शिवम मिश्रा,रायपुर। कोयला देश के विकास की एक अहम जरूरत है. कोयले से बनी बिजली देश को रोशन करती है, लेकिन इन कोयले के बीच जिंदगी बसर कर रहे बाशिंदों के हिस्से क्या ? जब यह सवाल उठता है, तो सरगुजा में खनन का काम संभाल रहे अदाणी फाउंडेशन की एक पहल नजर आती है. कोल खनन प्रभावित इलाकों में इस पहल ने वहां रह रही जिंदगियों को उनकी परंपरा से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है. अदाणी ग्रुप ने अपने फाउंडेशन के जरिए जैविक खेती को बढ़ावा देने की कवायद शुरू की. बदलते वक्त के साथ नतीजे सामने आने लगे. आज सरगुजा का यह इलाका अपनी उन्नत जैविक खेती के लिए पहचाना जा रहा है.

सरगुजा के परसा गांव में हो रही जैविक खेती

कहते हैं कोशिशें ही कामयाब होती हैं. सरगुजा के परसा गांव में अदाणी फाउंडेशन ने ऐसी ही एक छोटी सी कोशिश को परवान देना शुरू किया था. प्रोजेक्ट अन्नपूर्णा के तहत स्थानीय ग्रामीणों को जैविक खेती की उन्नत तकनीक सिखाई. पारंपरिक खेती करते चले आए ग्रामीणों के लिए यह पहल जिंदगी के उस सकारात्मक बदलाव की तरह थे, जिसकी कल्पना भी उन्होंने नहीं की थी. कोशिशें कामयाब होती चली गई, लोग जुड़ते चले गए और नतीजे ग्रामीणों के चेहरे पर एक नई खिलखिलाहट के रूप में सामने आने लगे. संसाधनों के अभाव में चुनौतियों से जूझते लोगों को अदाणी फाउंडेशन ने घुटने टेकने नहीं दिया, बल्कि उनमें एक जज्बा पैदा किया. आज स्थानीय आदिवासी ग्रामीण सब्जी, हल्दी सहित अलग-अलग चीजों की जैविक खेती कर सुनिश्चित आय के साथ अपने परिवार का भरण-पोषण भी कर रहे हैं.

ग्रामीणों के जीवन में आज रहा बदलाव

अदाणी फाउंडेशन आदिवासी ग्रामीणों की सोच बदलने का एक बड़ा जरिया बनता जा रहा है. अदाणी ग्रुप के उत्साही प्रयासों ने किसानों को रासायनिक खेती से आर्गेनिक खेती की ओर बढ़ा रहा है. प्रोजेक्ट अन्नपूर्णा से आज गांव के किसान सैकड़ों एकड़ की भूमि पर जिराफुल, धान, दुबरा और जैविक हल्दी की खेती कर रहे हैं. अदाणी फॉउंडेशन के सहयोग से ग्रामीणों के जीवन में बड़ा बदलाव आ रहा है. रसोई में हल्दी का प्रमुख स्थान है. सब्जी बनानी हो या दाल, इसके बिना हमारे व्यंजन तैयार नहीं होते. इसके अलावा पूजा-पाठ और शुभा कार्यों में भी हल्दी का विशेष स्थान है.

सब्जी से हो रही हर महीने 7-8 हजार की आमदनी 

ग्राम परसा के बुद्धिराम नेटी बताते हैं कि जैविक खेती के जरिए सब्जी का उत्पादन करता हूं. कुछ सब्जियों को बाजार में बेच देता हूं, फिर जो बचता है, उसको महिला समूहों को बेच देता हूं. जिससे मुझे महीने में 7 से 8 हजार की आमदनी हो जाती है. संजय कुमार सिंह नेताम बताते हैं कि मैं केंचुआ खाद्य बनाता हूं. महिला समूह में काम करते हैं. जिससे हर महीने 7 हजार रुपए की आवक हो जाती है.

हल्दी की जैविक खेती कर हर महीने कमा रहे 12 हजार

MUBBS की सदस्य वीणा देवांगन बताती हैं कि महिला उद्यमी बहुउद्देशीय सहकारी समिति अदानी फाउंडेशन के सहयोग से किसानों को 50 एकड़ की जमीन पर हल्दी की जैविक खेती कर रहे हैं. जिससे हमारे किसानों को सुनिश्चित अवसर मिला है. जो किसान नहीं कर पा रहे थे, आज उनको खेती कराकर हम उनकी हल्दी को अपने कोऑपरेटिव में खरीद लेते हैं. हम इस हल्दी से मसाला प्रसंस्करण लगाए हैं. जिससे गांव की 6 महिलाओं को रोजगार मिला है. इस कार्य से 12 हजार रुपए प्रति महीने की आय बन गई है.

इस तरह आज ग्राम परसा के ग्रामीणों में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. अदाणी फाउंडेशन ग्रामीण समुदायों के विकास से राष्ट्र-निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है.

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