रुपेश गुप्ता, रायपुर.   

नरवा,गरुआ,घुरवा,बारी छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है. सरकार ने इसके ज़रिए गौवंश में सुधार करने का भी लक्ष्य रखा है. जिसका फायदा दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के रुप में दर्ज होगा. योजनाकारों की सोच है कि गौठान में एक साथ गायों को रखकर उनका कृत्रिम गर्भाधान कर नस्ल सुधार किया जाएगा जिसके बाद प्राप्त मवेशियां ज़्यादा दुग्ध उत्पादन करें. लेकिन क्या केवल अच्छी नस्ल की बछड़ियां तैयार करके ही मनवांछित नतीजे हासिल किए जा सकते हैं. बिना बढ़िया चारा मुहैया कराए उन्नत  नस्ल की बछड़ियां ज़्यादा दूध देंगी.

जानकार मानते हैं कि नस्ल सुधार में जितना अहम रोल सीमेन का है. उतना ही अहम रोल बछड़ियों के खानपान का है. नस्लों को उन्नत बनाने में जितना योगदान उनके माता-पिता के गुणों का होता है. उतना ही योगदान खान-पान का होता है. अगर बछड़ियों को पोषण युक्त खाना बचपन से मिलेगा. रुमेन का विकास सही तरीके से सही समय पर होगा, तभी नस्ल बेहतर सकता है.

छत्तीसगढ़ के डेयरी व पशुपालकों में ये कार्यसंस्कृति नहीं है. इसकी वजह है- यहां चारे का मंहगा होना. राज्य में हरे चारे की जबरदस्त कमी है. इसीलिए छत्तीसगढ़ में गायों  की संख्या अधिक है लेकिन हरा चारा, दाना की कमी के कारण जानवरों से औसतन दुग्ध उत्पादन काफी कम है.

राज्य में अनाज के उत्पादन के फलस्वरूप बचे हुए अवशेष  से भूसा तथा पुआल पर हमारे पशुओं  की जीविका निर्भर करती है. इन सूखे चारों  में  कार्बोहायड्रेट  को छोड़कर अन्य आवश्यक पोषक का नितान्त अभाव रहता है. पशु की दुग्ध उत्पादन की आनुवंशिक क्षमता के अनुरूप दूध का उत्पादन प्राप्त करने  के लिए उसके शरीर को  स्वस्थ रखने की आवश्यकता होती है. जो संतुलित और पोषक आहार से ही संभव है. पोषक तत्वों का सबसे सस्ता स्रोत हारा चारा ही है.

छत्तीसगढ़ सरकार ने नरुवा-गरुआ-घुरवा-बारी में चारागाह विकसित करने की बात कही है. लेकिन क्या हमारे पास गांवों में इतनी जगह है कि वहां पैदा होने वाले चारे से पूरे गांवों की गायों का पोषण सुनिश्चित कर सकें. राज्य में खेती का रकबा पंजाब और हरियाणा से भी ज़्यादा है. पंजाब में खेती का रकबा करीब 42 लाख हैक्टेयर है, हरियाणा में 38 लाख हैक्टेयर है. जबकि छत्तीसगढ़ में ये रकबा 46 लाख हैक्टेयर है.दोनों राज्यों के खेतों से दो या तीन फसल वहां के किसान लेते हैं जबकि छत्तीसगढ़ में ज़्यादातर ज़मीन एकफसली होती है. जिससे यहां खेतों में मवेशियों के लिए हरा चारा लेने की आदत अभी विकसित नहीं हो पाई है.

