विनोद दुबे, रायपुर। राजधानी के पंडरी थाना में हत्या के एक आरोपी 20 वर्षीय अश्विनी मानिकपुरी द्वारा फांसी लगाकर आत्महत्या किये जाने के मामले ने एक बार फिर छत्तीसगढ़ पुलिस की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगा दिया है। प्रदेश में कस्टोडियल डैथ का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी प्रदेश के अलग-अलग थानों में इस तरह के मामले आ चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद पुलिस विभाग ने अब तक कोई सीख नहीं ली और उसी का ही नतीजा था कि बुधवार को पंडरी थाना के बाथरुम में हत्या के आरोपी ने आत्मघाती कदम उठा लिया।
कस्टोडियल डैथ के पिछले सभी मामलों में पुलिस के ऊपर प्रताड़ना और यहां तक कि हत्या तक के आरोप लग चुके हैं। हम पिछले पांच साल के भीतर पुलिस हिरासत में हुई मौत के उन आंकड़ों पर नजर डालने के साथ ही ऐसे मामलों की तह तक जाने का प्रयास करेंगे। लेकिन उससे पहले हम उन आंकड़ों पर नजर डाल लेते हैं।
साल 2015 थाना में आत्मदाह – दुर्ग के सिटी कोतवाली थाना में छेड़छाड़ के एक आरोपी तीरथ उर्फ चीनी यादव को पुलिस ने जनवरी 2015 में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करने ले गई थी। कोर्ट परिसर पहुंचते ही आरोपी ने आरक्षक को शौच लगने की जानकारी दी। जिस पर आरक्षक उसे वापस सिटी कोतवाली लेकर आ गया। जहां कुछ देर बाद शौचालय से धुआं उठते देख पुलिस कर्मियों ने दरवाजा तोड़कर आरोपी को बाहर निकाल। जिसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन कुछ दिन बाद इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। मामले में थाना प्रभारी जगदीश मिश्रा को तत्कालीन एसपी ने लाइन अटैच किया था।
साल 2015 क्राइम ब्रांच में फांसी – इसी साल नवंबर में राजधानी रायपुर के फाफाडीह थाना स्थित क्राइम ब्रांच में चोरी के एक संदिग्ध आरोपी 27 वर्षीय बिंदेश्वर शाह को पूछताछ के लिये लाया गया था। जहां आरोपी ने शौचालय में गमछे से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। परिजनों का आरोप था कि पुलिस पांच दिन से उसे जबरन अपनी हिरासत में रखी थी। मां ने पुलिस पर बेटे की पिटाई का आरोप लगाया था। उनका कहना था कि मृतक बेटे का चेहरा और पैर सूजा हुआ था। इस मामले में तीन आरक्षकों को सस्पेंड कर दिया गया था और तत्कालीन क्राइम ब्रांच प्रभारी संजय सिंह को लाइन अटैच किया गया था।
साल 2016 सीबीआई कस्टडी में फांसी – गरियाबंद के पत्रकार उमेश राजपूत की हत्या की जांच कर रही सीबीआई ने शिव वैष्णव और उसके बेटे विकास को गिरफ्तार किया था। राजधानी के पुलिस ट्रांजिस मेस में आरोपी ने फांसी लगा ली थी। जानकारी होते ही सीबीआई अधिकारियों ने उसे फांसी के फंदे से उतारा और इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया था। जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी।
साल 2016 जहर सेवन से मौत – इसी साल नवंबर में बिलासपुर में चोरी का एक आरोपी सुरेश तिवारी ने सिटी कोतवाली थाना में चूहामार दवाई खा लिया था। जिसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन उसकी इलाज के दौरान मौत हो गई थी।
साल 2016 कुएं में कूदकर आत्महत्या – बिलासपुर में ही मोबाइल चोरी के एक आरोपी को मोहल्ले वालों ने पकड़कर पुलिस को सौंपा था। रास्ते में आरोपी गाड़ी से कूदकर भाग गया और सड़क किनारे की एक दीवार को फांदने की कोशिश में कुआं में गिर गया। पुलिस ने उसे बाहर निकाला और उसे अस्पताल पहुंचाया जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
साल 2017 व्यापारी की मौत – अप्रैल 2017 में बलौदाबाजार के व्यापारी जसवंत सिंह सलूजा की ट्रैफिक ड्यूटी कर रहे यातायात थाना प्रभारी धीरज मरकाम से विवाद के बाद मारपीट हुई थी। जिसके बाद सलूजा को थाना ले जाया गया। जहां सलूजा के साथ मारपीट की बात निकलकर सामने आई थी। मारपीट में गंभीर रुप से घायल सलूजा को इलाज के अस्पताल ले जाया गया। जहां उनकी मौत हो गई थी।
