ऐसे में, सुश्री मुराद ने जोर देकर कहा कि वह पहचान और फोटोग्राफ देना चाहती हैं. इसके बाद मुराद ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अमेरिका के प्रतिनिधि सभा, ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स और कई अन्य वैश्विक निकायों के समक्ष बोलते हुए एक विश्वव्यापी अभियान शुरू किया. इस वर्ष इस प्रतिष्ठित शांति पुरस्कार के लिए 331 लोग तथा संगठन नामांकित किये गये थे.