कामधेनु विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ शरद मिश्रा का कहना है कि छत्तीसगढ़ में ज़रुरत का चारा 70 फीसदी से कम है. हरे चारे की कमी से ही डेयरी उद्योग उड़ान नहीं भर पा रहा है. शरद मिश्रा मानते हैं कि हरे चारे के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसका प्रचार-प्रसार होना चाहिए. किसानों का हरा चारा उत्पादित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. उन्होंने कहा कि पुराने समय में जोत का दस फीसदी हिस्सा चारे के लिए इस्तेमाल किया जाता था. अगर हरा चारा मिले तो जानवर स्वस्थ तैयार होंगे और दूध उत्पादन की लागत कम हो जाएगी, किसानों का मुनाफा बढ़ जाएगा. ]

हांलाकि हरे चारे का संकट देश के ज़्यादातर राज्यों में है.पूरे देश में इस वक्त 36 फीसदी हरे चारे की कमी है. भारत में कुल 4.4 फीसदी जोत का इस्तेमाल ही हरे चारे के रुप में किया जा रहा है. इसे 8 फीसदी होना चाहिए. जिन राज्यो में हरे चारे की स्थिति कुछ बेहतर है. वहां ब्रीडिंग किसानों की आय का बेहतर साधन है. पंजाब, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और उत्तर प्रदेश में हरे चारे की उपलब्धता के चलते अच्छी नस्ल की गायों और भैंसों का विकास हो रहा है. इन राज्यों में किसान मवेशियों को अच्छी कीमत पर बेचकर अतरिक्त आय अर्जित करते है. पंजाब की गायों और हरियाणों के भैंसों की मांग पूरे देश में है. पंजाब से गुजरात में हर साल हज़ारों की संख्या में गाय जाती है.

सवाल है कि छत्तीसगढ़ में हालात कैसे बेहतर हो सकते हैं. इसके लिए कई विकल्पों पर सरकार को काम करने की ज़रुरत है. पहला और सबसे सरल तरीका है कि पड़त भूमि पर सरकार के कृषि विभाग और वन विभाग आबादी के निकट अपनी ज़मीनों पर चारा उगाएं.उसे बेचें. फिर इस काम में स्थानीय समुदायों को शामिल किया जाए.

इसके साथ कृषि विभाग गांवों में चुनिंदा किसानों को चारा उगाने के लिए प्रोत्साहित करे. किसान के हरे चारे का विपरण पशुपालन विभाग के ज़रिए वहां संचालित डेयरियों में कराएं  चूंकि पशुपालन विभाग के अनुदान के तहत चलने वाली डेयरियां दाने की ज़्यादा कीमत के चलते नुकसान में चल रही हैं इसलिए हरा चारा उनकी लागत कम करके उन्हें ऑक्सीजन देने का काम करेगा. इसके बदले किसान की आय भी बढ़ेगी. अगर एक किसान बढ़िया किस्म का मक्का अपने खेत में लगाता है तो पौधे और फसल का कुल वज़न 17-20 टन तक होता है. अगर इसे वो 2.5 रुपये किलो भी बेचे तो किसान आसानी से 40 से 50 हज़ार रुपये कमा सकता है. सिर्फ फसल बेचकर वो इनती राशि नहीं कमाता है. इसी तरीके से वो एक बार बुआई करके नेपियर और मुनगा की फसल सालों -साल ले सकता है. अंबिकापुर के अभिलाष सिंह कहते हैं कि वे सूखा भूसा 5 से 6 रुपये किलो और दाना 20-25 रुपये किलो अपने मवेशियों को खिला रहे हैं. अगर हरा चारा 3 रुपये में भी मिले तो ये काफी फायदे का सौदा होगा.

सरकार के पास एक विकल्प आंध्र और तेलंगाना जैसे राज्यों की तरह साइलेज और टोटल मिक्स राशन में सब्सिडी देने का है. लेकिन जब तक यहां बड़े पैमाने पर साइलेज का निर्माण शुरु नहीं होता. ये विकल्प कामयाब नहीं होगा. हैदराबाद के आसपास बड़ी संख्या में व्यवासाई साइलेज का उत्पादन कर रहे हैं. लिहाज़ा इससे डेयरी के विकास के साथ-साथ रोज़गार के अवसर भी बढ़ रहे हैं.