साल 2018 फांसी – इस साल सितंबर में चोरी के एक संदेही संतोष देवार की संदिग्ध परिस्थितियों में गरियाबंद जिले स्थित छुरा थाना के लॉकअप में फांसी के फंदे पर लटकती हुई लाश मिली थी। मृतक का अंतिम संस्कार पुलिस सुरक्षा में किया गया था। इस मामले में थाना प्रभारी समेत 6 पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया गया था।
साल 2019 फांसी (पहला मामला) – इस साल मई में राजिम के पांडुका पुलिस ने जायका ऑटोमोबाइल के सेल्समैन सुनील श्रीवास को धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया था। आरोपी के न्यायालय में पेश करने से पहले थाना भवन से तकरीबन 80 मीटर दूर स्थित शौचालय के रौशनदान में उसकी शर्ट के फंदे से झूलती हुई लाश मिली थी। मामले में टीआई समेत पांच को सस्पेंड कर दिया गया था।
साल 2019 में फांसी (दूसरा मामला) – जून 2019 में सूरजपुर जिले के चंदौरा थाना के लॉकअप में कृष्णा सारथी नाम के एक युवक की संदिग्ध परिस्थितियों में फांसी के फंदे पर लटकती हुई लाश मिली थी। मामले की जांच में बेहद चौंकाने वाली बात निकल कर सामने आई थी। कृष्णा सारथी को बगैर किसी लिखित शिकायत के पुलिस ने लॉकअप में बंद किया था। इस मामले में 10 पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया गया था। मामले ने राजनीतिक रुप ले लिया था, भाजपा ने दो सदस्यीय जांच समिति का गठन किया था।
साल 2019 में फांसी (तीसरा मामला) – इसी साल 21 जुलाई को अंबिकापुर की सायबर सेल से भागे चोरी के आरोपी पंकज बेक का शव सामने स्थित हास्पिटल में लगे विंडो कूलर के सहारे फांसी के फंदे पर झूलते मिला था। मामले में पुलिस पर पंकज बेक को प्रताड़ित करने के साथ ही हत्या का आरोप भी लगा था। मामले के तूल पकड़ने के बाद थाना प्रभारी सहित 5 को सस्पेंड करने के साथ ही उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया था। आदिवासी युवक पंकज बेक के मामले राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी संज्ञान में लिय़ा था।
साल 2020 (पहला मामला) – इस साल जनवरी में शराब दुकान में चोरी के आरोप में गिरफ्तार किये गए नरेन्द्र नायक की मौत भी पुलिस कस्टडी में हुई थी। नरेन्द्र को न्यायिक रिमांड पर जेल ले जाया जा रहा थी इसी दौरान रास्ते में उसकी तबियत खराब होने पर उसे अस्पताल ले जाया गया। जहां उसकी मौत हो गई थी। इस मामले में पुलिस का दावा था कि शराब दुकान के कर्मचारियों ने उसके साथ मारपीट की थी।
साल 2020 (दूसरा मामला) – इसी साल 28 अक्टूबर को हत्या के आरोप में गिरफ्तार 20 वर्षीय अश्वनी मानिकपुरी का शव राजधानी रायपुर के पंडरी थाना में उसके बेल्ट से लटका हुआ मिला था। परिजनों ने पुलिस मारपीट से मौत का आऱोप लगाया था। इस मामले में एक एसआई समेत 4 कांस्टेबल को लाइन अटैच किया गया।
ये वो प्रमुख मामले हैं जो मीडिया में सुर्खियों में रहे हैं। इनके अलावा और भी मामले हो सकते हैं। हालांकि इन मामलों में ज्यादातर मामलों में पुलिस के ऊपर पूछताछ के दौरान मारपीट और प्रताड़ना के आरोप लगे हैं। कुछ मामलों में जांच के बाद पुलिस कर्मियों के ऊपर अपराध दर्ज किया गया है वहीं कुछ में निलंबन जैसी कार्रवाई भी हुई है।
पूछताछ के इन प्रकल्पों का इस्तेमाल करे पुलिस- मनोवैज्ञानिक
