राजधानी दिल्ली के निजी स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि पर अब अंकुश लग सकेगा. उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना(LG V.K Saxena) ने दिल्ली स्कूल शिक्षा (Transparency in Fixation and Regulation of Fees)अधिनियम, 2025 को मंजूरी दे दी है. सरकार ने अधिनियम को अधिसूचित कर दिया है. इस कानून के तहत अभिभावकों को पहली बार वीटो पावर दिया गया है, जिससे वे स्कूलों की फीस वृद्धि पर आपत्ति जता सकेंगे.
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मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने इसे अभिभावकों की ऐतिहासिक जीत करार दिया. उन्होंने कहा कि यह कानून शिक्षा के व्यावसायीकरण पर रोक लगाएगा और फीस निर्धारण में पारदर्शिता तथा जवाबदेही सुनिश्चित करेगा. वर्षों से अभिभावक निजी स्कूलों की मनमानी शुल्क वृद्धि से परेशान थे. यह नया कानून स्कूलों में एक सुदृढ़, पारदर्शी और सहभागी शुल्क विनियमन प्रणाली स्थापित करेगा. उन्होंने कहा कि अब शिक्षा कोई व्यावसायिक सौदा नहीं होगी, बल्कि एक अधिकार और लोककल्याण का साधन बनेगी. मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि कानून के तहत अभिभावक, शिक्षक, प्रबंधक और सरकारी प्रतिनिधि मिलकर स्कूल स्तरीय फीस नियंत्रित समितियां बनाएंगे. साथ ही, उन्होंने आरोप लगाया कि पूर्ववर्ती सरकारों ने इस मुद्दे को कभी गंभीरता से नहीं लिया, जिसके कारण अभिभावकों को लगातार परेशानी झेलनी पड़ी.
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पहली बार सभी निजी स्कूल कानून के दायरे में
दिल्ली में मनमानी फीस बढ़ोतरी पर अंकुश लगाने वाले इस नए कानून में पहली बार सभी निजी स्कूलों को शामिल किया गया है. इससे पहले 1973 के पुराने कानून के तहत केवल करीब 300 स्कूल ही कवर होते थे. अब यह संख्या बढ़कर 1700 से अधिक स्कूलों तक पहुँच गई है. नए प्रावधानों के तहत अभिभावकों को भी कई अधिकार प्रदान किए गए हैं—वे न केवल फीस निर्धारण प्रक्रिया में शामिल होंगे, बल्कि जरूरत पड़ने पर फीस वृद्धि को वीटो करने का अधिकार भी रखेंगे.
फीस तय करने में अभिभावकों की भागीदारी
नए कानून के तहत स्कूलों में स्कूल स्तरीय फीस नियंत्रित समिति बनाई जाएगी. इसमें स्कूल प्रबंधन का एक प्रतिनिधि अध्यक्ष होगा, प्रधानाचार्य सचिव होंगे, जबकि पांच अभिभावक लॉटरी प्रणाली से चुने जाएंगे. इनके अलावा तीन शिक्षक और एक सरकारी पर्यवेक्षक भी शामिल होंगे.
यह समिति हर साल 15 जुलाई तक फीस निर्धारण का निर्णय करेगी और तय की गई फीस तीन साल तक नहीं बदलेगी.
शिकायत और वीटो का अधिकार
यदि 15% अभिभावक फीस वृद्धि को गलत मानते हुए शिकायत दर्ज कराते हैं तो जिला स्तरीय समिति इसकी सुनवाई करेगी.
स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले अपना वित्तीय ब्योरा और सुविधाओं की जानकारी प्रस्तुत करनी होगी.
अभिभावकों को वीटो अधिकार होगा, यानी उनकी असहमति पर फीस नहीं बढ़ाई जा सकेगी.
फीस वृद्धि को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) से जोड़ा गया है ताकि अनावश्यक लाभ रोका जा सके.
कड़ी सजा और जुर्माना
अवैध फीस वृद्धि पर पहली बार ₹1 लाख से ₹5 लाख तक जुर्माना.
दोबारा उल्लंघन पर ₹2 लाख से ₹10 लाख तक का जुर्माना.
फीस रिफंड में देरी होने पर हर 20 दिन में जुर्माना दोगुना, फिर तिगुना होता जाएगा.
गंभीर मामलों में स्कूल की मान्यता रद्द, प्रबंधन निष्क्रिय या सरकार सीधे प्रबंधन अपने हाथ में ले सकती है.
समयसीमा तय
15 जुलाई तक स्कूल स्तरीय समिति का निर्णय.
30 जुलाई तक जिला स्तरीय समिति का निर्णय.
यदि 45 दिनों तक मामला निपटारा नहीं होता तो यह अपीलीय समिति को भेजा जाएगा.
पुराने कानून से बड़ा दायरा
अब तक फीस नियमन का कानून केवल 300 स्कूलों तक सीमित था, लेकिन इस नए अधिनियम के तहत 1700 निजी स्कूल कानूनी दायरे में आएंगे.
उठ रही चिंताएं
हालांकि, कानून को लेकर कुछ सवाल भी सामने आ रहे हैं.
अतीत में हुई मनमानी फीस वृद्धि पर कोई कार्रवाई नहीं होगी.
अभिभावकों का चयन लॉटरी प्रणाली से होना प्रतिनिधित्व पर सवाल खड़े कर रहा है.
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