राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले(Dattatreya Hosabale) ने कांग्रेस से आग्रह किया कि वह 50 वर्ष पूर्व इंदिरा गांधी(Indra Gandhi) सरकार द्वारा लागू की गई इमरजेंसी के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगे. नई दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान होसबाले ने संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ जैसे दो शब्दों को हटाने की मांग की, जो इमरजेंसी के समय तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा जोड़े गए थे.

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1975 में लागू हुई इमरजेंसी को याद करते हुए होसबाले ने कहा कि उस समय हजारों लोगों को जेल में डालकर यातनाएं दी गईं, साथ ही न्यायपालिका और मीडिया की स्वतंत्रता भी समाप्त कर दी गई थी. उन्होंने बताया कि इमरजेंसी के दौरान व्यापक स्तर पर जबरन नसबंदी की गई. होसबाले ने व्यंग्य करते हुए कहा कि जो लोग उस समय इन अत्याचारों में शामिल थे, वे आज संविधान की प्रति लेकर घूम रहे हैं, लेकिन उन्होंने अब तक माफी नहीं मांगी. उन्होंने यह भी कहा कि उनके पूर्वजों द्वारा किए गए इन कृत्यों के लिए देश को माफी मांगनी चाहिए.

कब और क्यों लगी इमरजेंसी?

25 जून 1975 को, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की. इसका कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट का वह निर्णय था, जिसमें उनकी लोकसभा सीट को रद्द कर दिया गया था. सरकार ने ‘आंतरिक अशांति’ का हवाला देते हुए संविधान को निलंबित कर दिया.

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जेल में डाले गए हजारों लोग

लाखों लोग, जिनमें RSS, जनसंघ और विपक्षी नेता शामिल थे, बिना किसी कारण के जेल में डाल दिए गए. जेपी आंदोलन के नेता जयप्रकाश नारायण से लेकर साधारण कार्यकर्ताओं तक सभी पर अत्याचार किए गए.

जबरन नसबंदी का आतंक

इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी के नेतृत्व में लाखों पुरुषों की जबरन नसबंदी की गई. यह प्रक्रिया गांव-गांव में लक्षित की गई, जिसका सबसे अधिक प्रभाव गरीबों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर पड़ा.

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मीडिया और कोर्ट की आजादी

सेंसरशिप ने प्रेस को प्रभावित किया, जिससे अखबारों को सरकार के निर्देशों के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य होना पड़ा. इसके साथ ही, न्यायालय की स्वतंत्रता पर भी नियंत्रण स्थापित किया गया.

संविधान में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ क्यों जोड़े?

1976 में 42वें संशोधन के माध्यम से इमरजेंसी के दौरान संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े गए. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का मानना है कि ये शब्द अनावश्यक रूप से थोपे गए हैं और अब इन्हें हटाने का उचित समय आ गया है.

25 जून 1975 को लागू किए गए आपातकाल के दौरान की घटनाओं को याद करते हुए होसबाले ने कहा कि उस समय हजारों लोगों को जेल में डालकर उन पर अत्याचार किया गया, साथ ही न्यायपालिका और मीडिया की स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगाया गया. उन्होंने यह भी बताया कि आपातकाल के दौरान बड़े पैमाने पर जबरन नसबंदी की गई. आरएसएस नेता ने आरोप लगाया कि जिन लोगों ने इन अत्याचारों को अंजाम दिया, वे आज संविधान की प्रति लेकर घूम रहे हैं और उन्होंने अभी तक माफी नहीं मांगी है, इसलिए उन्हें माफी मांगनी चाहिए.

कांग्रेस को देश से माफी मांगनी चाहिए

होसबाले ने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि उनके पूर्वजों के कार्यों के लिए उन्हें देश से माफी मांगनी चाहिए. इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने 50 साल पहले इंदिरा गांधी के नेतृत्व में लागू किए गए आपातकाल की कांग्रेस की नीतियों की आलोचना की. उन्होंने कहा कि पूर्व कांग्रेस सरकार द्वारा 21 महीने के आपातकाल के दौरान किए गए अत्याचारों को कभी भुलाया नहीं जा सकता.

गडकरी भी कांग्रेस पर जमकर साधा निशान

गडकरी ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को अपनी सत्ता को बनाए रखने और जनता की आवाज को दबाने के लिए आपातकाल की घोषणा की, जिससे संविधान की मूल भावना को कुचला गया. आपातकाल के दौरान संविधान में कई संशोधन किए गए, जिससे उसकी गरिमा को ठेस पहुंची. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस नेताओं ने यह प्रचारित किया कि हम संविधान में बदलाव करने का इरादा रखते हैं, जबकि हमने कभी ऐसा नहीं कहा और न ही ऐसा करने की कोई इच्छा है. उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि किसी ने संविधान का उल्लंघन किया है, तो वह इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस है.