सतीश चांडक, सुकमा। 56 घंटे तक चले ऑपरेशन प्रहार की इनसाइड स्टोरी पहली बार सामने आई है. ये स्टोरी किसी और ने नहीं बल्कि इस ऑपरेशन में शामिल एक जवान ने लल्लूराम डॉट कॉम को बताई है. इस जवान ने अपनी पहचान ज़ाहिर न होने की शर्त पर बताया कि ये ऑपरेशन बेदह खतरनाक था. नक्सलियों के मांद तक पहुंचकर निकलना आसान नहीं था. तोंडेमरका, एलमागुण्ड़ा, बड़ेकेडवाल का वो इलाका जहां नक्सलियों की हुकूमत चलती है. उस इलाके में आपरेशन प्रहार के तहत जवान पहली दफा पहुंचे थे. लेकिन जब वे वहां पहुंचे तो नक्सलियों की ताकत और हथियार देखकर रौंगटे खड़े गए हो गये. लेकिन सिर पर कफन बांधे जवानों ने पैर पीछे नहीं खींचे और अपनी बहादूरी से नक्सलियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया.
जवान ने बताया कि एक घंटे तक हुई भुठभेड़ इतनी भंयकर थी कि मौत सामने दिख रही थी. एक तरफ गोलियां तो दूसरी तरफ यूबीजीएल नक्सली दाग रहे थे. लग रहा था कि बच पाना नामुमकिन है. लेकिन भगवान उस वक्त सुरक्षाकर्मियों के साथ था इसलिए तीन ग्रेनेड लांचर नहीं फटे.
पहला मुठभेड़ सुबह 9 बजे तोंडेमरका में
जवान ने बताया कि सबसे पहले शनिवार की सुबह एक पार्टी नक्सलियों की मांद के लिए रवाना हुयी. सुबह 9 बजे नक्सलियों से इस पार्टी की मुठभेड़ तोंडेमरका के पास हुई. नक्सली हथियारों से लैस थे और जवानों को उनकी ताकत का अंदाज़ा नहीं था. मुठभेड़ में एसटीएफ के पांच जवान घायल हो गए. उन्हे हेलीकाप्टर की मदद से बाहर निकाला गया. ठीक उसके बाद बाकी सभी पार्टी अलग-अलग दिशाओं में निकली. इसमें से एक पार्टी डीआरजी की थी. वो पार्टी दोपहर करीब 2 बजे एलमागुण्ड़ा और बड़ेकेड़वाल के बीच पहुंची तो नक्सलियों ने फायरिंग करनी शुरू कर दी. जवानों ने तत्काल मोर्चा संभालते हुए जवाबी कार्रवाई की.
जवान के मुताबिक जब ताबड़तोड़ फायरिंग होनी शुरू हुई तो पहली गोली मनीष को लगी. उसके बाद थोड़ी देर में दो और जवान शहीद हो गए और एक जवान चन्द्रा घायल हो गया. करीब एक घंटे तक अंधाधुंध गोलियां दोनो ओर से चली. वही पर डीआरजी के तीन जवान शहीद हुए और एक घायल हुआ.
शाम 6 बजे तक चला एनकाउंटर
ठीक उसके बाद जैसे-तैसे वायरलेस से सहयोगी पार्टियों को सूचना दी गई. शाम करीब 5 बजे कोबरा व डीआरजी की संयुक्त पार्टी मदद की के लिए पहुंची. उस वक्त भी नक्सलियों ने फायरिंग की लेकिन अंतिम 6 बजे तक ही गोलियां चली. उसके बाद अंधेरा हो गया. मुठभेड़ बंद होने के बाद साथी की जान बचाने के लिए डीआरजी की टीम रात में कैम्प के लिए निकल गई. घना जंगल और अंधेरा होने के कारण आने में देरी हो गई. एक जगह रास्ता भी भटक गए. लेकिन सुबह होते ही पार्टी सुबह पहुंच गई. जवानों को घने जंगल में करीब 12 किलोमीटर पैदल चले. जिसके बाद घायल जवान को बेहतर इलाज के लिए रायपुर भेजा गया.
जवान ने बताया कि बड़ेकेड़वाल व एलमागुण्ड़ा के बीच मुठभेड़ में करीब एक घंटे तक भारी गोलाबारी हुई. जिसमें नक्सलियों ने यूबीजीएल ( अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर) दागे। नक्सलियों के पास एके47, एसएलआर जैसे आधुनिक हथियार थे। नक्सलियों की और से दागे गए यूबीजीएल में तीन नहीं फटे। नही तो नुकसान काफी बड़ा होता. जवान ने जब फायरिंग हो रही थी तो ऐसा बिल्कुल नहीं लग रहा था कि कोई बच पाएगा. अगर एक भी यूबीजीएल फटता शायद ही कोई बच पाता. वो तो भगवान ने बचा लिया.
सेतु और सोनू कर रहे थे लीड
जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक एलमागुण्ड़ा और बड़ेकेड़वाल के बीच हुई मुठभेड़ को नक्सली लीडर सेतु और सोनू लीड कर रहे थे. सारे नक्सली काली वर्दी में थे. वे तेलगू और हिन्दी बोल रहे थे. नक्सलियों में बड़ी संख्या में लड़कियां शामिल थीं. नक्सलियों की संख्या काफी ज़्यादा था. जवान ने मुठभेड़ के वक्त एक नक्सली लड़की और एक लड़के को गिरते हुए देखा. लेकिन जब सुरक्षाबलों ने शव को लेने की कोशिश की तो नक्सलियों ने फायरिंग करनी शुरू कर दी. उसके बाद नक्सली शव उठाकर ले गए.