सच कड़वा होता है, लेकिन उसे स्वीकार करना पड़ता है। तो ये सच भी मानना होगा कि योगी आदित्य नाथ जातिवादी हैं और घनघोर ब्राह्मण विरोधी और इसिलिये यूपी का अधिसंख्यक ब्राह्मण बीजेपी से नाता तोड़ चुका है। मेरी इस बात पर कुछ मित्रों को आपत्ति होगी तो बता दें कि योगी ब्राह्मणवाद के विरोध की उपज ही हैं और अगर ये कहें कि ब्राह्मण-ठाकुर वर्चस्व की जंग वाले पूर्वी उत्तरप्रदेश में ठाकुरों के सबसे बड़े रहनुमा तो इसमें आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
दरअसल, योगी उस गोरखनाथ मठ की अगुआई कर रहे हैं जो ब्राह्मणवाद के विरोध का केंद्र है और उसके मठाधीश परम्परागत रूप से क्षत्रिय होते हैं। यूपी में ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय वर्चस्व की जंग पांच दशक से चल रही है और इसकी शुरुआत गोरखपुर से हुई। ये हुआ उस समय जब गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना हो रही थी। इसमे दो लोगों की अहम भूमिका थी एक सूरतमणि त्रिपाठी और दूसरे महंत दिग्विजयनाथ। सूरतमणि त्रिपाठी यूपी के सीनियर आईएएस थे, जो कई जिलों के कलेक्टर, कमिश्नर, राज्य के मुख्य सचिव योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहने के बाद गोरखपुर विश्वविद्यालय के पहले कुलपति बने तो महंत दिग्विजयनाथ गोरक्षपीठ के महंत।
बिश्वविद्यालय में कॉलेजों को सबंद्ध करने और नियुक्तियों को लेकर दोनों के बीच विवाद हुआ तो दिग्विजय नाथ ने सूरतमणि त्रिपाठी का अपमान कर दिया। सूरतमणि त्रिपाठी के इस अपमान का बदला लिया एक छात्र नेता हरिशंकर तिवारी ने। उन्होंने भी महंत दिग्विजय नाथ को अपमानित कर दिया और यहीं से ब्राह्मण बनाम ठाकुर जंग शुरू हो गई। हरिशंकर को खत्म करने की कोशिश शुरू हुई उन्होंने हथियार उठा लिए। गोरखपुर देश में गैंगवार का केंद्र बन गया। ब्राह्मण और ठाकुरों के गिरोह बनने लगे और दिनदहाड़े गोलियां चलने लगीं। लाशें बिछने लगीं। ये जंग तब और विकराल हुई जब हरिशंकर के कैम्प से ही निकले वीरेंद्र शाही ने ठाकुरों की कमान अपने हाथ ली।
वीरेंद्र शाही ने हरिशंकर के वर्चस्व को खुली चुनौती दी, लेकिन हरिशंकर ने अपने एक शागिर्द श्रीप्रकाश शुक्ला को तैयार कर वीरेंद्र शाही को भी खत्म करवा दिया। इसके बाद ये लड़ाई फिर मठ और हाता के बीच आ गयी। मठ मतलब योगी आदित्यनाथ की महंती वाला गोरक्षनाथ पीठ और हाता मतलब हरिशंकर तिवारी एंड एसोसिएट्स या कहें कि हरिशंकर तिवारी का किलेनुमा आवास तिवारी हाता। गोरखपुर ही नहीं पूरे पूर्वांचल में ये सियासत के दो केंद्र रहे।मठ से दिग्विजयनाथ,अवैद्यनाथ और योगी आदित्यनाथ सांसद चुने जाते रहे। अवैद्यनाथ विधायक भी रहे तो हरिशंकर तिवारी लगातार छह बार विधायक और बीस साल तक मंत्री रहे।
