रायपुर-संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर बीजेपी एक बार फिर राज्य सरकार पर हमलावर है. पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता राजेश मूणत ने कहा है कि कांग्रेस को प्रदेश से माफी मांगनी चाहिए. पिछली सरकार में संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर सवाल उठाने वाली कांग्रेस आज खुद नियुक्ति कर रही है. यह दोहरा मापदंड है.
पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने कहा कि विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति के खिलाफ कोर्ट में याचिका लगाई थी, लेकिन सत्ता में आने के बाद कांग्रेस में मचे घमासान को शांत करने सरकार संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर रही है. उन्होंने कहा कि सरकार की यह फितरत हो गई है कि जिन मुद्दों पर विपक्ष में रहते विरोध करते थे, सत्ता में आने के बाद वह सारे काम किए जा रहे हैं. शराबबंदी के वादे से मुकरकर घर-घर शराब पहुंचाने वाली सरकार ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति करके यह साबित कर दिया है कि प्रदेश की राजनीति में उनके जैसा और कोई आडंबरवादी नहीं है.
राजेश मूणत ने कहा कि सरकार में न तो लोकतांत्रिक परंपराओं की समझ से कोई वास्ता है और न ही संसदीय प्रक्रियाओं की सूझबूझ है. सरकार में 13 मंत्री है, लेकिन 15 संसदीय सचिवों की नियुक्ति यह बयां कर रही है. मूणत ने कहा कि पिछले 18 महीने से प्रदेश सरकार को संसदीय सचिवों और निगम-मंडलों में नियुक्ति करने की सुध नहीं आई और उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था, लेकिन मध्यप्रदेश के बाद अब राजस्थान की कांग्रेस सरकार की चलाचली की बेला में आनन-फानन में ये नियुक्तियां की जा रही है. यह कांग्रेस के भीतर पनप रहे असंतोष और गुटबाजी को दूर करने की कवायद है. दलीय असंतोष से उपजा यह डर प्रदेश के लिए शुभ संकेत प्रतीत हो रहा है.
पूर्व मंत्री ने कहा कि एक तरफ प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री कोरोना के बढ़ते मामलों पर चिंतित हैं और प्रदेश सरकार से कोरोना प्रकरणों की टेस्टिंग के लिए पर्याप्त फंड मुहैया कराने की मांग प्रदेश की सरकार से कर रहे हैं, लेकिन प्रदेश सरकार प्रदेश की माली हालत ख़राब होने का रोना रो रही है. कोरोना जैसी महामारी के प्रदेश में विस्फोटक स्तर तक पहुंच जाने के बावज़ूद प्रदेश सरकार विभिन्न मदों में करोड़ों रुपए का फंड होने के बावज़ूद जिस तरह अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ रही है, वह तो बेहद शर्मनाक है ही, पर साथ ही सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि जब प्रदेश सरकार कोरोना के ख़िलाफ़ जारी जंग को पैसों की कमी का रोना रोकर कमज़ोर कर रही है तो फिर संसदीय सचिवों की नियुक्ति से प्रदेश पर जो अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा, सरकार को यह बताना चाहिए कि आखिर इसके लिए पैसा कहां से आएगा?