गोविंद पटेल, कुशीनगर. कुशीनगर जिले को 30 नवंबर 2018 को ओडीएफ घोषित कर दिया गया. लेकिन जमीनी धरातल पर सच्चाई इसके उलट है. जनपद का कोई भी ऐसा ग्राम पंचायत नहीं है. जहां के लोग अभी भी खुले में शौच नहीं जा रहे हों. जबकि स्वच्छ भारत अभियान के तहत घर-घर शौचालय का निर्माण भी कराया गया. पर इसके बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है. या कहे तो फिर इसे कागजों में हीं ओडीएफ घोषित किया गया है. जिससे इस अभियान के क्रियांवयन पर कई सवाल खड़े हो रहे है.
यदि सही तरीके से ओडीएफ घोषित किया गया होता तो यह स्थित देखने को नहीं मिलती है. ग्रामीण क्षेत्रों की बात तो छोड़िए विकास खंण्ड के मुख्यालयों का भी यही हाल है. जो स्वच्छता भारत अभियान को मुंह चिढ़ा रहा है. ओडीएफ घोषित करने के नाम लेकर विकास खंड से लेकर जिला स्तर पर बड़ा अभियान चलाया गया था पर वह अभियान सिर्फ समारोह तक ही सिमटकर रह गया.
मुख्य सड़को सहित गांवों को जाने वाली सड़क पर दिखती है गंदगी
खड्डा विकास में खड्डा से पडरौना को आने वाले मुख्य मार्गों हो चाहे रामकोला से कसया, नौरंगिया से कप्तानगंज,चाहे जनपद से गुजरने वाली फोरलेन एनएच आई के सर्विस लेन के साथ-साथ नहर के इलाकों में लोग खुले में शौच करते हुए दिख जाते हैं. जिस पर चलना मुश्किल हो जाता सड़कों पर खुले में शौच को रोकने-टोकने का इन लोगों पर इस अभियान का कोई भी असर नहीं दिखता है. इसके अलावे ग्रामीण इलाकों को जाने वाली सड़कों पर भी कुछ ऐसा ही हाल देखने को मिलता है. गांवों के प्रवेश द्वार पर ही सड़क किनारे किए गए शौच लोगों का स्वागत करता है. जबकि ओडीएफ अभियान के तहत हर घरो में शौचालय का निर्माण कराया गया है. इसके बाद भी लोग खुले में ही शौच कर रहे है. कोई भी ऐसा इलाका नहीं है जहां सुबह-शाम लोग खुले में शौच करते हुए नहीं दिखे. वहीं गांवो के सम्मानित लोगों से खुले में शौच करनें से रोकने का उपाय पूछा जाता है तो उनका यही कहना रहता अगर गांव का कोई सम्मानित व्यक्ति समझाता है तो ये झगड़े पर उतारू हो जाते जब तक सरकार खुले में शौच पर जुर्माने का प्रावधान नहीं करती तब तक धरती का कोई प्राणी इनको खुले में शौच करने से रोक सकता.
कई गांवों में शौच के लिए शौचालय का लोग नहीं कर रहे उपयाेग
स्वच्छ भारत मिशन अभियान के तहत जनपद में शौचालय का निर्माण कराया गया है. जिनमें में से शौचालय निर्माण के लिए प्रोत्साहन राशि के रूप में 12-12 हजार की राशि का भुगतान भी किया जा चुका है. लेकिन जो स्थिति है वह कहीं न कहीं कई सवाल खड़े कर रहे है. और सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण कराया गया.
या तो कहे कि शौचालय का निर्माण कागजों पर दिखा दिया गया. लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है. इसमें बड़े पैमाने पर अनियमितता भी बरती गई है. सूत्रों के अनुसार यदि इसकी जांच कराई जाए तो यह एक बड़ा घोटाला हो सकता है. क्योंकि प्रोत्साहन राशि भुगतान में काफी अनियमित्ता बरती गई है.
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एक ही घर में एक ही शौचालय के तस्वीर पर परिवार के अलग-अलग सदस्यों के नाम पर राशि का भुगतान भी किया गया है. जबकि अभी भी वैसे घरो में एक ही शौचालय है. वह भी शौचालय इस अभियान के पहले से ही बना हुआ है. पर अधिकारियों का ध्यान उस ओर नहीं जा रहा है.
इसके अलावे कई ऐसे लोग भी हैं. जिन्होंने प्रोत्साहन राशि लेकर शौचालय का निर्माण तो करा लिया. पर उसका उपयोग शौच करने के बजाए धान, भूसा व अन्य कबाड़ा सामान रखने में कर रहे है. यदि इसकी जांच कराई जाए तो ऐसी कई तस्वीरे दिख जाएंगी.
5 दिसंबर 2018 को किया गया था खुले में शौच से मुक्त
2018 को जनपद के सभी गांवों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया था. तत्कालीन जिलाधिकारी ने इसकी घोषणा की थी. लेकिन यह घोषणा हवा-हवाई साबित हुई. इसके बाद लोगों को शौचालय का उपयोग करने के लिए मॉर्निंग व इवनिंग फ्लोअप भी चलाया गया. स्वच्छता समिति को गांवों में इसकी जिम्मेवारी दी गई. पर यह सब कुछ दिनों तक ही सक्रिय दिखा.
ओडीएफ घोषणा के कुछ महिनों बाद से ही इसे छोड़ दिया गया. आज भी लोग उसी गंदगी के बीच अपनी जिंदगी जी रहे हैं. लेकिन सिर्फ सिस्टम को ही जिम्मेवार बताकर हम अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते है. अपने गांव शहर व गलियों को स्वच्छ रखने की जिम्मेवारी भी आम लोगों की है. यदि घरों में शौचालय बनाया गया है. तो उसका उपयोग करना हम सभी को ही है. लेकिन लोग सड़कों पर खुले में सड़कों के किनारे शौच करते रहते.
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