गया, बिहार। हर साल की तरह इस वर्ष भी पितृपक्ष मेला 6 सितंबर से गया में शुरू होने जा रहा है। यह मेला हिन्दू धर्म में पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए विशेष महत्व रखता है। इसी बीच बिहार सरकार के पर्यटन विकास निगम द्वारा शुरू किए गए ऑनलाइन पिंडदान पैकेज ने धार्मिक आस्थाओं को झकझोर कर रख दिया है। इस पहल का जहां एक ओर आधुनिकता के नाम पर प्रचार किया जा रहा है, वहीं गयापाल पंडा समाज और कई धार्मिक संगठनों ने इसका जोरदार विरोध किया है।

प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य ज्ञानेश मिश्र भारद्वाज का कहना है कि “गया कोई आम स्थल नहीं, बल्कि विष्णु भगवान की नगरी है। यहां श्राद्धकर्म करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। ऑनलाइन पिंडदान से यह प्रक्रिया केवल औपचारिकता बनकर रह जाएगी, जबकि इस भूमि को स्पर्श करना ही मोक्ष प्राप्ति का मूल आधार है।”

वहीं, नमो फाउंडेशन के संदीप मिश्रा ने गया के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, “गया का नाम गयासुर राक्षस के नाम पर पड़ा, जिसे भगवान विष्णु ने अपने गदाधर रूप में रोका था। आज भी यहां उनका पावन चरण विराजमान है। ऐसी पवित्र भूमि पर वर्चुअल माध्यम से श्राद्ध कर्म करना धर्म के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।”

धार्मिक विद्वानों का यह भी कहना है कि सनातन धर्म की परंपराओं को व्यवसायिक बनाने का प्रयास नहीं होना चाहिए। संदीप मिश्रा ने सवाल उठाया कि “क्यों हर प्रयोग केवल सनातन धर्म पर ही किया जाता है? गया की भूमि को छुए बिना, पिंड वेदी पर तर्पण किए बिना मोक्ष की कामना करना न केवल अवैज्ञानिक, बल्कि आस्थाहीन भी है।”

गयापाल पंडा समाज और विभिन्न संत समाजों ने पर्यटन विभाग की इस पहल को तुरंत बंद करने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि सरकार को लोगों की धार्मिक भावनाओं और परंपराओं का सम्मान करना चाहिए।