रायपुर। केंद्रीय ट्रैड यूनियनों के संयुक्त मंच ने लॉक डाउन की अवधि में देश के मेहनतकशों के सामने मौजूद मुश्किल हालातों को ध्यान में रखते हुए चुनौतियों का सामना करने के लिए संयुक्त कार्रवाइयों को तेज़ करने का फैसला किया और 22 मई को संकट के इस अवधि में भी मजदूरों को मदद की बजाय केंद्र सरकार द्वारा श्रम कानूनों में बदलाव के फैसलों का पुरजोर करने देशभर में विरोध दिवस मनाने का ऐलान किया था । छत्तीसगढ़ में भी सभी ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने इसे सफल बनाने सभी जिलों में तैयारी की है, रायपुर में ट्रेड।यूनियनों के प्रदेश स्तरीय नेता कर्मचारी भवन , साप्रे स्कूल में सुबह 10 बजे से 11.30 बजे तक सोशल दिस्टेंसिंग का पालन करते हुए विरोध तख्ती, काली पट्टी लगाकर धरना दिए और प्रदर्शन किया ।

इंटक के प्रदेश अध्यक्ष संजय सिंह, सीटू के अध्यक्ष बी सान्याल, महासचिव एम के नंदी, एटक के महासचिव सिंह, ऐकटू के महासचिव बृजेन्द्र तिवारी, एच एम एस के कार्यकारी अध्यक्ष एच एस मिश्रा, सी जेड आई ई ए के महासचिव धर्मराज महापात्र, तृतीय वर्ग कर्म संघ के अध्यक्ष राकेश साहू, केंद्रीय कर्म संघ के आशुतोष सिंह, दिनेश पटेल, राजेन्द्र सिंह, मनिक्राम पुराम, एस टी यू सी के सचिव एस सी भट्टाचार्य, बी एस एन एल ई यू के महासचिव आर एन भट्ट ट्रेड यूनियनों ने एक विज्ञप्ति में यह जानकारी देते हुए कहा कि कोविड 19 की आड़ में हर दिन सरकार मज़दूर वर्ग व देश की आम जनता पर हमला करते हुए कोई न कोई फैसला ले रही है, तब जब कि वो पहले से ही लॉक डाउन के हालातों में संकट और तकलीफ़ें झेल रहे हैं। ट्रैड यूनियनों ने प्रधान मंत्री तथा श्रम मंत्री को स्वतंत्र व संयुक्त दोनों स्तरों पर इस बाबत व इसके साथ-साथ लॉक डाउन अवधि में वेतन के पूरे भुगतान करने व नौकरी से न निकालने के सरकार के अपने दिशानिर्देशों/सलाहों की अवहेलना के बारे में कई पत्र लिखें हैं। परन्तु इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए गए। इसके अलावा राशन वितरण, औरतों तथा वृद्धों को कैश ट्रांस्फर आदि सरकार की अधिकतर घोषणाएं विफल साबित हुई हैं व इनका फायदा ज़मीनी स्तर पर संभावित लाभार्थियों को नहीं मिल रहा है।

जहाँ एक ओर 55 दिन के लॉक डाउन में जीविका, वेतन, रिहाईश आदि पर हमले ने बहुमत मेहनतकश जनता को भूख की ओर धकेल दिया है, वहीं आज की सरकार आक्रामक तरीके से ऐसे कदम उठा रही है जो उन्हें ग़ुलामों में बदल देगी। हताशा में प्रवासी मज़दूर अपने घरों की ओर सैकड़ों मील का सफ़र सड़कों-रेलवे लाइनों, जंगलों और खेतों से करने पर मजबूर हैं, जिसमें कई बहुमूल्य जानें भूख, थकान और दुर्घटनाओं के चलते चली गई हैं। पर तीन चरणों के लॉक डाउन के बाद भी सरकार की तमाम घोषणाओं- जिसमें सबसे ताज़ी घोषणा 14 मई 2020 को की गई- ने आम जनता व मज़दूरों को राहत देने के लिए एक भी कदम नहीं उठाया। उलट इसके सरकार केवल बड़े दावे व झूठे बयान दे रही है, जो सच्चाई से कोसों दूर है व बहुमत जनता की तकलीफ़ों के प्रति उसकी असंवेदनशीलता को दिखाती है। अब लॉक डाउन का फायदा उठाते हुए केंद्र सरकार बेहद छलपूर्ण तरीके से मज़दूरों व ट्रैड यूनियनों के अधिकारों पर हमला करने के इरादे से श्रम अधिकारों पर हमला कर रही है। उसने जहाँ एक ओर अपनी पिछलग्गू राज्य सरकारों को ऐसे मज़दूर विरोधी व जन विरोधी तानाशाह कदम उठाने के लिए खुली छूट देने की रणनीति अपनाई है, वहीं कई और राज्य सरकारों को भी ऐसे कदम उठाने के लिए बाध्य किया जा रहा है जो मज़दूरों के अधिकारों और जीविका के लिए खतरनाक हैं। इस दिशा में केंद्रीय श्रम व रोजगार मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों को परामर्श भेजे जा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के छलावे के साथ “उत्तर प्रदेश टेम्पररी एक्सएम्प्शन फ़ॉर सर्टेन लेबर लॉज़ आर्डिनेंस 2020” नाम से एक तानाशाहपूर्ण अध्यादेश लेकर आई है। एक झटके के साथ 1000 दिनों (लगभग 3 साल) के लिए 38 कानूनों को खत्म कर दिया गया है और केवल पेमेंट ऑफ वेजेस एक्ट 1934 की धारा 5, निर्माण श्रमिक कानून 1996, कंपनसेशन एक्ट 1993 तथा बंधुआ मजदूरी कानून 1976 ही प्रभावी बचे हैं। खत्म किए गए कानूनों में ट्रैड यूनियन एक्ट, इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट, एक्ट ऑन ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एन्ड हेल्थ, कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट, इंटर स्टेट माइग्रेंट लेबर एक्ट, इक्वल रेमयुनेरेशन एक्ट, मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट आदि शामिल हैं।

