Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राज्य की मतदाता सूची में एक बड़ा बदलाव हुआ है। चुनाव आयोग द्वारा किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (एसआईआर) के बाद यह सामने आया है कि राज्य में पुरुषों के मुकाबले महिला मतदाताओं का अनुपात घट गया है। जनवरी 2025 में जहां प्रति हजार पुरुषों पर 914 महिला मतदाता थीं, वहीं अब यह संख्या घटकर 892 रह गई है। यानी सिर्फ सात महीनों में हर हजार पुरुषों पर 22 महिलाओं की कमी दर्ज की गई है।

एसआईआर अभियान के दौरान राज्यभर में मतदाता सूची का पुनरीक्षण किया गया, जिसमें 22.74 लाख महिलाओं और 15.55 लाख पुरुषों के नाम काटे गए। अधिकारियों के अनुसार, इनमें से अधिकतर नाम दोहराव, मृत्यु या स्थानांतरण जैसे कारणों से हटाए गए हैं। हालांकि इस प्रक्रिया का असर महिलाओं के मतदाता अनुपात पर अधिक पड़ा है। भोजपुर को छोड़कर बिहार के सभी 37 जिलों में महिला मतदाताओं का लिंगानुपात घटा है।

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, किशनगंज जिले में महिलाओं का लिंगानुपात सबसे तेजी से गिरा है। जनवरी 2025 में यहां प्रति हजार पुरुषों पर 937 महिलाएं थीं, जो अब घटकर 874 रह गई हैं। यानी सात महीनों में 63 अंकों की गिरावट। इसी तरह भागलपुर में 43, पूर्णिया में 38, बक्सर में 36 और सीवान में 34 अंकों की कमी आई है। वर्तमान में भागलपुर जिला सबसे बेहतर स्थिति में है, जहां प्रति हजार पुरुषों पर 939 महिला मतदाता हैं। वहीं लखीसराय और पश्चिमी चंपारण में यह आंकड़ा सबसे कम 872 दर्ज किया गया है।

एसआईआर के बाद राज्य के औसत 892 से नीचे 12 जिलों का लिंगानुपात चला गया है। इनमें सीतामढ़ी, मुंगेर, समस्तीपुर, पूर्वी चंपारण, किशनगंज, शिवहर, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, बेगूसराय, भोजपुर, रोहतास, जहानाबाद और औरंगाबाद शामिल हैं। वहीं, केवल 11 जिलों में महिला मतदाताओं का लिंगानुपात 900 से अधिक रहा है गया, नवादा, जमुई, कटिहार, मधेपुरा, सहरसा, शेखपुरा, सुपौल, अररिया और भागलपुर।

जनवरी 2025 में प्रकाशित सूची के अनुसार, तब 18 जिलों में महिलाओं का लिंगानुपात 2011 की जनगणना के औसत (918) से बेहतर था, लेकिन अब यह संख्या घटकर केवल पांच जिलों तक सीमित रह गई है मधेपुरा, सहरसा, वैशाली, खगड़िया और भागलपुर। यानी अब राज्य का मतदाता लिंगानुपात जनगणना 2011 के औसत से भी काफी नीचे चला गया है।

विशेष पुनरीक्षण के बाद बिहार में कुल मतदाताओं की संख्या में भी कमी आई है। जनवरी 2025 में जहां 7.89 करोड़ मतदाता थे, वहीं नई सूची (30 सितंबर 2025) के अनुसार अब यह संख्या घटकर 7.42 करोड़ रह गई है। यानी करीब 47 लाख नाम हटाए गए, जिनमें महिलाओं की संख्या पुरुषों से कहीं अधिक रही है। यही कारण है कि यह गिरावट अब राजनीतिक दलों के लिए चिंता का विषय बन गई है।

बिहार की राजनीति में महिला मतदाताओं की भूमिका हमेशा से निर्णायक रही है। पिछले कई चुनावों में महिलाओं की मतदान दर पुरुषों से अधिक रही है। यही वजह है कि इस बार भी सभी राजनीतिक दल महिला वोटरों को साधने में जुट गए हैं। एनडीए सरकार ने हाल ही में सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि बढ़ाकर 1100 रुपये प्रतिमाह कर दी है। इसके अलावा जीविका दीदियों और आंगनबाड़ी सेविकाओं के मानदेय में भी वृद्धि की गई है। सरकार का दावा है कि महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए स्वयं सहायता समूहों और स्वरोजगार योजनाओं को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।

वहीं, महागठबंधन ने भी अपने चुनावी वादों में महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत करने का दावा किया है। राजद-कांग्रेस गठबंधन ने घोषणा की है कि अगर उनकी सरकार बनती है तो एक दिसंबर से राज्य की सभी महिलाओं को प्रतिमाह 2500 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी। इसके अलावा महिला शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार से जुड़ी कई योजनाओं का भी प्रस्ताव रखा गया है।

राज्य में महिला मतदाताओं की संख्या घटने के बावजूद उनका राजनीतिक प्रभाव कम नहीं हुआ है। वर्तमान में बिहार में करीब 3.5 करोड़ महिला मतदाता हैं, जो किसी भी दल की जीत या हार तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दल अब अपने घोषणापत्र और प्रचार अभियान में “महिला सशक्तिकरण” को केंद्र में रख रहे हैं।

एसआईआर के आंकड़े भले ही मतदाता सूची में असंतुलन की तस्वीर दिखा रहे हों, लेकिन चुनावी राजनीति में महिलाओं का महत्व पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है। आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में यह तय माना जा रहा है कि महिला मतदाता ही एक बार फिर राज्य की सियासत की दिशा और दशा तय करेंगी।

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