पुलिस हिरासत में मौत के मामले में लल्लूराम डॉट कॉम ( www.lalluram.com ) से बातचीत में मनोवैज्ञानिकों ने पुलिस के पूछताछ के तरीकों पर सवाल उठाया है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि पुलिस को पूछताछ का तरीका बदलना चाहिए, अब आरोपियों से वैज्ञानिक और बौद्धिक तरीके से पूछताछ किया जाना चाहिए ना कि उनके साथ मारपीट और थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में मनोवैज्ञानिक वर्षा वरवंदकर ने कहा कि पुलिस हिरासत में पुलिस की प्रताड़ना से मानसिक रुप से परेशान होकर आत्महत्या के केसेज हो जाते हैं। पुलिस की प्रताड़ना मिलती या फिर मानसिक ग्लानी या अपराध बोध की भावना आ जाती है कि परिवार वालों को क्या मुंह दिखाएंगे, कैसे समाज का सामना करेंगे। उसके कारण पुलिस लॉकअप में आत्महत्या करने के लिए विवश हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि पुलिस उनसे पूछताछ करती है तो उस समय उनको मानवीय भावनाओं और मनोवैज्ञानिक पक्ष का भी ध्यान रखना चाहिए। उसमें उनको इतनी ज्यादा प्रताड़ना नहीं मिलनी चाहिए कि उनकी सहन शक्ति से बाहर हो जाए। आपको अपराध से घृणा करना चाहिए ना कि अपराधी से। मानवीय दृष्टिकोण नहीं अपना रहे हैं और उनको इतनी ज्यादा प्रताड़ना दे रहे हैं कि वो सहन नहीं कर पा रहे हैं। मान लीजिये कोई व्यक्ति अपना अपराध स्वीकार नहीं कर रहा है तो शारीरिक प्रताड़ना के अलावा हमारे पास कई प्रकल्प उपलब्ध हैं जिनका उपयोग किया जा सकता है। आप किसी सायकोलॉजिस्ट के पास बैठाकर उनका इन्ट्रोगेशन कराए, लाई डिटेक्टर रहता है उनके पास जाएं। उनको अत्याचार नहीं करना चाहिए। उनके साथ बिहेवियर थैरेपी होती है उसका इस्तेमाल कर पता करने की कोशिश करना चाहिए कि वास्तव में उस व्यक्ति ने अपराध किया है या नहीं किया है। अगर किया है तो उसके पीछे की परिस्थितियां क्या थीं। कई बार कत्ल जैसे मामले आवेश में आ जाता है। आवेश का स्ट्रोक बहुत कम समय का होता है, उस समय किसी भी व्यक्ति को याद नहीं रहता कि वह किस तरह की गतिविधि कर रहा है। इमपल्स का क्या कारण था, किस कारण से उससे इस तरह की घटना हुई। शारीरिक प्रताड़ना के अलावा मनोवैज्ञानिक और बौद्धिक ढ़ंग से सच उगलवाया जा सकता है।
हर जिले में चलाया जाएगा रिफ्रेशर कोर्स – डीजीपी
प्रदेश में लगातार हो रहे कस्टोडियल डैथ के मामले में डीजीपी डीएम अवस्थी ने लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में कहा कि पहले हमें यह निकालना पड़ेगा कि पिछले 5-10 साल में कितने मामले आए, वो फिगर नहीं है मेरे पास। जब तक मैं इसका अध्ययन ना कर लूं। अब आपने कहा है तो मैं पूरे मामले निकलवाता हूं। दूसरी बात यह कि जो परिस्थितियां होती है कई बार आत्महत्या आदमी ने कर ली और कई बार सस्पीसियस (संदिग्ध) हो जाती है। उसके लिए हर केस में ज्यूडिशियल इन्क्वायरी और वीडियो ग्राफी पीएम करवाया जाता है। जो भी इस तरह के मामले आए हैं, जैसे एक मामला गरियाबंद का आया था पिछले साल इसमें जांच में आया था कि पुलिस की गलती थी। उसमें हमने पुलिस वालों के ऊपर 302 का मामला पंजीबद्ध किया था। केस टू केस डिफ्ररेंट हो सकता है। सुसाइड करने के कई कारण हो सकते हैं, सुसाइडल स्टेट जब डवलप हो जाती है तभी उसको इंटरन कर ली जाए तो होगा नहीं, अगर ये पता चल जाए कि आदमी की मनोस्थिति ऐसी है चाहे वह घर में हो या कस्टडी में हो तभी उसको नियंत्रण किया जा सकता है। इसमें लापरवाही वाले दंडित हुए हैं कितने पुलिस वालों की नौकरी गई कितने जेल चले गए हैं। सबके लिए इन्स्ट्रक्शन जारी किये गए हैं।
डीजीपी ने आगे कहा कि बीच में पुलिस वाले बहुत आत्महत्या कर रहे थे, या तो वो अपने साथियों को ही मार दे रहे थे। इसके बाद हमने मई से स्पंदन कार्यक्रम चलाया पूरे प्रदेश में, इसका असर हुआ कि ये घटनाएं रुक गई फिलहाल। सब युनिट में सब जगह इन्स्ट्रक्शन दिये गए। अब ये है औऱ दो तीन चीजें है एक तो यह है दूसरा बिहेवरल ट्रेनिंग की जरुरत है। ये ट्रेनिंग इसको करना जरुरी है, रेफरल कोर्स चलाया जाना चाहिए ताकि पुलिस की कस्टडी में कोई ना मरे। हमारी कोशिश होगी कि इस तरह की घटनाएं ना हो। इसके लिए रिफ्रेशर कोर्स प्लान कर हर जिले में चलाए जाएंगे। मुझे लगता है इससे फायदा होगा।