कुमार इंदर, जबलपुर। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार आज 21 मार्च को मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण से जुड़ी 52 ट्रांसफर याचिकाओं पर सुनवाई की। कोर्ट ने इस दौरान स्पष्ट करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में पहले ही इस मुद्दे पर निर्णय लिया जा चुका है। मध्य प्रदेश सरकार चाहे तो वह आदेश लागू कर सकती है। 

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अब सवाल उठ रहा है कि क्या वास्तव में 27% ओबीसी आरक्षण को लागू करने के लिए मध्य प्रदेश सरकार प्रतिबद्ध है, या फिर इसे सिर्फ कानूनी दायरे में उलझाकर टाल मटोल करने का प्रयास कर रही है। मामला अब सिर्फ आरक्षण तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि सरकार की नीति और नीयत पर भी सवाल खड़े कर रहा है। 

याचिकाकर्ता के वकील विनायक प्रसाद शाह ने कहा कि छत्तीसगढ़ में ओबीसी का 27% आरक्षण लागू है। छत्तीसगढ़ में SC, ST, OBC और EWS मिलाकर 81% आरक्षण लागू है। इसी पैटर्न पर मध्य प्रदेश में भी ओबीसी की नियुक्ति हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने पर मामले को फिर से देखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने समस्त मामलो को छतीसगढ़ के मामलो से क्लव करने का आदेश दिया है। 

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वैसे तो जब कोई सरकार किसी आरक्षण या नीति को लागू करना चाहती है, तो वह अदालत से प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई की मांग करती है। मध्य प्रदेश सरकार ने इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया, जिससे यह संकेत मिलता है कि सरकार जानबूझकर देरी कर रही है।  ताकि 27% ओबीसी आरक्षण लागू ही न हो सके। इससे ओबीसी वर्ग के लाखों अभ्यर्थियों का भविष्य अधर में लटका हुआ है, और वे न्याय की आस में भटक रहे हैं। अब देखना गौरतलब होगा कि सरकार आगे इस पर क्या फैसला लेती है। 

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