अमित पवार, बैतूल। मध्य प्रदेश के बैतूल में एक सरकारी टीचर को डॉक्टर बनने का ऐसा नशा चढ़ा कि वह अवैध क्लिनिक खोलकर बढ़ गया। साथ ही मरीजों की जान से खिलवाड़ करने लगा। मामला घोड़ाडोंगरी ब्लॉक के चिखलपाटी गांव का है। यहां रघुनाथ फौजदार, जो कुंडीखेड़ा गांव के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक हैं, उन्होंने अपने घर पर अवैध क्लिनिक खोल रखा था।

मरीज का इलाज करते रंगे हाथों पकड़ाया

स्वास्थ्य विभाग की टीम ने जब स्कूल टाइम में उनके घर पर छापा मारा, तो रघुनाथ एक मरीज का इलाज करते हुए रंगे हाथों पकड़े गए। जांच में टीम को भारी मात्रा में दवाइयां, इंजेक्शन, ड्रिप सेट और बायो वेस्ट मिला। पूछताछ में रघुनाथ फौजदार ने खुद माना कि वो पिछले आठ सालों से इलाज कर रहा है।  हालांकि उस के पास न कोई मेडिकल डिग्री है, न पंजीकरण। 

खुद को डॉक्टर बताकर कर रहा था ग्रामीणों का इलाज

ग्रामीणों का कहना है कि वो हर बीमारी का इलाज इन्हीं से करवाते हैं, क्योंकि गांव में कोई डॉक्टर नहीं है और रघुनाथ खुद को डॉक्टर बताकर दवा देते हैं। स्वास्थ्य विभाग ने क्लिनिक से बरामद दवाइयों और उपकरणों की रिपोर्ट तैयार कर उच्च अधिकारियों को भेज दी है। मामले की जांच जारी है, लेकिन अब तक निलंबन या गिरफ्तारी की कार्रवाई नहीं हुई है।

क्यों पनप रहे झोलाछाप शिक्षक ?

गौरतलब है कि परसिया में डॉक्टर सोनी और ज्योति सोनी के कफ सिरप से 26 मासूम बच्चों की मौत का मामला सामने आया था। अब बैतूल का यह मामला फिर एक बार प्रदेश के स्वास्थ्य और शिक्षा तंत्र की लापरवाही पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। एक तरफ़ सरकार साक्षर भारत और स्वास्थ्य भारत के नारे देती है और दूसरी तरफ़ वही सिस्टम ऐसे झोलाछाप शिक्षक डॉक्टरों को पनपने देता है।

प्रश्न यह है कि कितनी और ज़िंदगियाँ इन झोलाछाप डॉक्टरों के इलाज की भेंट चढ़ेंगी। एक सरकारी शिक्षक जो बच्चों को पढ़ाना छोड़ इलाज का धंधा कर रहा है,अगर उसके झोलाछाप इलाज से किसी की जान चली जाए ,तो जिम्मेदारी कौन लेगा? सरकार? शिक्षा विभाग? या फिर वो सिस्टम जो ऐसे मामलों पर आंख मूंद लेता है?

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