गोविंद पटेल, कुशीनगर. सरकार चाहे जितने भी फरमान जारी कर ले, लेकिन कुशीनगर के कुछ अधिकारी मानो ‘राजा’ बन बैठे हैं. आम जनता अपनी फरियाद लेकर विकास भवन पहुंचती है, लेकिन उन्हें सुनने वाला कोई नहीं मिलता. वजह अधिकारी या तो वीडियो कांफ्रेंसिंग में व्यस्त रहते हैं या मीटिंग की आड़ में खुद को जनता से बचा रहे हैं. सुबह 10 से 12 बजे तक जनसुनवाई का तय वक्त होता है, लेकिन इन अधिकारियों के दरवाजे आम आदमी के लिए बंद रहते हैं. सरकारी नंबर भी शो-पीस बनकर रह गए हैं. न कॉल रिसीव होते हैं, न ही कॉल का जवाब आता है.
शिकायतकर्ता घंटों इंतजार करते हैं. लेकिन अधिकारी नजर नहीं आते. ऐसा लगता है जैसे ‘जनसुनवाई’ एक औपचारिकता मात्र बनकर रह गई है. सवाल ये है कि जब जनता को ही नजरअंदाज किया जाएगा तो फिर इन अधिकारियों की जिम्मेदारी किसके लिए है?
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सरकार के निर्देशों की खुली अवहेलना
मुख्यमंत्री से लेकर मुख्य सचिव तक हर स्तर पर स्पष्ट निर्देश हैं कि अधिकारी जनसुनवाई में उपस्थित रहें और समस्याओं का तत्काल समाधान करें. लेकिन कुशीनगर में इन निर्देशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. अब देखना यह है कि शासन इन बेलगाम अधिकारियों पर लगाम कसता है या फिर जनता इसी तरह सिस्टम की बेरुखी की मार झेलती रहेगी.
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