बिलासपुर. राज्य सूचना आयुक्त के पद पर पूर्व प्रमुख सचिव एमके राउत की नियुक्ति पर सवाल खड़े हो गए हैं. हाईकोर्ट ने इस मामले को लेकर राज्य सरकार और एमके राउत को नोटिस जारी कर दिया है.

सामजिक कार्यकर्ता राकेश चौबे की याचिका पर ये नोटिस जारी किया गया है. राकेश चौबे ने बताया कि राज्य सरकार के पूर्व वरिष्ठ नौकरशाह की नियुक्ति पूरी तरह से नियमों के विरुद्ध की गई है. इसे लेकर उन्होंने शनिवार को हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी. जिस पर हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस राधाकृष्णन और जस्टिस शरद गुप्ता की बेंच ने सरकार और राउत को नोटिस जारी कर दिया है. राज्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति को लेकर कई आरटीआई और सामजिक कार्यकर्ताओं ने नियुक्ति के पहले भी राज्यपाल को ज्ञापन देकर नियमों की अनदेखी संबंधी हो रही अनियमितता से अवगत करवाया था.

राकेश चौबे का कहना है कि नवंबर में राउत रिटायर हुए और दिसबंर में उनकी नियुक्ति हो गई. जबकि उन पर ईडी में फेरा कानून के तहत मामला चल रहा है. चौबे ने बताया कि राउत ने रेरा के अध्यक्ष पद के लिए भी आवेदन दिया था लेकिन विजिलेंस की रिपोर्ट में ईडी जांच की बात सामने आई थी जिसकी वजह से उनका आवेदन खारिज हो गया था.

जबकि मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर उनकी नियुक्ति को लेकर बिल्कुल भी पारदर्शिता नहीं बरती गई. न तो इसका विज्ञापन निकाला गया न ही आवेदन मंगवाए गए. सरकार ने पिछले दरवाज़े से उनकी नियुक्ति करा दी. इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री ने न तो स्क्रूटनी कमेटी बनाई न ही विजिलेंस की रिपोर्ट मंगाई. सूचना के अधिकार कानून में ये प्रावधान है कि सूचना आयुक्त पत्रकार, समाजिक कार्यकर्ता, वैज्ञानिक जैसे लोग ही बन सकते हैं. लेकिन सरकार ने नौकरशाह को इस पद पर बिठा दिया.

उन्होंने बताया कि सूचना आयुक्त की नियुक्ति एक कमेटी करती है. जिसमें सीएम नेता प्रतिपक्ष और गृहमंत्री शामिल हैं.