मध्य प्रदेश सरकार ने फैक्ट्रीज एक्ट, कॉन्ट्रैक्ट एक्ट तथा इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट में इस बड़े पैमाने पर बदलाव किए हैं मालिक अपनी मर्ज़ी से मज़दूरों को नौकरी पर रख सकेंगे और अपनी मर्ज़ी से उन्हें बाहर निकाल सकेंगे, विवाद उठाने तथा शिकायत हल करवाने के अधिकार पर बंदिश लग जायेगी, 49 लोगों तक मज़दूर उपलब्ध कराने के लिए ठेकेदारों को लाइसेंस की जरूरत नहीं होगी और वो बिना किसी निगरानी या नियंत्रण के काम करेंगे, फैक्ट्री की जांच बंद कर दी जाएगी और इस तरह मज़दूरों के वेतन, सुरक्षा तथा हर्जाने के लिए जो भी कानून बचेंगे वो निर्प्रभावी रह जाएंगे। इतना ही नहीं मालिकों को मध्य प्रदेश श्रमिक कल्याण बोर्ड में प्रति मज़दूर 80 रुपए की अदायगी की शर्त से भी मुक्त कर दिया गया है। मध्य प्रदेश सरकार ने शॉप एन्ड इस्टैब्लिशमेंट एक्ट में संशोधन के जरिए अब दुकानों को सुबह 6 से रात 12 बजे तक यानिकि 18 घंटे खुलने की अनुमति दे दी है।

गुजरात सरकार ने भी काम के घंटों को 8 से बढ़ाकर 12 करने का गैर कानूनी फैसला लिया है और वह भी उत्तर प्रदेश के रास्ते पर चलकर कई कानूनों को 1200 दिनों के लिए खत्म करना चाहती है। असम तथा त्रिपुरा समेत कई और राज्य सरकारें भी इसी रास्ते पर आगे बढ़ना चाहती हैं।

यह प्रतिगामी मज़दूर विरोधी कदम दूसरे चरण में तब आया जब 8 राज्य सरकारों (गुजरात, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, ओड़िसा, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार और पंजाब) ने लॉक डाउन की स्थिति का फायदा उठाते हुए फैक्ट्रीज एक्ट के उल्लंघन करते हुए अध्यादेशों के जरिए काम के घंटों को 8 से बढ़ाकर 12 कर दिया।

ये तानाशाही कदम न केवल मज़दूरों को सामूहिक मोलभाव , सही मज़दूरी पर विवाद, कार्यक्षेत्र पर सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी के अधिकार से वंचित रखकर उनके शोषण को और बर्बर तथा निष्ठुर बनाने के लिए हैं, बल्कि उन्हें ग़ुलामी की ओर ढकेल कर आर्थिक संकट के बीच भी मालिकों के मुनाफ़े बढ़ाने के लिए हैं। जबरन श्रम के लिहाज से महिलाओं व उत्पीड़ित तबकों का शोषण और अधिक होगा।

इस सबका मतलब है कि वेतन की गारंटी, सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक सुरक्षा और सबसे बढ़कर बिना किसी इंसानी सम्मान के मज़दूरों का इस्तेमाल केवल पूँजी के हित के लिए बँधुआ श्रमिकों के तौर पर किया जाना है, और इस सबका फायदा केवल उन्हें मिलेगा जो मज़दूरों के खून और पसीने पर मुनाफ़ा कमाते हैं। यह मानव अधिकारों के बुनियादी वसूलों के खिलाफ़ है।

