रामकुमार यादव, सरगुजा। आम लोगों के लिए आतंक का पर्याय बने जंगली हाथियों को काबू में करने के लिए लाए गए कुमकी अब सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। हर माह इनके पीछे वन विभाग लाखों रुपये खर्च कर रहा है लेकिन नतीजा सिफर ही है।

सरगुजा जिले में हाथियों के आवागमन से आए दिन सरगुज़ा वासी परेशान रहते है । सरगुजा जिले में हाथी और इंसान आए दिन आमने-सामने होते रहते हैं। जिसमें इंसानों की कई बार जान भी जा चुकी है। इसे देखते हुए सरगुजा वन विभाग ने कुमकी हाथियों के पांच सदस्यीय दल को सरगुजा वन मंडल में रेस्क्यू करने के लिए मंगाया था।

यह कुमकी हाथी सरगुजा जिले के आसपास रेस्क्यू करने के लिए आए हुए थे पर 2 साल में केवल तीन बार ही इनके द्वरा रेस्क्यू किया गया है और इन हाथियों का बजट महीने का तीन लाख रुपये से भी ज्यादा आता है। इस पर भी अब बड़ी विडंबना यह देखने को मिल रही है कि दो कुमकी मादा हाथियों ने दो शावकों को जन्म दिया है, जिससे अब 2 से 4 साल तक यह हाथी किसी भी तरह के रेस्क्यू पर नहीं जा पाएंगे।

बताया जा रहा है कि अंबिकापुर सरगुजा वन विभाग के अधिकारियों द्वारा जब इन हाथियों को लाया गया तब यह हाथी गर्भावस्था के दौर से गुजर रही थी। लेकिन सरगुजा वन विभाग के अधिकारियों और चिकित्सकों को इस बात की भनक तक नहीं लगी। जब हाथियों ने बच्चों को जन्म दिया तब इन्हें मालूम हुआ कि यह हाथी तो गर्भवती थी। हाथियों के बच्चे देने के बाद अब यह हाथी 2 से 4 साल तक किसी भी तरह के कार्य नहीं कर पाएंगे और वन विभाग को लाखों रुपयों का खर्च इनके पालन में करना पड़ रहा है।

वहीं बात करें अंबिकापुर उदयपुर वन परिक्षेत्र में तो यहां आए दिन हाथियों के होने की जानकारी वन विभाग को मिलती रहती है। लेकिन कुमकी हाथियों द्वारा सरगुजा में अब तक इन हाथियों को हटाने किसी भी तरह का रेस्क्यू ऑपरेशन नहीं किया गया है। सभी कुमकी हाथियों को हाथी रेस्क्यू सेंटर तमोर पिंगला में रखा गया है। जहां पांच कुमकी हाथी दो अचानकमार से लाए गये हाथी और दो शावक मिलाकर कुल 9 हाथियों को रखा गया है।