नमाज (Salah) के लिए ब्रेक की दशकों पुरानी परंपरा को खत्म कर दिया गया है. हिमंता (Himanta Biswa Sarma) सरकार ने असम विधानसभा (Assam Legislative Assembly) में 90 वर्षो से चली आ रही परंपरा को बदल दिया. हालांकि सरकार के इस फैसले के बाद विरोध भी देखने को मिल रहा है. असम (Assam) सरकार ने ये फैसला पिछले साल अगस्त में लिया था, जिसे अब बजट सत्र के दौरान लागू किया है.

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असम सरकार ने राज्य में 90 वर्षो से चली आ रही विधानसभा में ‘नमाज के लिए ब्रेक’ खत्म कर दिया है. सरकार ने विधानसभा में इस फैसले को लागू कर दिया है. विपक्षी दलें अब इस जमकर विरोध कर रहे है.

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सरकार के इस फैसले पर AIUDF विधायक रफीकुल इस्लाम ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यह संख्या बल के आधार पर थोपा गया निर्णय है. विधायक ने आगे कहा कि विधानसभा में करीब 30 मुस्लिम विधायक हैं. उन्होंने कहा कि हमने सरकार के इस कदम के खिलाफ अपने विचार व्यक्त किए थे, लेकिन उनके (BJP) पास संख्या है और वे उसी के आधार पर इसे थोप रहे हैं.

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असम विधानसभा अध्यक्ष विश्वजीत दैमारी ने संविधान को देखते हुए प्रस्ताव दिया था कि असम विधानसभा को अन्य दिनों की तरह शुक्रवार को भी अपनी कार्यवाही का संचालन किया जाना चाहिए, इस नियम को कमेटी के सामने रखा गया था. जिसे कमेटी ने सर्वसम्मति से पास कर दिया.

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जुमे की नमाज करने मिलता था ब्रेक

गौरतलब है कि असम विधानसभा में लागू इस परंपरा के तहत मुस्लिम विधायकों को जुमे की ‘नमाज’ अदा करने के लिए दो घंटे का ब्रेक दिया जाता था. विधानसभा में इस दौरान कार्यवाही स्थगित रहती थी. इस फैसले पर विपक्ष ने सदन ने सख्त ऐतराज़ जताते हुए इस बहुसंख्यकों की मनमानी बताया है. इसके जवाब में स्पीकर बिस्वजीत दैमारी ने कहा कि संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के तहत ये कदम उठाया गया है. बाकी दिनों की तरह शुक्रवार को भी बिना किसी नमाज़ ब्रेक के सदन चलेगा.

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सीएम हिमंता ने ने दिया जवाब

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने विधानसभा के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह परंपरा मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्ला की तरफ से 1937 में शुरू की गई थी, और इस प्रावधान को बंद करने का फैसला “उत्पादकता को प्राथमिकता देता है.

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