Pandit Chhannulal Mishra Passes Away. बनारस संगीत घराने के दिग्गज शास्त्रीय गायक और पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन हो गया है. आज अलसुबह 4.15 बजे 89 वर्ष में मिर्जापुर में बेटी के घर अंतिम सांस ली. वह पिछले कुछ समय से बीमार थे और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांइस में उनका इलाज चल रहा था. तबीयत में सुधार होने पर उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया था. उनका अंतिम संस्कार आज वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर किया जाएगा. उनके निधन से संगीत जगत में शोक में डूब गया है. पंडित छन्नूलाल मिश्रा ने खयाल और पूर्वी ठुमरी शैली के शास्त्रीय गायन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया था. उनका जीवन उपलब्धियों से भरा था.
छन्नूलाल मिश्र ठुमरी, खयाल, भजन, दादरा, फगुआन, कजरी और चैती गाते थे. उनके शो सुपरहिट होते थे. संगीत जगत में उनके योगदान के लिए 2020 में उन्हें पद्म विभूषण, 2010 में पद्म भूषण, 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. ऑल इंडिया रेडियो से लेकर दूरदर्शन तक उनके कार्यक्रम खूब प्रसारित हुए हैं. वह संस्कृति मंत्रालय के सदस्य भी रह चुके थे.
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6 साल की उम्र से सीखने लगे थे संगीत की बारीकियां
छन्नूलाल मिश्र का जन्म 3 अगस्त 1936 को हरिहरपुर, यूपी के आजमगढ़ जिले में हुआ था. उनके दादा, गुदई महाराज शांता प्रसाद एक प्रसिद्ध तबला वादक थे. मिश्र ने 6 साल की उम्र में ही अपने पिता बद्री प्रसाद मिश्र से संगीत की बारीकियां सीखी. उन्होंने पहले अपने पिता, बद्री प्रसाद मिश्रा के साथ संगीत सीखा और तब किराना घराने के ‘उस्ताद अब्दुल गनी खान’ ने उन्हें शिक्षित किया. उसके बाद ठाकुर जयदेव सिंह ने उन्हें प्रशिक्षित किया.
बनारस में तेज की संगीत साधना की धार
छन्नूलाल मिश्र ठुमरी के लब्धप्रतिष्ठ गायक थे. वे किराना घराना और बनारस गायकी के मुख्य गायक हैं. खयाल, ठुमरी, भजन, दादरा, कजरी और चैती के लिए पंडित जी हमेश याद किए जाएंगे. उनकी सांगीतिक शिक्षा मुजफ्फरपुर में हुई. चतुर्भुज स्थान में एक कोठरी में रह कर संगीत साधना करते थे. वे किराना और बनारस दोनों घराने से जुड़े सधे हुए कुशल गायक थे. यहां उनकी साधना को कोई खास मुकाम नहीं मिला. अपनी उपेक्षा से विवश होकर करीब 4 दशक पहले वाराणसी चले गए थे. जहां उन्होंने अपनी संगीत साधना की धार को और तेज किया. पं. छन्नूलाल मिश्र किराना और बनारस घराने के मिश्रित ठुमरी गायक हैं.
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गायकी जिसे याद करेगी दुनिया
वैसे तो मिश्र के कई गीत हैं जो काफी प्रसिद्ध हैं. लेकिन कुछ गीत ऐसे हैं जिसकी अलग ही डिमांड होती थी. किसी भी कार्यक्रम में पंडित जी जाते थे तो कुछ गाने ऐसे होते थे जिन्हें बिना गाए श्रोता उन्हें मंच से उतरने नहीं देते थे. उनके कुछ प्रमुख गीतों में ‘खेले मसाने में होरी दिगंबर’, ‘सेजिया से सैयां’, ‘बरसन लागी बदरिया’ जैसे गाने शामिल हैं. पंडित जी का कोई कार्यक्रम ऐसा नहीं होता था जहां से वे इनमें से कोई एक गाना ना गाएं. इसमें से बरसन लागी बदरिया गीत कजरी परंपरा का गाना है. यह मिर्जापुरी कजरी है. वह मिर्जापुर और बनारसी, दोनों अंदाज में यह कजरी गाते थे. दूसरा ‘सेजिया से सैयां’ बनारसी अंदाज की चैती है.
‘सांस अलबेली’ और ‘कौन सी डोर’ को आज भी गुनगुनाते हैं लोग
अपने शास्त्रीय गायन से लाखों दिलों में एक खास जगह बनाने वाले छन्नूलाल मिश्र ने बॉलीवुड में भी अपना योगदान दिया था. साल 2011 में आई प्रकाश झा की फिल्म आरक्षण में ‘सांस अलबेली’ और ‘कौन सी डोर’ जैसे गानों को अपनी आवाज दी थी. ये दो गाने काफी मशहूर हुए थे और लोग इसे आज भी गुनगुनाते हैं.
‘सांस अलबेली’ गीत दीपिका पादुकोण, सैफ अली खान और अमिताभ बच्चन की फिल्म आरक्षण का था. इसके अलावा मिश्र ने बनारस घराने की चैती और कजरी जैसी पारंपरिक शैलियों में गायन किया जो सोहर के समान उत्सव गीत है. ऐसे में कुछ सोहर काफी मशहूर हुए थे जिसे आप यूट्यूब पर भी सुन सकते हैं. ये सोहर हैं- ‘सखी सब गावेली’ और ‘मोरे पिछवरवा’. काशी की मिट्टी से जुड़े छन्नूलाल ने ठुमरी, पुरब अंग शैली के गंभीर, भावपूर्ण और अनूठी आवाज में अमर कर दिया.
विदेशों भी गूंजी भारत की संस्कृति
पंडित छन्नूलाल मिश्र भारत के साथ-साथ विदेश में भी नियमित रूप से कार्यक्रम करते थे. वे भारत समेत विदेश में कई संगीत सम्मेलनों और संगीत समारोह में भाग लेते थे. भारत की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ के दौरान उन्हें ICCR की ओर से आमंत्रित किया गया था और उन्होंने वाशिंगटन डीसी, न्यूयॉर्क, और शिकागो सहित अमेरिका के विभिन्न स्थानों पर प्रस्तुति दी थी. उन्हें स्मिथसोनियन इन द एयर एंड स्पेस ऑडिटोरियम (वाशिंगटन डीसी) में भी अपना संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत करने का अवसर मिला. वे भारत और विदेश में नियमित रूप से प्रदर्शन करते थे और उन्होंने कई एल्बम भी जारी किए हैं, जिनमें विभिन्न प्रकार के मधुर रूप शामिल हैं.
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