मुंबई. देश को तेल की कमी पूरी करने के लिए विदेशों से तेल आयात करना पड़ता है. सरकारी खजाने का बड़ा हिस्सा तेल आयात करने में खर्च हो जाता है. एक आंकड़े के मुताबिक देश अपनी जरुरतों का करीब 85 फीसदी तेल आयात करता है. इस मोर्चे पर सरकार के लिए राहत की खबर है. आंकड़ों के मुताबिक इस वक्त देश में तेल की खपत 2013 के बाद सबसे कम है.
तेल एवं गैस मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक सुस्त आर्थिक रफ्तार के चलते देश में पेट्रोलियम उत्पादों की खपत 200 मिलियन टन की रह गई है. जिसमें सिर्फ 2 प्रतिशत का मामूली इजाफा दर्ज किया गया. खास बात ये है कि ये 2013 के बाद खपत में सबसे कम इजाफा है. 2013 में भी विश्वव्यापी मंदी और आसमान छूती तेल की कीमतों के चलते भी तेल की खपत में सिर्फ 1.7 फीसदी की उछाल दर्ज की गई.
गौरतलब है कि नोटबंदी के चलते तेल की खपत में काफी गिरावट दर्ज की गई इसके बाद जीएसटी की लांचिंग के चलते उत्पादन प्रभावित हुआ जिससे तेल की खपत में गिरावट जारी रही. अच्छी बरसात के चलते मानसून सीजन में किसानों को पानी की कम जरूरत महसूस हुई जिसके चलते डीजल की डिमांड में भी बढ़ोत्तरी नहीं हुई. ऐसा माना जा रहा है कि मोदी के सत्ता संभालने के बाद से देश की आर्थिक तरक्की की रफ्तार भी 6.5 फीसदी की दर से रहने की उम्मीद है. जो कि 2014 में मोदी के सत्ता संभालने के बाद से सबसे कम है.
नोटबंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित ट्रांसपोर्ट बिजनेस रहा. इसने ट्रक मालिकों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया. जिसका सीधा असर डीजल की डिमांड पर रहा. खास बात ये है कि देश में डीजल की सबसे ज्यादा खपत ट्रकर्स ही करते हैं. देश में तेल की खपत का चालीस फीसदी हिस्सा डीजल के जरिए होता है. अंतर्राष्ट्रीय एनर्जी एजेंसी के आंकड़ों के मुताबिक भारत की तेल की डिमांड जो कि 2017 में 1,35,000 बैरल प्रतिदिन थी वो 2018 में 2,75,000 बैरल प्रतिदिन तक हो सकती है.
देश के तेल खपत में पिछले साल के दिसंबर माह में 7.5 फीसदी की ग्रोथ दर्ज की गई है. जो कि पिछले तीन माह में सर्वाधिक है. देश में दिसंबर माह में करीब 17 मिलियन टन तेल की खपत हुई जो कि दिसंबर 2016 के मुकाबले बेहद मामूली है. तेल बाजार पर नजर रखने वाले विश्लेषकों के मुताबिक बुरा वक्त बीत गया है. इकानमी की सुस्ती धीरे धीरे गायब हो रही है. ऐसे में भविष्य में उम्मीद की जा रही है कि तेल की खपत में तेजी दर्ज की जाएगी.