अमित पांडेय, डोंगरगढ़। मां बम्लेश्वरी मंदिर में नवरात्र पर्व के दौरान पंचमी पूजा से शुरू हुआ विवाद अब सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक रंग ले चुका है. एक ओर खैरागढ़ राजपरिवार के वंशज राजकुमार भवानी बहादुर सिंह अपने परिवार की सुरक्षा की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी ओर सर्व छत्तीसगढ़ आदिवासी समाज ने मांगों पर कार्रवाई नहीं होने पर मंदिर ट्रस्ट के खिलाफ 15 नवंबर से प्रदेशव्यापी आंदोलन का एलान किया है.
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इस पूरे विवाद की शुरुआत नवरात्रि पर्व के दौरान हुई, जब राजकुमार भवानी बहादुर सिंह ने अपने पारिवारिक और सामाजिक परंपरा के अनुसार पंचमी पूजा की. इस पूजा के विरोध में मंदिर ट्रस्ट समिति ने पुलिस प्रशासन को शिकायत दी. इसके बाद में सर्व हिंदू समाज के नाम से एक रैली निकालकर प्रशासन को ज्ञापन सौंपा गया. आरोप लगाया गया कि यह पूजा बलि प्रथा से जुड़ी हुई है.

इस विवाद से आहत राजकुमार भवानी बहादुर सिंह ने पुलिस प्रशासन को पत्र लिखकर कहा कि उनके परिवार की पूजा को बलि प्रथा से जोड़कर उन्हें और उनके परिवार को बदनाम किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि पूजा के दौरान किसी जानवर की बलि नहीं दी गई, फिर भी कुछ लोगों ने बिना तथ्य जांचे उनके खिलाफ झूठे लेख प्रकाशित कर उनकी सामाजिक और राजनीतिक छवि को नुकसान पहुँचाया है.
राजकुमार का कहना है कि उन्होंने साक्ष्य सहित पुलिस को शिकायत दी, लेकिन दस दिन बीत जाने के बाद भी न तो किसी के खिलाफ कार्रवाई की गई और न ही उन्हें सुरक्षा दी गई. उन्होंने प्रशासन से आग्रह किया है कि उन्हें और उनके परिवार को सुरक्षा प्रदान की जाए, क्योंकि हालिया घटनाओं से उनकी जान-माल को खतरा महसूस हो रहा है.
राजकुमार भवानी बहादुर सिंह ने अपने पत्र में यह भी स्पष्ट किया कि उनके दादा स्वर्गीय राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह ने डोंगरगढ़ स्थित मां बम्लेश्वरी देवी मंदिर — ऊपर और नीचे दोनों — का निर्माण खैरागढ़ रियासत काल में कराया था. उन्होंने ही स्थानीय नागरिकों की मदद से मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की थी और स्वयं को आजीवन संरक्षक नियुक्त किया था.
भवानी सिंह का कहना है कि दादा की मृत्यु के बाद ट्रस्ट ने परिवार के उत्तराधिकारियों को संरक्षक का दर्जा नहीं दिया, जबकि परंपरा के अनुसार यह स्थान वंशजों को मिलना चाहिए था. उनके अनुसार, ट्रस्ट वर्षों से राजपरिवार के योगदान और अधिकारों की अनदेखी कर रहा है, जिससे परिवार के साथ अन्याय हुआ है.
उधर, इसी मामले को लेकर राजनांदगांव में सर्व छत्तीसगढ़ आदिवासी समाज की ओर से प्रदेश स्तरीय आदिवासी महापंचायत आयोजित की गई. इसमें राष्ट्रीय और प्रांतीय पदाधिकारियों ने भाग लिया और बम्लेश्वरी मंदिर ट्रस्ट के खिलाफ बड़ा फैसला लिया. आदिवासी समाज ने कहा कि डोंगरगढ़ की मां बम्लाई दाई यानी मां बम्लेश्वरी देवी आदिकाल से गोंड़ आदिवासी समाज की आराध्य देवी रही हैं. पहले यहां बैगा पुजारी परंपरा से पूजा होती थी, लेकिन ट्रस्ट बनने के बाद से आदिवासियों को मंदिर की सेवा और पूजा से अलग कर दिया गया.
महापंचायत में यह भी कहा गया कि नवरात्रि के दौरान पंचमी पूजा के समय आदिवासी समाज को अपनी पारंपरिक पूजा करने से रोका गया, और बाद में समाज को धर्म विरोधी बताकर बदनाम किया गया. समाज ने इसे अपनी आस्था और परंपरा पर सीधा अपमान बताया और शासन से मांग की कि ट्रस्ट को तत्काल भंग कर दिया जाए. इसके साथ ही दोषियों के खिलाफ एट्रोसिटी एक्ट के तहत कार्रवाई करने और मां बम्लाई दाई स्थल को आदिवासी समाज को सौंपने की मांग रखी गई.
महापंचायत में निर्णय लिया गया कि समाज अब अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान की रक्षा के लिए जन आंदोलन शुरू करेगा. इसके तहत 15 नवंबर को पूरे प्रदेश में जिला से लेकर गांव तक जन-जागृति अभियान चलाया जाएगा और महाबंद किया जाएगा.
इस बीच, प्रशासन ने दोनों पक्षों से संवाद स्थापित कर विवाद को बातचीत के माध्यम से सुलझाने का आश्वासन दिया है. हालांकि, अब तक किसी ठोस नतीजे तक पहुंचा नहीं जा सका है. एक ओर राजकुमार भवानी बहादुर सिंह अपने परिवार की परंपरा और सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, तो दूसरी ओर आदिवासी समाज अपनी आस्था और अधिकार की लड़ाई लड़ रहा है.
इन सबके बीच डोंगरगढ़ का मां बम्लेश्वरी मंदिर, जो अब तक आस्था और एकता का प्रतीक माना जाता था, आज परंपरा और अधिकार की खींचतान में उलझ गया है. अब सबकी निगाहें 15 नवंबर पर टिकी हैं, जब आदिवासी समाज के आह्वान पर प्रदेशभर में महाबंद होगा — और शायद इसी दिन यह तय होगा कि इस विवाद का समाधान संवाद से होगा या यह आंदोलन सड़कों पर उतर आएगा.
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