भारतीय मज़दूर वर्ग को दुबारा अंग्रेजों के जमाने में धकेलने की तैयारी है। ट्रैड यूनियन आंदोलन इस सबको चुपचाप सहने के लिए कतई तैयार नहीं है तथा अपनी सारी ताक़त और इच्छाशक्ति के साथ उन मज़दूर विरोधी, जन विरोधी नीतियों का मुकाबला करने का संकल्प लेता है, जिसके अभिन्न अंग ये मौजूदा हमले हैं। आने वाले दिनों में हमें पूरे देश में ग़ुलामी लादने की इस योजना के खिलाफ़ प्रतिरोध तैयार करना है।

इस परिप्रेक्ष्य में केंद्रीय ट्रैड यूनियनों के संयुक्त मंच ने सरकार के मज़दूर विरोधी व जन विरोधी कदमों के खिलाफ़ लड़ाई की शुरुआत 22 मई 2020 को देश व्यापी विरोध दिवस के साथ की गई है । आज रायपुर, कोरबा, भिलाई, विश्रामपुर, जांजगीर, रायगढ़, सरगुजा, धमतरी, अंबिकापुर, गरियाबंद, कांकेर सहित सभी जिलों में कोयला, इस्पात, आंगनबाड़ी, ऊर्जा, मितानिन, रसोइए, दवा प्रतिनिधि सैकड़ों की संख्या में इसमें शामिल हुए । रायपुर के धरने में एम के नंदी, धर्मराज महापात्र, बी सान्याल, राकेश साहू, आर दी सी पी राव, नवीन गुप्ता, एस सी भट्टाचार्य, सुरेन्द्र शर्मा, प्रदीप मिश्रा, बी के ठाकुर, अतुल देशमुख, मारुति डोंगरे, प्रदीप गाभने, विभास पैतुंदी,उबेड खान, ऋषि मिश्रा, लखन यदु, के के साहू, एलेक्सजेंडर तिर्की, संदीप सोनी, शीतल पटेल, मनोज देवांगन, पी सी रथ, शेखर नाग सहित अन्य नेता शामिल हुए । इसके अलावा शहर के अलग अलग स्थानों में लोगों ने अपने घरों, बस्तियों में भी प्रदर्शन किए । नेताओ ने कहा कि इसके बाद से सरकार को यूनियनों व सदस्यों द्वारा लाखों पीटिशन भेजे जाएंगे। इनमें प्रमुख माँगें हैं : फंसे हुए प्रवासी मज़दूरों को सुरक्षित उनके घर पहुंचाने के लिए उचित कदम उठाए जाएं, सभी के लिए भोजन, सभी के लिए राशन, लॉक डाउन की अवधि में वेतन भुगतान को सुनिश्चित करना, असंगठित क्षेत्र के तमाम श्रमिकों ( पंजीकृत, गैर पंजीकृत और स्वरोजगार में लगे हुए) के लिए कैश ट्रांस्फर, केंद्र सरकार व केन्द्र सरकार के उपक्रमों के कर्मचारियों की डीए तथा पेंशनरों की डीआर पर लगी रोक को हटाना, खाली पदों के लिए घोषित भर्तियों पर रोक को हटाना।

इस बीच राज्यों और सेक्टरों में पहले से चले आ रहे मुद्दा आधारित कार्रवाइयों को इस दृढ़इच्छाशक्ति तथा समझदारी से तेज़ करना होगा कि आने वाले दिनों में संयुक्त संघर्षों को तेज़ करते हुए देशव्यापी हड़ताल के जरिए लंबी लड़ाई से जीते गए अधिकारों पर सरकार की सत्यनाशी नीतियों के हमले को रोका जाएगा । ट्रैड यूनियनों ने भारत सरकार द्वारा श्रम स्तरों से संबंधित अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं तथा मानवाधिकारों के हनन के खिलाफ़ आईएलओ में संयुक्त शिकायत दायर करने का भी फैसला किया है।

केंद्रीय ट्रैड यूनियनों तथा फेडरेशनो के संयुक्त मंच ने शारिरिक दूरी के मानदंडों व सामाजिक एकजुटता को लागू करते हुए पूरे प्रदेश में विरोध दिवस को सफल बनाने बनाने मजदूर वर्ग को धन्यवाद दिया है । इस कार्यवाही में इंटक , एटक, एचएमएस , सीटू, एकटू,
के अलावा केंद्र, राज्य, बैंक,बीमा, दूरसंचार तथा विभिन्न सेक्टरों के फेडरेशन व एसोसिएशन के श्रमिक शामिल हुए ।