सरकार किसी भी पार्टी की रही ही हो हरिशंकर तिवारी का मंत्रिपद फिक्स रहा। यही नहीं उनके एक बेटे भीष्मशंकर तिवारी सांसद रहे तो दूसरे बेटे विनय शंकर तिवारी विधायक और भांजे गणेश शंकर पांडेय विधान परिषद के अध्यक्ष इस तरह मठ और हाता में शक्ति समन्वय बना रहा। लेकिन 2017 में योगी आदित्यनाथ के सीएम बनते ही मठ मजबूत हो गया और हाता कमजोर। योगी आदित्यनाथ के सीएम बनते ही हरिशंकर तिवारी के किलेनुमा घर में छापा पड़ गया।पुलिस बिना नोटिस घर के अंदर घुस गई और इसके अगले दिन गोरखपुर की सड़कें तिवारी के समर्थकों से भर गयीं।
बम बम शंकर जयशंकर, साधु नहीं शिखण्डी है ये योगी पाखंडी है, के नारे से गोरखकपुर गूंज उठा। खैर इसका खामियाजा हरिशंकर तिवारी को भोगना पड़ा। राज्य सरकार के अधीन उनके सारे ठेके बन्द हो गए और बैंकों ने उनके खिलाफ 11 सौ करोड़ की रिकवरी निकाल कर सम्पत्तियों की कुर्की के नोटिस जारी कर दिए। हालांकि ये बात दीगर है कि इनकी बोली लगाने की कोई जुर्रत ही न कर सका।
खैर ये तो योगी और हरिशंकर की व्यक्तिगत लड़ाई रही। यूपी के दूसरे कई ब्राह्मण नेताओं को भी इस जातिवाद का दंश झेलना पड़ा। योगी ने मुख्यमंत्री बनने के पहले भी अपने प्रभाव वाले गोरखपुर में बीजेपी के ही ब्राह्मण नेताओं को मटियामेट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। गोरखपुर सदर विधानसभा सीट से उपेन्द्रदत्त शुक्ला को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया तो योगी ने खुलेआम हिन्दू महासभा के प्रत्याशी राधामोहन अग्रवाल को समर्थन देकर उन्हें निपटवा दिया। इसके बाद योगी के सीएम चुने जाने के बाद शिवप्रताप शुक्ला को गोरखपुर से लोकसभा की टिकट मिली तो योगी ने उन्हें हरवा दिया। इसके बाद योगी सीएम बने तो हरिशंकर तिवारी के साथ क्या हुआ हम पहले ही बता चुके।
योगी ने सीएम बनने के बाद जिन बड़े ब्राह्मण नेताओं को निपटाया उनमें हरिशंकर तिवारी के बाद दूसरा बड़ा नाम भदोही की ज्ञानपुर सीट से विधायक विजय मिश्रा का रहा। विजय मिश्रा को उनके ही रिश्तेदार की मामूली रिपोर्ट पर मटियामेट कर दिया गया। उनकी सैकड़ों करोड़ की सम्पत्तियां नष्ट कर दी गयीं। कई मुकदमे दर्ज कर जेल भेज दिया गया। आरोप ये लगे कि योगी आदित्यनाथ ने ऐसा इसलिए किया कि विजय मिश्रा पूर्वांचल में योगी की बिरादरी के क्षत्रिय बाहुबलियों ब्रजेश सिंह, धनन्जय सिंह, विनीत सिंह, चंचल सिंह को खुलेआम चुनौती देते सीना तानकर खड़े थे।
ब्राह्मण बनाम ठाकुर की इसी लड़ाई में क़भी बीजेपी का सबसे बड़ा ध्वजवाहक रहा इलाहाबाद का करवरिया खानदान भी अपनी ही पार्टी की सरकार बनने के बाद भी नहीं उबर पाया। बल्कि इस परिवार के नाबालिग बच्चों तक पर गम्भीर केस लग गए। कानपुर के बिकरू कांड में अपराधी विकास दुबे के रिश्तेदारों को ढूंढ-ढूंढ कर मारने के पीछे भी यही ब्राह्णण बनाम ठाकुर की जंग की बात सामने आई। इन तमाम घटनाओं ने यूपी के सामाजिक और राजनीतिक माहौल को इतना जहरीला बना दिया है कि बीजेपी का बेस वोटर माना जाने वाला ब्राह्मण बीजेपी से छिटक रहा है।
– राजेश्वर सिंह