वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। छत्तीसगढ़ को राज्य बने 17 साल हो गए, छत्तीसगढ़ी को राजभाषा बने 9 साल हो गए लेकिन इन 9 सालों में छत्तीसगढ़ी के विकास के लिए हम 9 कोस भी नहीं चल पाएं हैं. सिवाएं छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के गठन के. राज्य निर्माण के 7 साल बाद 28 नवंबर 2007 को छत्तीसगढ़ी राजभाषा अधिनियम विधेयक विधानसभा में पारित हुआ. छत्तीसगढ़ी को प्रदेश का राजभाषा घोषित किया गया. राजभाषा के प्रचार-प्रसार और उसे सरकारी कामकाज की भाषा बनाने के लिए छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का गठन किया गया. लेकिन क्या सरकार की मंशा इसके पीछे सचमुच छत्तीसगढ़ी को सरकारी कामकाज की भाषा बनाने की रही है इसे लेकर आज की स्थिति को देखें तो संदेह पैदा होता है.
क्योंकि राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ के कई क्षेत्रों में विकास के किर्तीमान रचे हैं, पर छत्तीसगढ़ी के विकास के लिए सिर्फ छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग बनाकर इतिश्री कर लिया. सवाल उठना लाजिमी है कि क्योंकि जिस उद्देश्य के साथ राजभाषा छत्तीसगढ़ी को बनाया गया वह महज कागजों तक ही सीमित रह गया है. धरातल पर छत्तीसगढ़ी का विकास कही नहीं दिखता नहीं. छत्तीसगढ़ी को सरकारी कामकाज की भाषा और स्कूल में शिक्षा का माध्यम बनाने की मांग को लेकर राजभाषा मंच के संयोजक नंदकिशोर शुक्ला कई बार सायकल पर संघर्ष यात्रा कर चुके है. प्रदेश के कई साहित्यकार धरना-प्रदर्शन कर चुके है.
लेकिन नतीजा अब तक सिफर ही रहा है. पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ने जरुर एक नेक पहल करते हुए एम.ए.छत्तीसगढ़ी का पाठ्यक्रम शुरु किया. कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय भी छत्तीसगढ़ी भाषा में डिप्लोमा कोर्स संचालित कर रहा है. लेकिन यह सब पहल सरकार या आयोग की सहयोग से नहीं हुआ, बल्कि विश्वविद्यालयों के स्वयं की इच्छा शक्ति से हुआ है. ऐसी इच्छा शक्ति सरकार की अपनी दिखती नहीं है. तभी तो स्कूल शिक्षामंत्री केदार कश्यप अंग्रेजी माध्यम से सरकारी स्कूल खोलने की घोषणा करते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ी माध्यम से स्कूलों में पढ़ाई को लेकर मंत्री जी संजीदा नहीं दिखते. सरकार, राजभाषा आयोग, शिक्षामंत्री ये न सोचिएगा हम आप पर उंगली उठा रहें है बल्कि ढाई करोड़ छत्तीसगढ़िया जनता यह पूछ रही है कि छत्तीसगढ़ी के विकास में आपने किया क्या है. कोई एक उपलब्धि हो तो गिना दीजिए. हां इतना जरुर है कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायलय के तत्कालीन न्यायधीश रहें यतिन्द्र सिंह ने जरुर हम लोगों को छत्तीसगढ़ी को कैसे आगे बढ़ाना ये सीख देकर चले जाते है. माध्यमिक शिक्षा मंडल के अध्यक्ष के.डी.पी.राव वैकल्पिक ही सही पर 9वीं से 12वीं तक उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा में एक विषय पढ़ाने की पहल की, पर उस पर आज तक अमल नहीं हो पाया.
इसी कड़ी में सरकारी तो नहीं लेकिन गैर सरकारी लोग छत्तीसगढ़ी के विकास के लिए बहुत ही जोर-शोर के साथ काम कर रहे हैं. इसमें सबसे प्रमुख नाम इन दिनों दुर्ग निवासी संजीव तिवारी का लिया जा सकता है. छत्तीसगढ़ी भाषा मा पहला वेब पोर्टल गुरतुर गोठ लांच करने वाले संजीव तिवारी के नाम एक और उपलब्धि जुड़ गया है. गुरतुर गोठ के संपादक संजीव तिवारी की मदद से गुगल ने छत्तीसगढ़ी भाषा में जी-बोर्ड एप लांच किया है. जी-बोर्ड के लिए संजीव तिवारी ने गुगल को 10 हजार छत्तीसगढ़ी शब्द दिए हैं.
इसके साथ ही छत्तीसगढ़ी को शिक्षा का माध्यम बनाने का एक बड़ा काम डॉ. व्यासनारायण दुबे ने किया. जिन्होंने प्रदेश के सबसे बड़े विश्वविद्यालय पं. रविशंकर शुक्ल में एमए छत्तीसगढ़ी का पाठ्यक्रम शुरू कराया.
इन सबके बीच सबसे बड़ा काम छत्तीसगढ़ी राजभासा मंच के संयोजक नंदकिशोर शुक्ल कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ी भाषा के तकनीकी प्रशिक्षण से लेकर, प्रचार-प्रसार के साथ दिल्ली तक आंदोलन कर मातृभाषा और महतारी अस्मिता को सम्मान दिलाने प्रयासरत् है. वहीं इस कड़ी को आगे बढ़ाने का काम छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना भी अब कर रहा है. इसके लिए सेना के कार्यकर्ता प्रदेश भर में अब तक कई कार्यक्रम आयोजित कर चुके हैं. साथ ही दिल्ली के जंतर-मंतर में भी धरना दे चुके हैं.
इसके साथ छत्तीसगढ़ी में लेखन काम भी निरंतर चल रहा है. इस दिशा में जरूर आयोग ने कुछ बेहतर काम किया है. जिसमें छत्तीसगढ़ी साहित्य को बढ़ावा देने लेखकों प्रोत्साहित करने काम किया जा रहा है. नए रचनाकारों को भी मौका मिल रहा है. वहीं छत्तीसगढ़ी शब्दकोष भी प्रकाशित किया है लेकिन उसे लेकर विवाद भी रहा है. फिर भी छत्तीसगढ़ कई प्रसिद्ध साहित्यकारों ने छत्तीसगढ़ी को राष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने काम किया है. उनका योगदान ही आज मातृभाषा के लिए मजबूत आधार है.
वैसे छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के प्रथम अध्यक्ष पं. श्यामलाल चतुर्वेदी ने अपने तीन साल के कार्यकाल में उच्च न्यायलय से लेकर पुलिस थाना में छत्तीसगढ़ी में आवेदन स्वीकार करवाए थे. इसके साथ संस्कृति विभाग से भी छत्तीसगढ़ी भाषा में नोटिफिकेशन जारी हो चुका है. बावजूद धन्य है छत्तीसगढ़ की सरकार और राजभाषा आयोग जो सिर्फ छत्तीसगढ़ी में चंद सांस्कृतिक कार्यक्रम, संगोष्ठी, व्याख्यान और प्रशिक्षण तक सीमित है. जाहिर इस बीच हमें इतना कहने का अधिकार तो है ही कि कइसे आगू बढ़ही, हमर छत्तीसगढ़ी.