रायपुर। वन उत्पादकता संस्थान, राँची ने छत्तीसगढ वन विभाग के सहयोग से आज अरण्य भवन, अटल नगर, छत्तीसगढ़ में वानिकी हस्तक्षेपों के माध्यम से नदियों के पुर्नद्धार के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया गया.

इस अवसर पर मुख्य अतिथि राकेश चतुर्वेदी, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, छत्तीसगढ़ वन विभाग ने कार्यशाला को संबोधित में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के “नरवा, गरूवा, घुरवा अऊ बारी’ नारे की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह पहल पूरे देश के सामने पर्यावरण की दृष्टि से अनुकरणीय उदाहरण है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वन-सीमाओं का डिजिटलीकरण हो, नदियों का पुनरोद्धार एवं वन-सीमाओं के बाहर के वृक्षों का प्रबंधन हो. वन विभाग के अधिकारियों से उन्होंने आग्रह किया कि सभी सक्रिय रूप से अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें, ताकि बफर जोन एवं वृक्ष प्रजातियों का अच्छा चयन हो सके. अतः उन्होंने “नरवा, गरूवा, घुरवा अऊ बारी” योजना के साथ ही वृहद रूप से अन्य नदियों के लिए उपरोक्त कार्यक्रम के साथ में समेकित करने पर जोर दिया तथा इससे होने वाली नदियों के पुर्नजीवन हेतु सफलता प्राप्त करने सम्बंधी उपयोगिताओं के ऊपर बल दिया.

विशिष्टि अतिथि ए के शुक्ला, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी प्रभाग) ने अपने उद्बोधन में नदियों के पुनरोद्धार को एक महत्वपूर्ण मुद्दा बताते हुए कहा कि नदियों के बफर जोन में वृक्षारोपण एक महत्वपूर्ण कार्य है. जिसके तकनीकी निर्देश, डेटा एवं सहायता वन विभाग के द्वारा कार्यान्वित किया जाना है.

कार्यशाला में राज्य वन विभाग गैर सरकारी संगठन, विश्वविद्यालयों एवं अन्य विभागों के प्रतिनिधियों ने मुख्यतः महानदी का दायरा, महानदी का जलग्रहण क्षेत्र एवं नदी के प्रबंधन पर विस्तृत रूप से चर्चा एवं विचार-विमर्श किया. वन उत्पादकता संस्थान, रांची से डॉ. शरद तिवारी (वैज्ञानिक) एवं संजीव कुमार (वैज्ञानिक) प्रमुख वक्ता रहे. छत्तीसगढ़ वन विभाग के नावेद सुजाउद्दीन, वन संरक्षक एवं महानदी डी.पी.आर, के नोडल अधिकारी ने पूरे कार्यशाला को समन्वित किया.