अगर छत्तीसगढ़ में सरकार साइलेज पर सब्सिडी दे तो कई युवा व्यवासायी इस क्षेत्र में आकर रोज़गार हासिल कर सकते हैं. लेकिन इसमें सबसे बड़ी समस्या मक्के की सालभर अनुपलब्धता है. अगर दूसरे राज्य से किसान और व्वयासाई साइलेज लाएं तो ये बेदह खर्चीला साबित होता है. इसलिए सराकर को इस विकल्प से पहले हरा चारा के उत्पादन को बढ़ाने पर ज़ोर देना होगा.

माइक्रोस्तर पर हाईड्रोपोनिक्स तकनीक से हरे चारे का विकास कराना इस राज्य में निहायत ही ज़रुरी है. इस तरीके का सबसे बड़ा फायदा है कि जमीन की कमी हरा चारा उगाने में बाधक नहीं बनती है. हाईड्रोपोनिक्स पर काम कर रहे कृषि विशेष संकेत ठाकुर का कहना है कि हाईड्रोपोनिक्स चारे में सामान्य चारे की तुलना में पोषण तत्व अधिक होते हैं. क्योंकि ये चारा पौधों के वृदधि के सर्वोत्तम समय में किया जाता है. जड़ों में फाइबर अत्यधिक मात्रा में होता है. इस चारे से पशुओं को बहुत सारे हार्मोन्स और एंजाइम मिलते हैं. लेकिन हाईड्रोपोनिक्स एक आधुनिक कृषि पद्धति है एवं इसके बारे में किसानोें को बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है. ऑटोमैटिक हाईड्रोपोनिक्स का निर्माण लागत ज्यादा है, जिसे किसान वहन नहीं कर सकते. मार्केट में सौ किलो चार उत्पादन करने वाली सेमी ऑटोमैटिक मशीन करीब डेढ़ लाख रुपए में और फुली ऑटोमैटिक मशीन 4/4.50 लाख रुपए में उपलब्ध है.

संकेत ठाकुर इसे लेकर एक नया मॉडल बना रहे हैं. संकेत ठाकुर कहते है कि प्रदेश के सभी गौशालाओं में हाईड्रोपोनिक्स तरीके से चारा अनिवार्य कर दिया जाए तो पशुओं के मरने की समस्या खत्म हो जाएगी. पशुओं को कम कीमत पर पोषक चारा उपलब्ध होगा. मध्य प्रदेश के सभी गौशालाओं में सरकार हाईड्रोपोनिक्स पद्धति का इस्तेमाल करने जा रही है. सरकार इसमें सब्सिडी प्रदान कर मौजूदा डेयरी उद्यमियों को हानि से निकाल सकती है.

हरे चारे की उपलब्धता के चलते हरियाणा ने पंजाब को दुग्ध उपलब्धता में पीछे छोड़ने का अभियान छेड़ा है. इसके लिए एक बड़ा कार्यक्रम वो सेक्स सीमेन के साथ लेकर आ रहा है. किसानों को सस्ती दरों पर सेक्स सीमेन मुहैया कराकर 90 फीसदी बछड़ियां पैदा करवाने का लक्ष्य रखा है. बाज़ार में जो सेक्स सीमेन 1700 से 2000 है, उसे किसानों को 700 से 800 रुपये में उपलब्ध कराया जाएगा. पशुपालन एवं डेयरी मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने कहा कि हरियाणा में 21 लाख भैंस व 15 लाख गाय हैं, जिनका दूध देने का औसत प्रति पशु 6.800 किलोग्राम है. औसत को हम 10 किलोग्राम प्रति पशु तक लेकर जाएंगे. हरियाणा का लक्ष्य आसान है क्योंकि वहां हरा चारा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है. छत्तीसगढ़ के लिए इस तरह के कार्यक्रम अभी केवल एक सपना है.  छत्तीसगढ़ में औसत दुग्ध उत्पादन आधा लीटर से थोड़ा ज़्यादा है.